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नौ सपने (भाग 8)

3 मई 2022

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यह कैसा भादों?

यह कैसा जादू?


सब बातें न्यारी हैं

इस गर्भ के बालक का चोला

कौन सीयेगा?


य़ह कैसा अटेरन?

ये कैसे मुड्ढे?

मैंने कल जैसे सारी रात

किरणें अटेरीं


असज के महीने

तृप्ता जागी और वैरागी


"अरी मेरी ज़िन्दगी!

तू किसके लिए कातती है मोह की पूनी!


मोह के तार में अम्बर न लपेट जाता

सूरज न बाँधा जाता

एक सच-सी वस्तु

इसका चोला न काता जाता"


और तृप्ता ने कोख के आगे

माथा नवाया

मैंने सपनों का मर्म पाया

यह ना अपना ना पराया


कोई अज़ल का जोगी

जैसे मौज में आया

यूँ ही पल भर बैठा

सेंके कोख की धूनी


अरी मेरी ज़िन्दगी!

तू किसके लिए कातती है

मोह की पूनी

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रचनाएँ
नौ सपने
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प्रेम और यौवन के धूप-छाँही रंगों में अतृप्त का रस घोलकर उन्होंने जिस उच्छल काव्य-बदिरा का आस्वाद अपने पाठकों को पहले कराया था, वह इन कविताओं तक आते-आते पर्याप्त संयमित हो गया है और सामाजिक यथार्थ के शिला-खण्डों से टकराते युग-मानव की व्यथा-कथा ही यहाँ विशेष रूप से मुखरित है ! अमृता प्रीतम हिन्दी साहित्य मे एक बहुचर्चित नाम है। उनका बचपन और प्रारंभिक जीवन भले ही विभिन्न प्रकार की कठिनाईयों के साथ गुजरा है और उन्हें मातृत्व सुख से वंचित रहना पड़ा है। बावजुद इसके अमृता प्रीतम साहित्य जगत में अपनी मुकाम बनाने में काफी सफल रही है। अमृता प्रीतम ने साहित्य लेखन में शृंगार रस की कविताओं से पदार्पण किया। अमृता की विराट प्रतिभा का दर्शन उनके साठ वर्षों तक साहित्य की सेवा और सौ से अधिक पुस्तकों , कहानियों कविताओं में होता है।
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नौ सपने (भाग 1)

3 मई 2022
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तृप्ता चौंक के जागी, लिहाफ़ को सँवारा लाल लज्जा-सा आँचल कन्धे पर ओढ़ा अपने मर्द की तरफ़ देखा फिर सफ़ेद बिछौने की सिलवट की तरह झिझकी और कहने लगी  आज माघ की रात मैंने नदी में पैर डाला बड

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नौ सपने (भाग 2)

3 मई 2022
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फागुन की कटोरी में सात रंग घोलूँ मुख से न बोलूँ यह मिट्टी की देह सार्थक होती जब कोख में कोई नींड़ बनाता है यह कैसा जप? कैसा तप? कि माँ को ईश्वर का दीदार कोख में होता.

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नौ सपने (भाग 3)

3 मई 2022
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कच्चे गर्भ की उबकाई एक उकताहट-सी आई मथने के लिए बैठी तो लगा मक्खन हिला, मैंने मटकी में हाथ डाला तो सूरज का पेड़ निकला। यह कैसा भोग था? कैसा संयोग था? और चढ़ते चैत यह कैसा सपना?

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नौ सपने (भाग 4)

3 मई 2022
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मेरे और मेरी कोख तक यह सपनों का फ़ासला। मेरा जिया हुलसा और हिया डरा, बैसाख में कटने वाला यह कैसा कनक था छाज में फटकने को डाला तो छाज तारों से भर गया

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नौ सपने (भाग 5)

3 मई 2022
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आज भीनी रात की बेला और जेठ के महीने यह कैसी आवाज़ थी? ज्यों जल में से थल में से एक नाद-सा उठे यह मोह और माया का गीत था या ईश्वर की काया का गीत था? कोई दैवी सुगन्ध थी? या मेरी नाभि की महक थ

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नौ सपने (भाग 6)

3 मई 2022
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आषाढ़ का महीना स्वाभाविक तृप्ता की नींद खुली ज्यों फूल खिलता है, ज्यों दिन चढ़ता है "यह मेरी ज़िन्दगी किन सरोवरों का पानी मैंने अभी यहाँ एक हंस बैठता हुआ देखा यह कैसा सपना? कि जागकर भी लग

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नौ सपने (भाग 7)

3 मई 2022
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कोई पेड़ और मनुष्य मेरे पास नहीं फिर किसने मेरी झोली में नारियल डाला? मैंने खोपा तोड़ा तो लोग गरी लेने आये कच्ची गरी का पानी मैंने कटोरों में डाला कोई रख ना रवायत ना, दुई ना द्वैत ना द्व

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नौ सपने (भाग 8)

3 मई 2022
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यह कैसा भादों? यह कैसा जादू? सब बातें न्यारी हैं इस गर्भ के बालक का चोला कौन सीयेगा? य़ह कैसा अटेरन? ये कैसे मुड्ढे? मैंने कल जैसे सारी रात किरणें अटेरीं असज के महीने तृप्ता जागी और वै

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नौ सपने (भाग 9)

3 मई 2022
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मेरा कार्तिक धर्मी, मेरी ज़िन्दगी सुकर्मी मेरी कोख की धूनी, काते आगे की पूनी दीप देह का जला, तिनका प्रकाश का छुआ बुलाओ धरती की दाई, मेरा पहला जापा

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