इस कहानी का ठिकाना अंग्रेजों के समय का इलाहाबाद रहा है। कहानी के तीन मुख्य पात्र हैं : चन्दर , सुधा और पम्मी। पूरी कहानी मुख्यतः इन्ही पात्रों के इर्दगिर्द घूमती रहती है। चन्दर सुधा के पिता यानि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के प्रिय छात्रों में है और प्रोफेसर भी उसे पुत्र तुल्य मानते हैं। इसी कारण चन्दर का सुधा के यहाँ बिना किसी रोकटोक के आना-जाना लगा रहता है। धीरे-धीरे सुधा कब दिल दे बैठती है, यह दोनों को पता नहीं चलता। लेकिन यह कोई सामान्य प्रेम नहीं था। यह भक्ति पर आधारित प्रेम था। चन्दर सुधा का देवता था और सुधा ने हमेशा एक भक्त की तरह ही उसे सम्मान दिया था। चंदर सुधा से प्रेम तो करता है, लेकिन सुधा के पापा के उस पर किए गए अहसान और व्यक्तित्व पर हावी उसके आदर्श कुछ ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि वह चाहते हुए भी कभी अपने मन की बात सुधा से नहीं कह पाता। सुधा की नजरों में वह देवता बने रहना चाहता है और होता भी यही है। सुधा से उसका नाता वैसा ही है, जैसा एक देवता और भक्त का होता है। प्रेम को लेकर चंदर का द्वंद्व उपन्यास के ज्यादातर हिस्से में बना रहता है। नतीजा यह होता है कि सुधा की शादी कहीं और हो जाती है और अंत में उसे दुनिया छोड़कर जाना पड़ता है। पम्मी के साथ चंदर के अंतरंग लम्हों का गहराई से चित्रण करते हुए भी लेखक ने पूरी सावधानी बरती है। पूरे प्रसंग में थोड़ा सेक्सुअल टच तो है, पर वल्गैरिटी कहीं नहीं है, उसमें सिहरन तो है, लेकिन यह पाठकों को उत्तेजित नहीं करता। लेखक खुद इस उपन्यास के कितने नजदीक हैं, इसका अंदाजा उनके इस कथन से लगाया जा सकता है।
33 फ़ॉलोअर्स
10 किताबें