आदित्य चौधरी, अभी कुछ माह पहले ही बैंगलूरू के जल बोर्ड बी.डब्लयू. एस.एस. बी. से रिटायर हुए हैं। बैंगलुरू में उन्होंने बीस साल नौकरी की। जल बोर्ड के सर्वेंट क्वार्टर में अपने बेटे अतुल के साथ पंद्रह साल काटे थे। फिर अतुल की एक बहुत बड़ी कम्पनी में जॉब लग गई और उसके आग्रह पर वो बेंगलुरु के पॉश एरिया हरालुर रोड स्थित शुभ एंक्लेव में शिफ्ट हो गए। एक साल पहले अतुल ने अपनी कॉलेज की सहेली मनीषा से शादी कर ली। तीनों बहुत आराम से एक दूसरे का साथ देते हैं। आदित्य जी वैसे भी अपनी बहू को बेटी की तरह रखते थे।
अतुल की मां का देहांत जब वह तीन साल की उम्र का था तब ही हो गया था। तब से आदित्य जी और अतुल दोनों ने एक दूसरे को संभाला, एक दूसरे का सहारा बने। आज भी अतुल इतना बड़ा अफसर बन गया, किन्तु अपने पिता के लिए उसके दिल में वही इज्ज़त है।
आदित्य जी बहुत बार उससे बोल पड़ते,"अतुल, तू तो मेरी ऐसे परवाह करता है जैसे मैं छोटा बच्चा हूं।"
अतुल प्यार से उनके गले लगते हुए कहता,"पापा, जब मैं छोटा था तब आप मेरी कितनी फ़िक्र करते थे। अब मैं बड़ा हो गया हूं तो मैं आपकी फ़िक्र करुंगा।"
और दोनों ज़ोर से इस बात पर ज़ोर से हंस देते हैं।
आदित्य जी ने रिटायर होने के बाद भी अपनी दिनचर्या को बहुत नियमित और व्यवस्थित रखा हुआ है। सुबह उठ वो अपने परम मित्र राम आहूजा के साथ सैर करने जाते हैं। घर आकर अपने लिए स्वयं चाय बनाते हैं और बहुत बार अपने नाश्ते के साथ बहू-बेटे के लिए भी नाश्ता बना देते हैं। हांलांकि मनीषा उन्हें मना भी करती है,"पापाजी, आप क्यों करते हैं? ये मेरा काम है। मैं कर लूंगी।"
इसपर वो बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं,"बेटा, आप देर रात तक अपने ऑफिस का काम करते हो। तो सुबह जल्दी क्यों उठना है? आराम से नींद पूरी करो। और ये कहां लिखा है कि ये काम आपका है और ये काम मेरा है? आप शाम को थक कर आते हो और किचन में लग जाते हो। तो आपको भी तो आराम की ज़रूरत है।"
मनीषा की आंखों में उनकी इन प्यार भरी बातें सुनकर अक्सर आंसू आ जाते हैं। वो अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती थी कि उसे पिता के समान प्यार करने वाले ससुर मिले हैं।
पर मनीषा और अतुल दोनों ये महसूस करते थे कि आदित्य जी अंदर ही अंदर बहुत अकेलापन महसूस करते हैं। यूं तो वो हर वक्त हंसते मुस्कुराते रहते हैं पर अपने बच्चों से वो उस हंसी के पीछे छिपे खालीपन को छिपा नहीं पाते।
"अतुल, तुम्हें नहीं लगता कि पापाजी बहुत अकेलापन महसूस करते हैं।" मनीषा ने कहा।
"जानता हूं मनीषा, और ये अकेलापन उनकी आंखों में बचपन से देख रहा हूं। पर क्या कर सकते हैं? मां के जाने का बहुत ग़म है उन्हें।" अतुल ने कहा।
"अतुल, एक बेबी प्लान करें। उससे उनका खालीपन खत्म हो जाएगा। वो बच्चे में व्यस्त हो जाएंगे।" मनीषा ने गहरी सोच में डूबते हुए कहा।
अतुल ने उसे हैरानी से देखा और बोला,"मनीषा! सीरियसली? मतलब कुछ भी बोल दोगी, बिना कुछ सोचे समझे। हम दोनों अपने ऑफिस के कामों में इतने उलझे हुए हैं, वर्क कमिटमेंट्स हैं हमारे, और हम ये बच्चे की प्लानिंग करने बैठ जाएं। हम बच्चे को समय दे ही नहीं पाएंगे। तो सारी ज़िम्मेदारी पापा पर आ जाएंगी। वो कैसे हैंडल करेंगे?"
"हम्मम….पर...तो हम एक केयरटेकर रख लेंगे। पापाजी का काम आसान हो जाएगा। बस सुपरविजन करना होगा उन्हें। कैसा लगा मेरा आइडिया?" मनीषा ने अतुल के करीब आते हुए कहा।
अतुल हंसते हुए बोला,"बच्चे भी ऐसा आइडिया नहीं देंगे जैसा तुमने दिया है। मनीषा, मां के जाने के बाद मेरी सारी ज़िम्मेदारी पापा पर आ गई। ऑफिस और मुझे, दोनों को पापा ने बखूबी संभाला। अपने ऊपर समय देना ही छोड़ दिया। अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों का तो गला ही घोट दिया था उन्होंने। अब उम्र के इस पड़ाव पर मैं उन्हें फिर से उसी ज़िम्मेदारी के बंधनों में नहीं बांधना चाहता। आई वॉन्ट हिम टू एन्जॉय लाइफ।"
मनीषा भी अतुल की बात से सहमत थी। पर रास्ता नहीं सूझ रहा था।
एक दिन आदित्य जी अपने बगीचे में पेड़ पौधों को पानी दे रहे थे कि बगल वाले घर के बाहर एक ट्रक आकर रुका। और मज़दूर ट्रक से सामान उतारने लगे।
"लगता है नये किराएदार आ गये हैं!" आदित्य जी मन ही मन में बोले।
तभी पीछे-पीछे एक कार आकर रुकी। उसमें से एक लड़का उतरा। वो लगभग उनके बेटे अतुल की उम्र का ही था। उसके पीछे जींस-पैंट पहने एक लड़की खड़ी थी। शायद उसकी पत्नी थी। दोनों ट्रक वालों को ध्यान से सामान उतारने की हिदायत दे रहे थे।
"ओह! आ गये नये किराएदार?" अतुल ने बाहर आकर कहा।
"हां" आदित्य जी ये कह पौधों को पुनः पानी देने में व्यस्त हो गए।
"मिश्रा अंकल का फोन आया था कल। बता रहे थे इनके बारे में। कह रहे थे कि बहुत अच्छे लोग हैं। लड़का और उसकी वाइफ बहुत बड़ी कम्पनी में कार्यरत हैं। पहले दिल्ली में थे अब यहां पोस्टिंग हो गयी है। साथ में उनकी माताजी हैं, जिन्हें मिश्रा अंकल बहुत अच्छी तरह जानते हैं। बहुत तारीफ कर रहे थे उनकी। मुझसे रिक्वेस्ट कर रहे थे कि थोड़ा उनकी हैल्प कर देना अगर उन्हें कुछ ज़रुरत हो तो।" अतुल ने आदित्य जी को सारी जानकारी देते हुए कहा।
"हां, हां बिल्कुल। दिल्ली से हैं तो बढ़िया बात है। तुम जाकर पूछ आओ उन्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिझक बता दें।" आदित्य जी ने कहा।
" दिल्ली से आज भी बहुत खास लगाव है आपको पापा। कोई भी दिल्ली से आता है तो आप खुश हो जाते हैं। ऐसा करो, आप भी चल लो साथ।" अतुल बोला।
आदित्य जी थोड़ा अनमने मन से बोले,"तू ही चला जा ना। मैं….बाद में मिल लूंगा।"
"ठीक है पापा।" कह कर अतुल उनसे मिलने चला गया। वो जानता था कि आदित्य जी नये लोगों से मिलने में असहजता महसूस करते हैं।
आदित्य जी दिल्ली की यादों को याद करते हुए गुनगुनाने लगे और अपने पौधों की गुदाई में व्यस्त हो गए। तभी एक महिला की आवाज़ उनके कानों में पड़ी। उस आवाज़ को सुनकर एक अजीब सी तरंग उनके पूरे शरीर में दौड़ पड़ी। उन्हें ऐसा लगा जैसे उस आवाज़ की खनक को वो पहचानते हैं।
वो उठे और उस दिशा में देखने लगे जहां से वो
आवाज़ आ रही थी।