नई दिल्ली : देश में संवैधानिक संस्थाओं का राजनीति करण जिस तरह वर्तमान सरकारें करती जा रही हैं उससे अब साहित्य भी अछूता नहीं रह गया है। बीते कुछ समय की घटनाओं से साफ़ पता चलता है कि सरकारें इन संस्थाओं के जरिये अपने लोगों को महत्व देना चाहती हैं। केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली प्रतिष्ठित 'साहित्य अकादमी' हो या दिल्ली सरकार की 'हिंदी अकादमी' दोनों संस्थाओं की भूमिका वर्तमान में लेख कों के मनोबल के साथ खिलवाड़ करने वाली है।
हिंदी अकादमी ने लेखकों को किया अपमानित
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अध्यक्षता वाली 'हिंदी अकादमी' उस वक़्त विवादों में आ गई जब लेखकों को मिलने वाले 'भाषादूत सम्मान' के लिए पहले तो कई लेखकों को आमंत्रित किया गया लेकिन बाद में उन्हें यह कहकर इनकार कर दिया गया कि उन्हें ये आमंत्रण त्रुटिपूर्ण चला गया था। हिंदी अकादमी की बागडोर फ़िलहाल जानीमानी साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा के पास हैं और उन्होंने पत्र के जरिये लेखक अरुण देव, अशोक कुमार पांडेय, संतोष चतुर्वेदी, अभिषेक श्रीवास्तव, और पत्रकार शिवेंद्र सिंह को भाषादूत सम्मान देने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन ऐन वक़्त पर ऐसा पता नहीं क्या हो गया कि इन लेखकों को दोबारा पत्र लिखकर सम्मान देने से यह इनकार कर दिया गया कि उनको नाम त्रुटिपूर्वक इसमें शामिल हो गया था।
सदस्यों ने दिया इस्तीफ़ा
हिंदी अकादमी के इस कारनामे से अकादमी के ही कई सदस्य नाराज है। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी और हरीश नवल ने तो सदयता से ही इस्तीफ़ा दे दिया। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी का कहना है कि 'भाषादूत सम्मान' के लिए चुने गए कई नामों को देखकर वह आश्चर्यचकित है। खासतौर से अकादमी ने कवि अशोक चक्रधर जो खुद अकादमी के उपाध्यक्ष रहे हैं, उन्हें अकादमी सम्मानित कर रही है। इस सम्मान के लिए नामित लेखक राहुल देव तो खुद अपना नाम सुनकर हैरत में हैं और उन्होंने सम्मान लेने से इंकार कर दिया। राहुल देव ने कहा जब मुझे कॉल कर बताया गया कि उन्हें यह सम्मान दिया जा रहा है तो मैं चौंक गया। अपनी फेसबुक वॉल पर उन्होंने लिखा कि मैंने ऐसा आखिर क्या कर दिया कि यह सम्मान मुझे दिया जा रहा है।
हिंदी दिवस पर साहित्य अकादमी में सुभाष चंद्रा की किताब का विमोचन
हिंदी दिवस पर राजनीति का शिकार सिर्फ हिंदी अकादमी ही नहीं हुई बल्कि केंद्र सरकार के अधीन आने वाली 'साहित्य अकादमी भी इससे दो कदम आगे ही रही। अवार्ड वापसी से चर्चा में आयी 'हिंदी साहित्य अकादमी' में भी हिंदी दिवस पर हुआ कार्यक्रम कई लोगों को नागवार गुजरा। हिंदी दिवस पर अकादमी ने मीडिया मुग़ल सुभाष चंद्रा को मुख्य अतिथि बनाया। इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद जी मीडिया के हवाले रहा। हिंदी दिवस पर चर्चा करने के लिए किसी बड़े साहित्यकार की जगह मीडिया मुग़ल की मौजूदगी सबको हैरान करने वाली रही क्योंकि जी समूह के मालिक चंद्रा राज्यसभा संसद भी है और बीजेपी के समर्थन से वह राज्यसभा पहुंचे।
हिंदी दिवस के अवसर पर 'साहित्य अकादमी' में हुए कार्यक्रम में सुभाष चंद्रा ने अपनी आत्मकथा 'जेड फैक्टर' का विमोचन नोवेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के हाथों करवा डाला। इस मौके पर आये लोगों में से जब एक व्यक्ति ने जब हिंदी पर अपनी राय रखी तो सुभाष चंद्रा व्यक्ति पर बुरी तरह भड़क गए और मामला लोगों के हस्तक्षेप के बाद शांत हुआ हालाँकि बाद में उन्होंने व्यक्ति से माफ़ी भी मांग ली।