नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब आठ नवंबर को अचानक 500 और 1000 रूपये के नोटों को बाजार से वापस मंगाने का फैसला लिया तो दावा किया गया कि यह पूरी तरह सीक्रेट प्लान था और इसकी जानकारी सरकार के मंत्रियों तक को नही थी। दावा यह भी किया गया कि बीजेपी के नेताओं को भी इसकी जानकारी नही थी। सरकार का इसके पीछे ऐसा करने का मकसद यह था कि ताकि किसी को भी अपनी ब्लैकमनी ठिकाने लगाने का मौका न मिले।
कानपूर के एक पत्रकार ने सरकार के इस फैसले को 13 दिन पहले 27 अक्टूबर ही बता दिया था। दैनिक जागरण के पत्रकार ब्रजेश दुबे ने खबर लिखी थी कि सरकार जल्द 500 और 1000 ने नोटों पर बड़ा फैसला ले सकती है और सरकार की योजना 2000 का नोट लाने की भी है।
हालाँकि एक न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में बृजेश ने बताया कि इस खबर को एक रूटीन न्यूज़ के तौर पर देखा जाए और उन्हें यह जानकारी सूत्रों से मिली थी। लेकिन यह यह बात भी साफ़ है कि आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने 20 अक्टूबर को का दौरा किया था। अखबार में सूत्रों ने बताया कि दुबे को इसी बोर्ड मीटिंग से कुछ जानकारी मिली थी।
अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह जानकारी पहले से ही कुछ लोगों को दे गई थी कि 500 और 1000 ने नोटों को वापस लिए जाने वाले हैं। पश्चिम बंगाल में सीपीआई-एम के राज्य सचिव सूरज कांत मिश्रा ने कहा, ‘पीएम मोदी की आठ नवंबर की घोषणा से कुछ घंटों पहले एक बीजेपी की पश्चिम बंगाल शाखा ने करोड़ रुपए एक सेविंग बैंक अकाउंट में जमा कराए गए थे। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा को पता था कि बड़े नोटों पर बैन लगाने जा रहा है।’
वहीँ दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि भाजपा की पंजाब शाखा के अध्यक्ष संजीव कम्बोज मोदी की घोषणा से कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर 2,000 रपए के नये नोटों के साथ दिखे थे। केजरीवाल ने कहा कि सरकार बताए कि यह पैसा कहां से आया और उनके किन दोस्तों का है? सीएनबीसी टीवी 18 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए केजरीवाल ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी के एलान से पहले पिछले तीन महीनों में बैंकों के डिपॉजिट में उछाल क्यों देखी गई?