नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 दिसंबर को जब अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुचेंगे तब वहां के दुनिया भर में अपने हुनर के लिए जाना जाने वाला बुनकर दस्तकार उद्द्योग उनकी तरफ आशा भरी निगाह से टकटकी लगाए देख रहा होगा.
100 अरब का धंधा हुआ चौपट
वाराणसी का बुनकर दस्तकार उद्योग करीब 100 अरब रुपये का बताया जाता है. लेकिन इन बड़े उद्योग में 90 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो रोजाना 250 रूपए की कमाई कर पाते हैं. हैंडलूम से लेकर बनारसी साड़ियों तक के कारोबार में लगे ये बुनकर नोटबंदी की मार झेल रहे हैं.
बुनकर चेक रखते हैं गिरवी
इसकी वजह इस पूरे कारोबार में पैसे के फ्लो की जटिलता है. वाराणसी के बुनकरों का पूरा व्यवसाय आम तौर पर अनौपचारिक तरीके से चलता है. साड़ी बनाने वाले एक कारीगर को पैसा तब मिलता है जब गद्दीदार साडी बेच लेता है. इस व्यवस्था की वजह से बुनकर हमेशा महाजनी कर्जो के फेर में फंसा रहता है. जब साड़ी बनाने वाले आर्डर डिलीवर करते हैं तो उन्हें एक बेयर चेक मिलता है. बुनकर के खाते में पहुँचाने से पहले न जाने कितने ही सप्लायर्स के अकाउंट्स से गुजरता है. आम तौर पर बुनकर इस चेक को गिरवी रख कर नगद ले लेते हैं.
नोटबंदी से उद्द्योग पर संकट के बादल
नोटबंदी के फैसले के 42 दिन बाद भी यह उद्द्योग संभल नहीं सका है. बाजार में गिरावट के कारण उत्पाद बिकने में मुश्किल आई है तो वही आर्डर कम होने के कारण बुनकरों के हाँथ में काम नहीं है. बिजनेस अखबार इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अर्थशास्त्रियों और एशियन डिवेलपमेंट बैंक ने अनुमान लगाया है कि 2017 के मार्च तक इकनॉमी में गिरावट आती रहेगी . रिजर्व बैंक हांलाकि इस बदलाव की समीक्षा लगातार कर रहा है मगर उसका अनुमान भी है कि जो पैसा बदला जा रहा है, उसकी प्रक्रिया में नए बिल्स, डिजिटल पेमेंट सिस्टम को चलन में आने में महीनों का वक्त लगेगा.
कैशलेश का फंडा मुश्किल
इस उद्योग के चरित्र को बदलना इतना आसन भी नहीं है. इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के अनुसार इस तरह के व्यवसाय में लगे छोटे उद्यमी बैंक से कर्ज पाने की औपचारिकता नहीं पूरी कर पाते इसलिए उनकी निर्भरता महाजनी कर्जे पर टिकी है और अब महाजन नए नोट की मांग कर रहा है. दूसरी तरफ बुनकरों की दिहाड़ी भी नगद में ही देनी पड़ती है. ऐसे देश में जहाँ आज भी 1 लाख लोगों पर 13 बैंकों की शाखाएं हैं और 4 में से सिर्फ एक शख्स की इंटरनेट तक पहुंच है वहां अचानक से सारे कारोबार को बैंकिंग सिस्टम में लाना बहुत मुश्किल है और कैशलेश का फंडा तो यहाँ चलना बहुत ही मुश्किल है.
सहूलियत के क्या इंतजाम हैं मोदीजी ?
ताजा आंकड़े बताते हैं कि एकल परिवार चलाने वाले करीब 96 प्रतिशत लोग संगठित गैर- कृषि उद्यमों को चलाते हैं, जिसमें से केवल एक प्रतिशत को ही सरकार से लोन मिल पाता है. ऐसे में जब पीएम मोदी बनारस पहुंचेंगे तब उनके बुनकर वोटरों की निगाहों में यह सवाल भी होगा कि इस नयीें व्यवस्था में उनके लिए सहूलियत के क्या इंतजाम है ? बनारस के इन बुनकरों को उसका जवाब मिलेगा या नहीं यह तो गुरुवार को ही पता चलेगा.