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पश्यन्ती

धर्मवीर भारती

1 अध्याय
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4 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

पश्यन्ती के निबन्धों में धर्मवीर भारती की एक ऐसी बहुआयामी साहित्य-दृष्टि मिलेगी जो इतिहास की हवाओं की हर हलकी से हलकी हिलोर पर संवेदनशील मुलायम पीपल पाल की तरह कांप उठे। ग्रीक वीणा की तरह झंकार भी दे, और खुले हुए पाल की तरह तनकर तेज हवाओं को आत्मस्य कर, तूफानों को चीरने का साहस-पथ भी निर्दिष्टि करे। भारती जी ने समय-समय पर अनेक विषयों पर लिखा है और जब भी लिखा वह अत्यंत विचारोत्तेजक रहा है। इसीलिए उसकी व्यापक चर्चा भी हुई है। ‘पश्यन्ती’ उनके ऐसे ही कुछ निबन्धों का संकलन है। इन निबन्धों में मुखर व्यापक अध्ययन, प्रखर विश्लेषण, गहन चिंतन, पैनी ज्वलन्त शैली और मौलिक विवेचन का साहस सब मिलकर एक अनूठे रस का संचार करते हैं।  

pashyanti

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