मेरा कार्तिक धर्मी,
मेरी ज़िन्दगी सुकर्मी
मेरी कोख की धूनी,
काते आगे की पूनी
दीप देह का जला,
तिनका प्रकाश का छुआ
बुलाओ धरती की दाई,
मेरा पहला जापा
3 मई 2022
मेरा कार्तिक धर्मी,
मेरी ज़िन्दगी सुकर्मी
मेरी कोख की धूनी,
काते आगे की पूनी
दीप देह का जला,
तिनका प्रकाश का छुआ
बुलाओ धरती की दाई,
मेरा पहला जापा
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सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ था. जो कि उत्तराखंड में स्थित हैं. इनके पिताजी का नाम गंगा दत्त पन्त और माताजी का नाम सरस्वती देवी था. जन्म के कुछ ही समय बाद इनकी माताजी का निधन हो गया था. पन्तजी का पालन पोषण उनकी दादीजी ने किया. पन्त सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. बचपन में इनका नाम गोसाई दत्त रखा था. पन्त को यह नाम पसंद नहीं था इसलिए इन्होने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पन्त रख लिया. सिर्फ सात साल की उम्र में ही पन्त ने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था. सुमित्रनंदन पंत छायावादी युग के प्रमुख 4 स्तंभकारों में से एक हैं। उन्होंने सात वर्ष की उम्र में ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। उनकी प्रमुख रचनाओं में उच्छवास, पल्लव, मेघनाद वध, बूढ़ा चांद आदि शामिल हैं। उन्हें साहित्य में योगदान के लिए पद्मभूषण व ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।पन्त ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की. हाई स्कूल की पढाई के लिए 18 वर्ष की उम्र में अपने भाई के पास बनारस चले गए. हाई स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद पन्त इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढाई के लिए दाखिला लिया. सत्याग्रह आन्दोलन के समय पन्त अपनी पढाई बीच में ही छोड़कर महात्मा गाँधी का साथ देने के लिए आन्दोलन में चले गए. पन्त फिर कभी अपनी पढाई जारी नही कर सके परंतु घर पर ही उन्होंने हिंदी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन जारी रखा. 1918 के आस-पास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे. वर्ष 1926-27 में पंतजी के प्रसिद्ध काव्य संकलन “पल्लव” का प्रकाशन हुआ. जिसके गीत सौन्दर्यता और पवित्रता का साक्षात्कार करते हैं. कुछ समय बाद वे अल्मोड़ा आ गए. जहाँ वे मार्क्स और फ्राइड की विचारधारा से प्रभावित हुए थे. वर्ष 1938 में पंतजी “रूपाभ” नाम का एक मासिक पत्र शुरू किया. वर्ष 1955 से 1962 तक आकाशवाणी से जुडे रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया. | D