नई दिल्ली : न्यूज़ चैनल आजतक पर प्रसारित विवादित मुजफ्फरनगर दंगों के स्टिंग ऑपरेशन की जाँच के लिए बनी उत्तरप्रदेश विधानसभा की जाँच समिति के निष्कर्ष को योगी सरकार ने दरकिनार कर दिया है। यह स्टिंग उस वक्त आजतक के खोजी पत्रकार और (अब इंडिया संवाद के वरिष्ठ संपादक) दीपक शर्मा की अगुवाई में किया गया था। यूपी विधानसभा की समिति ने इस स्टिंग ऑपरेशन मामले में आजतक के कई नामी गिरामी पत्रकारों, राहुल कँवल, पुण्य प्रसून बाजपेयी, गौरव सावंत, खोजी पत्रकार अरुण सिंह और हरीश सिंह को भी आरोपी बनाया था।
इस मामले में सपा के दिग्गज नेता आजम खान ने आजतक चैनल के चेयरमैन अरुण पुरी का नाम घसीटने की भी कोशिश की थी। हालाँकि अरुण पुरी या चैनल के सीईओ का इस मामले में कोई लेना देना नहीं था। दरअसल सच तो यह है कि इस स्टिंग ऑपरेशन पर अगर आजम खान को कोई ऐतराज था तो वह नियमानुसार आजतक पर मानहानि का मुकदमा ठोक सकते थे।
लेकिन आजम खान जानते थे कि या मामला अदालत में नहीं टिकेगा। इसलिए आजम खान ने मामले को विधानसभा की अवमानना मानते हुए एक जाँच समिति गठित करवा दी। इस जाँच समिति में आजम खान ने अपने सबसे करीबी सपा विधायक सतीश निगम को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
कई सदस्यों ने किया जाँच समिति का बहिष्कार
इस जाँच समिति के गठन का उस वक्त बीजेपी ने बहिष्कार किया था। खुद इस समिति के अंदर से ही कई सदस्यों ने समिति का विरोध कर इसमें आने से ही इंकार कर दिया था। जिसके बाद आजम खान ने दबाव बनाकर इस मामले में उन्हें एकतरफा कारवाई करने के लिए मजबूर किया। यह कोई पहला मामला नहीं था जब आज़म खान ने अपने व्यक्तिगत मामले में पत्रकारों को विधानसभा के जरिये घसीटा। इससे पहले वह न्यूज़ चैनल आईबीएन-7 के वरिष्ठ संपादक राजदीप सरदेसाई को भी विधानसभा में अपमानित कर चुके हैं।
दरअसल आजम खान समाजवादी पार्टी की सरकार में मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री थे और आजम खान के दांवपेंच की वजह से ही मुजफ्फरनगर में दंगे जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। आजम ने चैनल के इस स्टिंग ऑपरेशन को गलत साबित करने के लिए एक जाँच समिति बनायी और समिति में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे कर दिया। दरअसल आज़म खान इस स्टिंग पर सवाल उठाकर खुद दंगों में संवैधानिक रूप से क्लीन चिट लेना चाहते थे। शायद उन्हें इससे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अन्य मामलों में राहत मिलती।
बहरहाल वक़्त बदला और अब आज़म खान का सारा खेल बेनक़ाब हो चुका है।सूत्रों की माने तो संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने जाँच समिति की इन फाइलों को परखा। उन्हें बताया गया कि जिस तरह आज़म खान ने अपने व्यक्तिगत मामलों को सूबे की सबसे बड़ी पंचायत यानी विधानसभा से जोड़ा, उससे एक नई परिपाटी शुरू हो गई थी। परम्परा को ताक पर रख कर आजम खान, व्यक्तिगत मामलों को निपटाने के लिए विधानसभा में समितियां बना रहे थे।
लिहाजा गुरुवार को मुजफ्फरनगर दंगों पर बनी जाँच समिति की रिपोर्ट पर योगी सरकार ने आगे कोई कार्रवाई करने से इंकार कर दिया। अब योगी सरकार ने इस प्रस्ताव को पारित कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी माँगा था यूपी सरकार से जवाब
हकीकत को समझें तो स्टिंग में यह दिखाया गया कि किस तरह नेताओं के दबाव में पुलिस मुजफ्फरनगर के घटनाक्रम में कार्रवाई कर पाने और हिंसा पर काबू पाने में असफल रही। 26 सितम्बर 2013 को छपी NDTV की एक रिपोर्ट (मुजफ्फरनगर हिंसा : कोर्ट ने स्टिंग ऑपरेशन पर यूपी सरकार से मांगा जवाब) के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने कथित रूप से राजनीति क दबाव के कारण मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाने में उत्तर प्रदेश पुलिस की निष्क्रियता के आरोपों को ‘बहुत गंभीर’ बताते हुए राज्य सरकार से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा।
सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इन दंगों की एसआईटी या न्यायिक आयोग से स्वतंत्र जांच कराने के लिए दायर याचिकाओं पर भी राज्य सरकार से जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की आड़ में आज़म खान ने जल्दबाजी में सुप्रीम कोर्ट को जवाब नहीं दिया लेकिन विधानसभा में उस स्टिंग पर जाँच समिति बना ली।
लैब ने कहा फुटेज से नहीं की गई कोई छेड़छाड़
इसी जाँच समिति की आड़ में आज़म खान में खुद को बचाने की कोशिश की और कुछ हदतक तक वह इसमें कामयाब भी हुए। 15 अक्टूबर को आज़म खान के दबाव में बनायी गई जाँच समिति ने कहा कि इस स्टिंग की फुटेज से छेड़छाड़ की गई है और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। मीडिया में भी इसे छपवाया गया कि स्टिंग के साथ छेड़छाड़ की गई।
लेकिन 15 अक्टूबर 2014 को जाँच समिति के सामने बयान देने आये गांधीनगर 'गवर्मेंट फोरेंसिक लैब के वै ज्ञान िक' जेएच त्रिवेदी ने खुलासा किया कि फुटेज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। त्रिवेदी ने बताया कि स्टिंग में जो भी फुटेज चलायी गई उसमे कोई एडिटिंग नहीं की गई है और फुटेज (continuity) निरंतरता में है।
जानेमाने वीडियो फोरेंसिक वैज्ञानिक त्रिवेदी ने कहा, जो फुटेज उन्हें उपलब्ध करवाई गई थी उसमे कोई एडिटिंग नहीं की गई। हैरत इस बात की है कि 15 अक्टूबर 2014 को समिति को दिए गए त्रिवेदी के इस महत्वपूर्ण बयान को रिर्पोट में रेखांकित नहीं किया।
पहले भी पत्रकारों पर आज़म खान करवा चुके हैं एफआईआर दर्ज
इस मामले में आजम खान के रसूख के चलते आजतक के दर्जनभर पत्रकारों पर मुकदमा कर्ज करवाने के लिए दबाव बनाया गया। समिति ने कहा कि आजतक के पत्रकारों पर दंगा करवाने का मुकदमा चलाना चाहिए। बहरहाल आजतक अकेला चैनल नहीं था जिस पर आजम खान ने इस तरह कार्रवाई करने की कोशिश की।
इससे पहले वह इंडिया टीवी के वरिष्ठ संपादक रजत शर्मा पर भी एफआईआर दर्ज करवा चुके हैं। इसके अलावा आजम खान मशहूर टीवी एंकर दीपक चौरसिया और अमिताभ अग्निहोत्री पर भी ख़बरों के मामले में एफआईर दर्ज करवा चुके हैं। शायद इसीलिए यूपी के नए संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्भा है और उसके सम्मान की रक्षा की जानी चाहिए।