
नई दिल्लीः एक तरफ जहां यूपी में समाजवाद के नाम पर परिवारवाद की राजनीति करते-करते मुलायम का सूरज अस्त हो चला है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परिवार की अलग ही कहानी है। मुलायम के अपने परिवार की बात ही छोड़िए, सगे-सबंधियों को विधायक-सांसद बनवाकर करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करवा दिया। वहीं मोदी प्रधानमंत्री बन गए मगर परिवार का हाल वही है। चाहे सगे चार भाई हों या चचेरे भाई सबकी माली हालत निम्न मध्यमवर्ग से भी कम है। कोई कबाड़ी का काम कर रहा तो कोई दुकान चला रहा, कोई पतंग बेच रहा है। और कोई पेट्रोल पंप पर तेल भर रहा।
मिलिए मोदी के परिवार से, कौन क्या कर रहा
मोदी के सगे चाचा का नाम नरसिंह दास मोदी है। उनके चचेरे भाई अहमदाबाद और आसपास छोटे-मोटे काम करते हैं। मिसाल के तौर पर 55 साल के भरतभाई मोदी को लीजिए। इस वक्त जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। वाडनगर से 60 किमी दूर स्थित पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में तेल भरने को मजबूर हैं। कमाई होती है सिर्फ महीने में छह हजार। घर चलाने के लिए मोदी की भाभी को परचून की दुकान चलानी पड़ रही। तब जाकर मियां-बीवी परिवार चला पाते हैं। एक और चचेरे भाई हैं 48 साल के चंद्रकांत। वे अहमदाबाद की एक गौशाला में हेल्पर हैं। दूसरे चचेरे भाई अरविंद मोदी की उम्र करीब 61 साल है। इनकी हालत दूसरे भाइयों से थोड़ी बेहतर है। वाडनगर में रहकर अरविंद कबाड़ी का काम करते हैं। आटो से घर-घर जाकर तेल के पुराने कनस्तर खरीदते हैं। मोदी के सगे चाचा नरसिंह दास मोदी के सबसे बड़े बेटे भोगी भाई(67) वाडनगर में परचून की दुकान चलाते हैं। गरीबी के कारण 10 वीं से ज्यादा पढ़ नहीं पाए। भोगी भाई न तो बीजेपी के सदस्य हैं न ही आरएसएस के, मगर वे फुर्सत मिलने पर वाडनगर में आरएसएस के दफ्तर जरूर जाते हैं। भरत भाई हों या भोगी भाई का परिवार, किसी ने आज तक भाजपा या आरएसएस के किसी नेता से कोई लाभ नहीं लिया न ही मोदी से रिश्तों का बखान ही किया। अगर एक बार भी भरत या भोगी भाई ने यह जताया होता कि उनके भाई मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो शायद संघ से लेकर भाजपा के नेता उनके घर लाइन लगा देते।
मोदी के सगे बड़े भाई का भी हाल-बेहाल से
कुछ ऐसा ही हाल मोदी के सगे भाई 72 वर्षीय अमृत भाई का भी है। वे नरेंद्र मोदी से छह साल बड़े हैं। अमृत भाई ने वरिष्ठ पत्रकार उदय महोरकर को बताया कि काफई समय तक मोदी उनके साथ अहमदाबाद में रहे। उनके सगे मामा बाबू भाई मोदी अहमदाबाद में रहते थे और गुजरात स्टेट रोड टांसपोर्ट के पास छोटी सी कैंटीन चलाते थे। काम की तलाश में अमृतभाई गांव से निकलकर अहमदबाद पहुंचे तो उसी कैंटीन में काम करने लगे। कुछ दिन बाद छोटे भाई नरेंद्र भी बड़े भाई के पास पहुंचकर कैंटीन में काम करने लगे। तब नरेंद्र की उम्र करीब 16-17 साल की थी। अमृतभाई कहते हैं कि उनके पास गरीबी के कारण एक कमरे का ही घर था। जिसके चलते नरेंद्र दिन भर काम करने के बाद रात में कैंटीन में ही सो जाते थे। कैंटीन में काम करने के दौरान ही नरेंद्र 1959 में थोड़ी दूर स्थित संघ मुख्यालय जाने लगे। वहां प्रचारकों के संपर्क में आए। फिर संघ प्रचारकों के लिए चाय बनाने लगे। अच्छी चाय पिलाकर उन्होंने संघ कार्यालय के सभी लोगों को अपना मुरीद बना लिया। अब अधिकांश समय नरेंद्र मोदी का संघ मुख्यालय पर बीतने लगा।
जब मोदी ने कहा-मैं परिवार छोड़ रहा हूं
अमृतभाई मोदी वरिष्ठ पत्रकार महोरकर को बताते हैं कि फरवरी 1971 में नरेंद्र उनसे मिले। बोले कि मैं अब सच की तलाश में घर छोड़ने जा रहा हूं, हिमालय मेरा ठिकाना होगा। जिस पर वे रो पड़े, मगर बड़े भाई के आंसुओं के आगे भी नरेंद्र अपने फैसले पर अडिग रहे। मोदी के चचेरे भाई कहते हैं कि आखिरी बार 2003 में मोदी ने गांधीनगर के घर पर पूरे परिवार को चाय पर बुलाया था। यह परिवार के सदस्यों के साथ सामूहिक तौर पर आखिरी मुलाकात थी। परिवार को उम्मीद है कि शायद एक दिन पीएमओ से फोऩ आए और पूरे परिवार को फिर एक साथ एकत्र होने का सौभाग्य मिले।