कोई पेड़ और मनुष्य
मेरे पास नहीं
फिर किसने मेरी झोली में
नारियल डाला?
मैंने खोपा तोड़ा
तो लोग गरी लेने आये
कच्ची गरी का पानी
मैंने कटोरों में डाला
कोई रख ना रवायत ना,
दुई ना द्वैत ना
द्वार पर असंख्य लोग आये
पर खोपे की गरी
फिर भी खत्म नहीं हुई।
यह कैसा खोपा!
यह कैसा सपना?
और सपनों के धागे कितने लम्बे!
यह छाती का सावन,
मैंने छाती को हाथ लगाया
तो वह गरी का पानी
दूध की तरह टपका।