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नये घन

24 फरवरी 2022

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लाये कौन सँदेश नये घन !
अम्बर गर्वित
हो आया नत,
चिर निस्पन्द हृदय में उसके
उमड़े री पलकों के सावन !

लाये कौन सँदेश नये घन !

चौंकी निद्रित,
रजनी अलसित
श्यामल पुलकित कम्पित कर में
दमक उठे विद्युत् के कंकण !
लाये कौन सँदेश नये घन !

दिशि का चंचल,
परिमल- अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि !
जुगनू के लघु हीरक के कण !
लाये कौन सँदेश नये घन !

जड़ जग स्पन्दित,
निश्चल कम्पित,
फूट पड़े अवनी के संचित
सपने मृदुतम अंकुर बन बन !
लाये कौन सँदेश नये घन !

रोया चातक,
सकुचाया पिक,
मत्त मयूरों ने सूने में
झड़ियों का दुहराया नर्तन !
लाये कौन सँदेश नये घन !

सुख-दुख से भर,
आया लघु उर,
मोती से उजले जलकण से
छाये मेरे विस्मित लोचन !
लाये कौन सँदेश नये घन ! 

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रचनाएँ
नीलाम्बरा
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कवियत्री श्रीमती महादेवी वर्मा के काव्य में एक मार्मिक संवेदना है। सरल-सुथरे प्रतीकों के माध्यम से अपने भावों को जिस ढंग से महादेवीजी अभिव्यक्त करती हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है। वास्तव में उनका समूचा काव्य एक चिरन्तन और असीम प्रिय के प्रति निवेदित है जिसमें जीवन की धूप-छांह और गम्भीर चिन्तन की इन्द्रधनुषी कोमलता है। ‘नीलाम्बरा’ में संग्रहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवीजी ने यह स्वीकार किया है कि इसमें मेरी ऐसी रचनाएँ संग्रहीत हैं जो मेरी जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्यबोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी। महीयसी महादेवी की सम्पूर्ण काव्य-यात्रा न सिर्फ़ आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास बनने का साक्षी है, भारतीय मनीषा की महिमा का भी वह जीवन्त प्रतीक है। उनकी कविताएँ हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। मानव किसी शून्य में जन्म न लेकर एक विशेष भौगोलिक परिवेश में जन्म और विकास पाता है, जो धरती, आकाश, नदी, पर्वत, वनस्पति आदि का संघात है। मनुष्य का शरीर, जिन पंच तत्त्वों का सानुपातिक निर्माण है, वे ही व्यापक रूप से उसके चारों ओर फैले हुए हैं।
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24 फरवरी 2022
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