वह विस्मित होकर रुक गया. नील जलपटल की दीवारों से निर्मित शयन-कक्ष-द्वार पर झूलती फुहारों की झालरें और उन पर इंद्रधनुष की धारियां. रंग-बिरंगी आभा वाली कोमल शय्या और उस पर आसीन स्वच्छ और प्रकाशमयी वरुणबालिका. उसका गीत रुक गया और वह देखने लगा, सौंदर्य की वह नवनीत ज्योति... वरुणा आगंतुक की ओर एक कुतूहल की दृष्टि डालकर सजग हो गई. सुरमई बादल के आंचल को उसने कंधों पर डाल लिया और बैठ गई. ‘उर्मि, क्या यही तुम्हारी नवीन खोज है?’ आगंतुक की ओर इंगित करते वरुणा बोली. ‘हां रानी’ साथ की मत्स्यबाला बोली.‘कल संध्या को अंतिम किरणें बटोरने हम लोग स्थल तट पर गई थीं, रानी? किंतु सहसा जल-बीचियों के नृत्य के साथ स्वर-लहरियां नृत्य कर उठीं-उनमें कुछ अभिनव आकर्षण था. हम लोग किरणें बटोरना भूल गईं|
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