नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने हालही में अपने मंत्रालयों को पारदर्शी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जिसके तहत उसने गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जेम) नामक एक पोर्टल की शुआत की है। सरकार का कहना था है कि इस पोर्टल के जरिये मंत्रालयों में इस्तेमाल होने वाली स्टेशनरी सहित अन्य वस्तुओं की खरीदारी की जा सकेगी। इसके लिए सालाना 10 हजार करोड़ का बजट भी रखा गया था लेकिन इस 'मास्टर प्रोजेक्ट' के प्रारंभ होते ही इस पर भ्रष्टाचार के आरोपों लगने लगे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले 'मौलिक भारत ट्रस्ट' ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि इस पोर्टल के जरिये भरी गड़बड़ी और अनियनितताएं बरती जा रही है।
मौलिक भारत ट्रस्ट के महासचिव श्री अनुज कुमार अग्रवाल द्वारा 15 अक्टूबर 2016 को लिखित इस पत्र की एक प्रति डीजीएस एंड डी के महानिदेशक (पीपी) श्री बिनय कुमार को भी भेजी गयी है। आरोप है कि पोर्टल के माध्यम से पायलट प्रोजेक्ट स्तर पर ही 2500 करोड रूपये की खरीद जीएफआर रूल्स तथा मुख्य सतर्कता आयोग के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए की गयी है।
GeM के जरिये इस तरह बरती जा रही है अनियमितता
मौलिक भारत ट्रस्ट का कहना है कि सचिव समिति ने ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ के पायलट प्रोजेक्ट को 10 मार्च, 2016 को स्वीकृति अवश्य प्रदान की लेकिन समिति ने यह कहीं नहीं कहा कि सरकारी खरीद में पारदर्शिता बनाये रखने हेतु डीजीएस एंड डी के जो मौजूदा नियम है उनका प्रभावी ढंग से पालन न किया जाए। सरकारी खरीद की पूरी व्यवस्था इस समय जीएफआर-2005, डीजीएस एंड डी मैन्यूल, ग्वर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस नियमों, सूचना तकनीक कानून 2005 तथा मुख्य सतर्कता आयोग के नियमों के तहत संचालित है। किन्तु ‘गवर्नमेंट ई- मार्केटप्लेस’ पर यदि गहरायी से नजर दौडायी जाए तो पता चलता है कि इसमें नियमों का जानबूझकर पालन नहीं किया जा रहा है, जिस कारण सरकारी खरीद की पूरी व्यवस्था कुछ लोगों को गलत तरीके से फायदा पहुँचाने का एक बडा जरिया बन गयी है।
सामान को कहाँ से खरीदा जा रहा है
‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ के माध्यम से जो खरीददारी की जा रही है उसमें सामान सप्लाई करने वाले की सत्यता का पता लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है। ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ की टर्म एंड कंडीशन्स की धारा 21 के अनुसार विक्रेता की सत्यता की जांच, वाजिब कीमत आदि सभी बातों की जांच की जिम्मेदारी सामान खरीदने वाले सरकारी विभागों की है। यह सर्वविदित तथ्य है कि सरकारी सामान की खरीददारी के मामले में प्रायः सभी सरकारी विभागों के पास विशेषज्ञता का अभाव है। इसीलिए डीजीएस एंड डी जैसे विशेषज्ञ विभाग की स्थापना की गयी थी। किन्तु डीजीएस एंड डी ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ के माध्यम से सामान खरीदते समय यह कहकर पूरी व्यवस्था के पारदर्शी होने का दावा नहीं कर सकता कि सामान सत्यापित संस्थाओं से ही खरीदा जा रहा है। डीजीएस एंड डी द्वारा ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ के नाम पर अपने ही नियमों के उल्लंघन के कारण हजारों करोड रूपये के अनुबंध अवांछित तत्वों को मनमाने ढंग से दिये जा रहे हैं।
ठेका प्रक्रिया गुपचुप तरीके से चल रही है
ई-मार्केटप्लेस प्लेटफार्म पर अधिकृत एजेंटों की उपस्थिति और उनकी जांच करने का कोई प्रभावी तरीका न होने के कारण अधिकृत पार्टनर्स सामान की वह कीमत भी वसूल सकते हैं जो वास्तविक उत्पादक से स्वीकृत नहीं है। गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ टम्र्स एंड कंडीशन्स अध्याय 5 की धारा 2 के तहत प्रावधान है कि पोर्टल पर आमंत्रण सूचना कम से कम सात दिन तक प्रकाशित रहनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोगों तक वह जानकारी पहुँच सके और वे चाहें तो खरीद प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें। जबकि इस समय ऐसा नहीं किसा जा रहा है जिसके कारण ठेका प्रक्रिया में गुपचुप तरीके से कुछ चीजें चलती रहती हैं।
रिवर्स आॅक्शन’ अनिवार्य है अथवा नहीं
ई-मार्केटप्लेस’ पोर्टल पर 50,000 से अधिक के सामान अथवा सेवाओं पर लागू होने वाले जीएफआर- 2005 के नियम संख्या 141-ए में प्रावधान है कि कम से कम दर पर सामान प्रदाता का ही चयन किया जाना चाहिए। नियम में यह भी कहा गया है कि ई-मार्केटप्लेस’ पोर्टल पर खरीददार के इस्तेमाल हेतु कुछ ऑनलाइन बिडिंग और ‘रिवर्स ऑक्शन’ टूल दिये गये हैं। किन्तु नियम को पढने से यह पता नहीं चलता कि ‘रिवर्स आॅक्शन’ अनिवार्य है अथवा नहीं। किसी भी सूरत में न्यूनतम मूल्य का चयन निश्चित रूप से प्रतियोगी तंत्र के माध्यम से ही होता है। किन्तु इस प्रकार की अनेक घटनाएं हैं जब 50,000 रूपये से iअधिक के ठेकों में रिवर्स आॅक्शनिंग नहीं की गयी।
इंटिग्रिटि पैक्ट की शर्तें सीवीसी के इंटिग्रिटि पैक्ट का उल्लंघन करती है
मुख्य सतर्कता आयोग द्वारा 4 दिसम्बर 2007 को जारी सर्कुलर में यह प्रावधान है कि सभी सरकारी खरीद में इंटिग्रिटी पैक्ट का इस्तेमाल होना चाहिए। पैक्ट के संबंध में सकुर्लर में विस्तार से जानकारी दी गयी है यानि कि ठेकेदारों की तरफ से वायदे, टेंडर प्रक्रिया के अयोग्य करार देना, नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति, आपराधिक इतिहास, आदि। जबकि ई-मार्केटप्लेस’ टमर्स एंड कंडीशन्स की धारा 10 में उपलब्ध इंटिग्रिटी पैक्ट की शर्त केन्द्रीय सतर्कता आयोग के इंटिग्रिटि पैक्ट से भिन्न है और उसमें कोई साफ जानकारी नहीं दी गयी है। इसलिए गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ के इंटिग्रिटि पैक्ट की शर्तें सीवीसी के इंटिग्रिटि पैक्ट का बहुत हद तक उल्लंघन करती हैं।
प्रवेश शुल्क राज्यस्तरीय नियमों का पालन नहीं करता
मौलिक भारत का आरोप है कि गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ प्लेटफार्म इस समय अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है। इसके पास अभी सामान की कीमत के साथ छेडछाड पर अंकुश लगाने के तंत्र का पूरी तरह अभाव है। इसका कारण यह है कि वास्तविक उत्पादकों को उत्पाद के मूल्य निर्धारण में शामिल नहीं किया जाता है। ई-मार्केटप्लेस पोर्टल विभिन्न राज्यों में लागू चूंगी, प्रवेश शुल्क राज्यस्तरीय नियमों का पालन नहीं करता। यह कमी प्रायः सभी प्रकार की सेवाओं के संबंध में देखी गयी है। चाहे वह वार्षिक मरम्मत का ठेका देने का मसला हो अथवा बडे स्तर के सर्वर और सॉफ्टवेयर इंस्टालेशन अथवा अन्य सेवाओं की बात हो।
नियमों का उल्लंघन करते हुए करोडो रूपये के ठेके दिये जा रहे हैं
इस समय जिस तरीके से गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस’ पर काम हो रहा है उससे सरकार को काफी वित्तीय नुकसान हो रहा है। प्रोडेक्ट अपलोड को लेकर भी बहुत सी शिकायते हैं जिनका निराकरण किये बगैर इस पोर्टल का विस्तार नहीं किया जा सकता। इस समय पोर्टल के माध्यम से जो सामान बेचा जा रहा है वह पहले से निर्धारित रेट कॉन्ट्रैक्ट की कीमतों से कहीं अधिक है। इसलिए इसके संचालन में जो भी कमियां हैं उन्हें अविलंब दूर किया जाना चाहिए। यह बात गंभीर है कि पायलट फेज में ही सभी जरूरी नियमों का उल्लंघन करते हुए करोडो रूपये के ठेके दिये जा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि अविलंब इस दुरूपयोग पर रोक लगाए और साथ ही दोषी अधिकारियों के विरूद्ध जांच शुरू कर कडी कार्रवाई करे।