सैंटियागो : भारत में राजनीति क पार्टियां अपने पूर्वजों के नाम पर राजनीति दशकों से करती आयी है। उनकी यह रणनीति आजतक जारी है। कांग्रेस ने नेहरू, इंदिरा और राजीव गाँधी के नामों का खूब इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में किया। अब बीजेपी भी दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी बाजपेयी के नामों का इस्तेमाल अपनी योजनाओं के लिए करती है। वाक़ई भारत की राजनीतिक पार्टियों को क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के इस कथन से सीख लेनी चाहिए।
क्यूबा की नेशनल असेम्बली जल्द एक ऐसा कानून बनाएगी जिसकी घोषणा फिदेल कास्त्रो ने अपने जीवन काल में की थी। क्यूबा में आज भी विद्रोही चे ग्वेरा और कैमिलो सीनफ्यूगस जैसे क्रांतिकारियों की तस्वीरेें उनकी मृत्यु के दशकों बाद भी पूरे क्यूबा में नजर आती हैं। लेकिन क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने अपने जीवनकाल के दौरान राष्ट्रपति रहते हुए साफ़ कहा था कि देश के किसी भी सार्वजनिक स्थान या इमारत का नाम अपने नाम पर न रखा जाए।
फिदेल ने ऐसा न अपने जीवनकाल के दौरान किया और न ही इसकी इजाजत अपनी मौत के बाद दी थी। फिदेल के छोटे भाई राउल कास्त्रो ने पूर्वी शहर सैंटियागो में फिदेल कास्त्रो को श्रद्धांजलि देने के लिये एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुये कहा कि दिवंगत नेता की इस इच्छा को पूरा करने के लिए नेशनल असेंबली अगले सत्र में एक कानून पारित करेगीी।
उन्होंने बताया कि उनके भाई चाहते थे कि मृत्यु के पश्चात उनके नाम या उनकी पसंद का उपयोग किसी भी संस्थान, सड़क, पार्क अथवा अन्य सार्वजनिक स्थानों का नाम रखने के लिए न किया जाए। साथ ही उनकी आवक्ष प्रतिमायें अथवा मूर्तियां या उन्हें श्रद्धांजलि देने के नाम पर अन्य स्मारक भी न बनाए जाएं।
क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो का 25 नवंबर को 90 साल की उम्र में निधन हो गया। कास्त्रों की अस्थियां शनिवार दोपहर सैंटियागो पहुंची जिसके बाद हवाना के प्लाजा आॅफ द रिवोल्यूशन में शुरू हुई उनकी पूरे क्यूबा की चार दिवसीय अंतिम यात्रा ा संपन्न हो गई। बड़ी संख्या में लोगों ने अपने नेता को अंतिम विदाई दी।
फिदेल कास्त्रो के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए बोलीविया के राष्ट्रपति इवो मोरालेस, निकारागुआ के नेता डेनियल ओटरेगा, वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो, ब्राजील के दो पूर्व राष्टपति डिल्मा राउसेफ और लूला दा सिल्वा यहां आए थे।