नई दिल्ली : देश ने 8 नवंबर से लागू की गई नोटबंदी के बाद देशभर में महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना के तहत काम मांगने वालों की संख्या में जोरदार इजाफा हुआ है। करेंसी की कमी से देश में कैश पर चलने वाले कई पारंपरिक उद्योग बंद हो गए, जिसका परिणाम यह हुआ कि बंगाल, ओडिशा, झारखण्ड और बिहार जैसे राज्यों से बड़े शहरों में रोजगार के लिए आने वाले लोगों को बड़ी संख्या में वापस अपने घरों को लौटना पड़ा है।
बड़ी समस्या यह है कि नोटबंदी के बाद मनरेगा के तहत होने वाले भुगतान पर भी जोरदार असर पड़ा। नोटबंदी के कारण लोगों को मजदूरी नही दी जा सकी है। झारखण्ड जैसा राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। यहाँ के लोगों का कहना है कि उन्होंने अभी नए नॉट देखे तक नही हैं। सरकारी आंकड़ो की माने तो राज्य में पंजीकृत 26 लाख मनरेगा मजदूरों में से सिर्फ एक लाख पांच हजार ही अभी काम पर है।
वित्त वर्ष 2015-16 में इस योजना पर सबसे ज्यादा यानी 56,000 करोड़ रुपए खर्च हुए। इसमें 12,000 करोड़ रुपए बकाया मजदूरी के भुगतान पर खर्च हुए। इस स्कीम से वर्ष 2015-16 में पिछले 5 साल में सबसे अधिक रोजगार मिला।