नई दिल्ली : उरी हमले का पाकिस्तान को करारा जवाब देकर पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम की चली आंधी के झोंकों में कई बड़ी राजनीति क पार्टियां जनता के बीच से हवा में उड़ गयीं हैं. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आयी इस आंधी ने कई पार्टियों के मुखियाओं की रातों की नींद उड़ा दी है. जिसके चलते यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी पार्टी का सूपड़ा न साफ हो जाने के डर से बीजेपी से गठबंधन का भीतर ही भीतर मन बना चुकी हैं.
माया अपने मुंह बोले भाई से लगीं रिश्ता बनाने में
सूत्रों के मुताबिक यूपी में दो बार अपने मुंह बोले भाई और बीजेपी सांसद लालजी टण्डन के जरिये साल 1995 में और फिर साल 2003 में अपनी सरकार बना चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती एक बार फिर से अपने मुंह बोले भाई का ट्रंप कार्ड चलकर बीजेपी में अपनी घुसपैठ बनाने की फ़िराक में हैं. बताया जाता है कि मायावती अपने उसी पुराने संबंध को फिर से जोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन करने के प्रयास में हैं.
मोदी के नाम की चली आंधी
हालांकि बीजेपी सांसद टण्डन के करीबियों का कहना है कि इस बार मायावती की दाल बीजेपी में गलने वाली नहीं. क्योंकि पाक को जवाब देकर मोदी के नाम की चली देश में आंधी के तेज झोंको में समाजवादी पार्टी और बसपा जनता के बीच से उड़कर भुजुत दूर उड़कर चली गयी है. अब यूपी ही नहीं देश के पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भी मोदी की इस आंधी का असर साफ दिख रहा है.
बीजेपी अब माया के झांसे में फंसने वाली नहीं
बीजेपी प्रवक्ता आईपी सिंह ने 'इंडिया संवाद' से बात करते हुए बताया कि पहले दो बार बसपा से गठबंधन कर धोखा खा चुकी बीजेपी अब मायावती के साथ गठबंधन करने वाली नहीं. उनका मानना है कि इस बार यूपी में बीजेपी इन दोनों पार्टियों को पीछे छोड़कर बहुत आगे निकल चुकी है. जिसके चलते बीजेपी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी. आपको बता दें कि यूपी में दोनों बार बीजेपी को मायावती ने धोखा दिया.
माया ढूंढ रही है बीजेपी का संपर्क सूत्र
दरअसल बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालजी टण्डन और कलराज मिस्र ने बसपा के प्रति अपनी सहानभूति दिखाई थी, जिसके चलते यूपी में बीजेपी और बसपा का गठबंधन इस शर्त के साथ किया गया था कि छह महीने सरकार में सीएम की कुर्सी पर मायावती और छह महीने कल्याण सिंह बैठेंगे. लेकिन जैसे ही मायावती का कार्यकाल पुरा हुआ. वह मुकर गयीं और उन्होंने गठबंधन तोड़ लिया. बहरहाल मायावती ने साल 2007 के बाद से कोई चुनाव जीता नहीं है. अच्छी तरह से मायावती जानती हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह से उनकी पार्टी के नेताओं ने उनका साथ छोड़ा है. उससे कहीं अगले साल यूपी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कहीं उनकी पार्टी का सूपड़ा न साफ हो जाये. इसलिए वह बीजेपी से अपना गठबंधन बनाने के लिए संपर्क सूत्र ढूंढ रही है.