लखनऊ : उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद् में हजारों करोड़ की खुली लूट पर योगी सरकार ने मौनव्रत नहीं तोडा है. जिसके चलते इस बड़ी लूट की अभी तक जांच नहीं शुरू कराई गयी है। इस लूट के अध्याय का पहला पाठ में आगरा की भारत नगर सहकारी आवास समिति को परिषद् की बेशकीमती भूमि कौड़ियों के भाव देने का मामला है. ये घोटाला करीब 600 करोड़ से ऊपर का है।
सीएम क्यों नहीं दे रहे हैं जांच के आदेश ?
'इंडिया संवाद' को तत्कालीन उप आवास आयुक्त हीरा लाल की बेहद गोपनीय जांच रिपोर्ट हाथ लगी है, जो साबित कर रही है कैसे अफसर और इंजीनियर करोड़ों रूपए रिश्वत लेने के बाद समिति के हाथों बिक गए। इस घोटाले की जांच हो तो परिषद् के कई अफसर सीधे जेल की सलाखों के पीछे होंगे। इस भूमि घोटाले की नीव 'सिंह इज किंग' बने अफसरों ने सबसे महाभ्रष्ट इंजीनियर सत्येंद्र सिंह पचैरी से लिखवाकर अमलीजामा पहनाया। अफसरों ने आगरा की सिकंदरा योजना में पाॅकेट ए सेक्टर 15 में 121086 वर्ग मीटर और पाॅकेट बी सेक्टर 12 डी में 23783 वर्ग मीटर भूमि को अविकसित बताकर पूरा खेल किया है। इस भूमि का आरक्षित मूल्य 166 करोड़ रखा गया था। जबकि सिर्फ परिषद् अगर छोटे- छोटे भूखंडों के जरिये इस जमीने को बेचता तो करीब 600 करोड़ से ऊपर तक की आय हो सकती थी।
अफसरों और इंजीनियरों ने जेब भरने के लिए उलझाया मसले को
तत्काल आवास आयुक्त को तत्समय उप आवास आयुक्त रहे हीरा लाल ने बेहद गोपनीय जांच रिपोर्ट 2.12.2008 को भेजी थी। जिसमे परिषद् के अफसरों का पूरा काला चिटठा था। इस रिपोर्ट से ये भी साफ हुआ कि अफसरों और इंजीनियरों के एक रैकेट ने इस मामले को जानबूझकर उलझाये रखा था। इस रिपोर्ट में साफ दिया गया था कि समिति निबंधितकर्ता के साथ ही धोखाधड़ी और साठगांठ के माध्यम से गलत दबाव बनाकर जमीने लेने का प्रयास कर रही है। समिति का ये कृत्य आपराधिक है। ऐसे में भारत नगर सहकारी समिति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा कायम करना चाहिए. लेकिन परिषद् के अफसरों ने हीरा लाल की इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई ही नहीं की। यही नहीं जांच रिपोर्ट में साफ दिया था कि जो खसरा समिति के नाम दर्ज हैं. प्रतिकर बंटने के बाद भी उप्र आवास एवं विकास परिषद् के नाम क्यों नहीं आये. इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। जमीन को परिषद् के नाम कराने के लिए महज फाइल का पेट भरने का काम किया गया। ऐसा किया जाना मिलीभगत और संलिप्तता को दर्शा रहा है.
रिपोर्ट में अधीक्षण अभियन्ता को बताया गया दोषी
यही नहीं एक वर्ष पूर्व बिना किसी आदेश के एक समझौता अधीक्षण अभियंता आरके अग्रवाल द्वारा कराया गया था. उसमे भी समझौता कागज तैयार कराने के पूर्व देखना चाहिए था कि मुकदमे में स्टे की क्या स्थिति है। लेकिन किसी भी नियम का पालन न करते हुए एक समझौता दिनांक 6.11.2007 को अधीक्षण अभियंता के पत्र संख्या 3089/ दिनांक 7.11.2007 द्वारा मुख्यालय भेजा गया। जबकि मुख्यालय का आदेश समझौता करना नहीं था. इससे स्थानीय स्तर पर नियत का खुलासा होता है कि परिषद् अपनी ही जमीन समझौते के जरिये देना चाहती है। तत्कालीन उप आवास आयुक्त हीरा लाल ने सीधे अधीक्षण अभियन्ता आरके अग्रवाल को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि परिषद् हितों के विपरीत काम किया गया है। समझौते का ये कागज समिति कहीं भी अपने पक्ष में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत कर सकती है. अधीक्षण अभियंता की नियत परिषद् हितों की और न होकर समिति हितों की और है। समझौता पत्र मुख्यालय पहुँचने के बाद तत्कालीन अपर आवास आयुक्त देवी शंकर शर्मा द्वारा एक पत्र संख्या 302/ एलएसी दिनांक 10.4.08 अनुसचिव आवास शासन को भेजा गया।
अधीक्षण अभियंता शुरू से रहे समिति के वफादार
जिसमे साफ कहा गया था अधीक्षण अभियंता द्वारा अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर समझौता किया गया है. उनके इस कृत्य पर कठोर आपत्तिजनक टिप्पणी अंकित की गई। आरके अग्रवाल द्वारा पत्र में कहा गया कि वाद संख्या 628/98 में सिविल न्यायालय में स्थगन है और इसी आधार पर ये उल् लेख किया गया है जबकि दिनाँक 26.7.06 से उक्त वाद में स्थगन है न्यायालय रिक्त होने के करण कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है ये विवरण वास्तविक तथ्य को छिपाकर परिषद् हित के विपरीत लिखा गया है। ऐसे में स्थानीय अफसरों की नियत का पता चलता है कि वो क्या चाहते हैं। सिर्फ कागजी खानापूरी ही की गयी है। विभागीय जानकारों का कहना है कि उक्त भूमि पर काबिज अतिक्रमण को हटवाने में विशेष रूचि और शीघ्रता दिखाई गयी होती तो अतिकृमित भूमि खाली हो गयी होती। तत्कालीन उप आवास आयुक्त ही एकलौते अफसर थे जिन्होंने पूरी ईमानदार से लिखा कि समिति द्वारा परिषद् की उक्त भूमि पर किया जा रहा क्लेम किसी भी स्तर पर स्वीकारने योग्य नहीं है। लेकिन जब परिषद् के अफसरों की जेब में करोड़ों रूपए गए तो घोटाले की जमीन तैयार करके परिषद् को करीब 600 करोड़ से ऊपर की हानि पहुंचा दी गयी।
परिषद् के बोर्ड सदस्यों में बंटी करोड़ों की रकम
इस मलाईदार जमीन को परिषद् के बोर्ड में साठगांठ के जरिये अविकसित घोषित कराकर बेचा गया है. जबकि ये ऐसी जमीन है जैसे नमूने के तौर पर लखनऊ में हजरतगंज एरिया में कोई जमीन। आसपास सभी विकसित निर्माण भी हैं। अब बिल्डर इसे बेचकर 500 करोड़ से ऊपर कमायेगा। समिति के प्रबंधक का कार्यकाल भी 8.12.2000 को खत्म हो चुका था। इस भूमि को बेचने की एवज में परिषद् के अफसरों के बीच करोड़ों की रिश्वत बांटी गयी है। इसी तरह 14.11.2008 को भी तत्कालीन उप आवास आयुक्त हीरा लाल ने आवास आयुक्त को भेजी अपनी गोपनीय रिपोर्ट में लिखा था कि प्रतिकर बाँटने के बावजूद परिषद् के नाम खसरे क्यों नहीं आये ? इसकी जांच होनी चाहिए। यही नहीं तत्कालीन एसडीएम सदर आगरा धर्मेंद्र सिंह और हीरा लाल समेत तीन सदस्यीय समिति ने भी लिखा था कि भारत नगर समिति द्वारा अनैतिक रूप से न्यायाललय की शरण लेकर अपंजीकृत वसीयत के जरिये समिति के नाम भूमि स्थानांतरित कराई गयी. परिषद् द्वारा नोटिफिकेशन होने के बावजूद गैर कानूनी तरीके से विवाद बनाकर उलझाया गया। ऐसे में क्रेता और विक्रेता के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला बनता है।
डील में कमाए परिषद् के अफसरों ने करोडो
समस्त कार्यवाही वर्ष 1970 में धारा 28 के प्रकाशन के लगभग 14 वर्ष बाद की गयी है। परिषद् के अफसरों को करोड़ों की भारी रकम इस डील में मिली है, तभी बाजार मूल्य के महज पांच प्रतिशत पर नीलाम दर्शाकर बेच दिया गया। संयुक्त आवास आयुक्तं आगरा जोन के पत्र संख्या 1236 दिनांक 21.8.2015 एवं अधिशासी अभियंता षष्टम वृत्त आगरा द्वारा भेजी आख्या में इस भूमि को विवादित बताया गया और निस्तारण को कहा गया। अपनी आख्या में अफसरों ने कहा कि अविकसित जमीन से प्राप्त होने वाली भूमि दर रूपए 11459 रूपए प्रति वर्ग मीटर है। सत्येंद्र सिंह जैसे महाभ्रष्ट इंजीनियर ने अपनी रिपोर्ट में पूरी जमीन विवादित बताते हुए भारत सहकारी समिति का कब्जा बताया। जबकि महज 6 एकड़ भूमि राजस्व अभिलेखों में समिति के नाम साजिशन चढ़ाई गयी थी। इसी इंजीनियर ने करीब दस करोड़ की भारी रकम ली है। अगर परिषद् इस बेहद मलाईदार भूमि को बेचता तो 50 से 60 हजार प्रति वर्गमीटर की दर से बिकती।
भूमि के मूल्य में लीज रेंट तक अफसरों ने नहीं जोड़ा
भूमि के मूल्य में लीज रेंट तक अफसरों ने नहीं जोड़ा। 12 प्रतिशत फ्रीहोल्ड शुल्क भी जोड़ा जाना चाहिए था। इस बेशकीमती भूमि की नीलामी में सिर्फ घोटाले ही थे तभी मेसर्स एस 3 बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड फरीदाबाद जो नीलामी में आयी दूसरी कंपनी थी ये भी भारत सहकारी समिति के कथित सचिव शोभिक गोयल की ही बताई जा रही है 166 करोड़ में नीलामी की स्वीकृति तत्कालीन आवास आयुक्त रूद्र प्रताप सिंह ने महज तीन ही दिनों में फाइनल कर दी। आरोपों के मुताबिक भारत नगर सहकारी समिति के पदाधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर बनाकर समिति का सचिव बनकर शोभिक गोयल द्वारा भूमि प्राप्त की गयी है अब ये बिल्डर इस भूमि को बेचकर पांच सौ करोड़ से ऊपर की कमाई कर रहा है ऐसे में सबसे बड़े भूमि घोटाले की जांच तत्काल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को करानी चाहिए।