नई दिल्ली : नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर भरोसा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल देशभर में 'मेरिट' वाले अफसर ढूंढ रहे हैं. इसीलिए जब उन्होंने मनमोहन सिंह के ख़ास रहे आईएएस अफसर संजय मित्रा को देश का नया रक्षा सचिव बनाया तो सत्ता के गलियारे में कई लोग चौंक उठे. लेकिन मोदी को अफसर में 'मेरिट' चाहिए उसका बीता हुआ इतिहास नहीं.
पिछले हफ्ते केंद्र सरकार के सचिवों के साथ बैठक में मोदी ने साफ़ किया कि सिर्फ सीनियरटी के आधार पर सबसे बुजुर्ग आईएएस अफसर को मंत्रालय का सर्वेसर्वा बनाकर देश को लाभ नहीं मिलता है. जब तक सरकार कोई बड़ी योजना लागू करने जा रही होती है तब तक सचिव का रिटायरमेंट हो जाता है. फिर जब दूसरा सचिव कुर्सी पर बैठता है तब तक योजना काफी आगे बढ़ चुकी होती है. मोदी का मानना है कि कम से कम मंत्रालय के महत्वपूर्ण सचिवों को तीन साल मिलने चाहिए अगर सरकार योजनाओं को प्रभावी तरीके से ज़मीन पर उतारना चाहती है.
मोदी ने बदल दिया चयन का तरीका
सचिवों के चयन में अब फीडबैक को ज्यादा तरजीह दी जा रही है. यानी अब सिर्फ करैक्टर रोल के आधार पर चयन नहीं हो रहा है बल्कि अफसर के काम करने के तरीके और उसकी मेरिट पर फीडबैक लिया जा रहा है. अगर अफसर की मेरिट के बारे में लोगों की राय अच्छी नहीं है तो सरकार उसे सचिव की कुर्सी के योग्य नहीं मान रही है.
इस नए सिस्टम को मोदी सरकार ने '360 डिग्री' का नाम दिया है. कुल मिलाकर जिस तरह घरवाले वर वधु की छानबीन करते हैं उसी तरह सरकार अब आईएएस अफसरों की पड़ताल करके उन्हें योग्यता के आधार पर सचिव की कुर्सी के लिए सूचीबद्ध कर रही है.
कई वरिष्ठ आईएएस अफसर योग्यता सूची से बाहर हुए
360 डिग्री प्रोफाइल के आधार पर किये जा रहे चयन के कारण कई वरिष्ठ आईएएस अफसर अब केंद्र सरकार के मंत्रालयों के सचिव नहीं बन पाएंगे. यानी गृह सचिव हो या रक्षा सचिव, बिना 360 डिग्री की छानबीन के कोई आईएएस, सचिव नहीं बन सकेगा. मिसाल के तौर पर 1984 बैच के यूपी काडर के आईएएस अफसर भूपेंद्र सिंह या 1985 बैच की शालिनी प्रसाद सचिव बनने से रह गए.
जबकि 360 डिग्री की पड़ताल में यूपी के ही अनंत कुमार सिंह और डीएस मिश्रा पास हो गए. अनंत कुमार सिंह तो अब स्मृति ईरानी के टेक्सटाइल मंत्रालय के नए सचिव बन गए हैं. इसी तरह 56 वर्षीय यूपी के आईएएस डीएस मिश्रा 2021 तक केंद्र सरकार में सचिव के पद पर बने रहेंगे. इन अफसरों को योग्यता के आधार पर सरकार ने जल्दी तरक्की दे दी है.
मोदी खेल ना चाहतें हैं सचिवों के साथ लम्बी पारी
दरअसल सरकार में मंत्रालय का सारा जिम्मा एक तरह से सचिव पर ही होता है. खासतौर पर बड़ी योजनाओं को मज़बूती के साथ लागू करने में सचिव की भूमिका मंत्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. लेकिन परम्परा ज़ाहिर करती है कि अक्सर 58-59 वर्ष की उम्र में अफसर, सचिव बनते हैं और जल्दी रिटायर हो जाते हैं.
इसका नतीजा यह होता है कि सरकारी फैसले और फाइलें एक सचिव से दूसरे सचिव के आने तक अपनी राह से भटक जाती हैं. इसका खामियाजा जनता और देश को भुगतना पड़ता है. शायद इसलिए भरी मीटिंग में मोदी ने कहा कि 2014 में जब उनकी सरकार बनी थी तब के 85 सचिवों में अब सिर्फ 4 शेष रह गए हैं.
यानी 90 फीसदी से ज्यादा मंत्रालयों के सचिव सरकार के आधे टर्म से पहले ही बदल गए. ज़ाहिर है इतनी तेज़ी से बदलती नौकरशाही से सरकार के कामकाज में स्थिरता नहीं रहती है. संकट तब और गहरा जाता है जब सरकार का मुखिया न सिर्फ स्थिरता पर जोर दे रहा हो बल्कि अगली बार फिर से सरकार बनाना चाह रहा हो.