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मुर्दो का गांव

धर्मवीर भारती

1 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
3 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

उस गांव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं. लोग कहते थे कि वहां दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है. शाम होते ही क़ब्रें जम्हाइयां लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अंधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश में घूमा करते हैं. उनके ढीले पंजरों की खड़खड़ाहट सुनकर लाशों के चारों ओर चिल्लानेवाले घिनौने सियार सहमकर चुप हो जाते हैं और गोश्तखोर गिद्धों के बच्चे डैनों में सिर ढांपकर सूखे ठूंठों की कोटरों में छिप जाते हैं.| इसी वजह से जब अखिल ने कहा कि चलो, उस गांव के आंकड़े भी तैयार कर लें, तो मैं एक बार कांप गया. बहुत मुश्क़िल से पास के गांव का एक लड़का साथ जाने को तैयार हुआ. सामने दो मील की दूरी पर पेड़ों के झुरमुटों में उस गांव की झलक दिखाई दी. मील भर पहले ही से खेतों में लाशें मिलने लगीं. गांव के नजदीक पहुंचते-पहुंचते तो यह हाल हो गया कि मालूम पड़ता था, भूख ने इन गांव के चारों ओर मौत के बीज बोए थे और आज सड़ी लाशों की फसल लहलहा रही है. कुत्ते, गिद्ध, सियार और कौए उस फसल का पूरा फायदा उठा रहे थे.|  

murdo ka ganv

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