हुसन को अवगत करादो
कि ढूँढे कोई और द्वार
मैं निर्धन की तरूणी
हूँ मुझे अवकाश नहीं है
बालपन से कठिनाइयों के
अंचल में पली-बढ़ी मैं
राशन कार्ड, मध्याह्न
भोजन या बने योजना खाद्य सुरक्षा की
राशन डीपू, पानी के
नल, कुएं की पक्की सखी हूँ मैं
चूलहे चौके के धूएं
में प्रतिपल आँखें अंधी कराती रही हूँ मैं
वे करें मोलभाव ख्वाबों से जिनकी आँखों पर
है परत सोने की
मैं अभावों का किस्सा हूँ मुझे अवकाश नहीं
है
रोशनी की आस में जिंदगी के पालने में
साँसों की डोरी पर सुबह शाम रेंगती रहती
हूँ मैं
मान लिया मैने कि मैं मानव का मन लिए हूँ
पर देह रुपी दीवार पर तस्वीर सी जवानी लिए
हूँ
पेट की आग बुझाऊं या
रचाऊँ रासलीला
मानव हूँ किंतु
देवताओं से कठिन जीवन जीती हूँ
भँवरों-तितलियों के
लिए उद्यान-भोज है करने को व्यापार प्यार का
मैं उपासना की
दीवानी हूँ मुझे अवकाश नहीं है
जीवनयापन कर रही हूँ
क्योंकि मैं जगतजननी का खिताब लिए हूँ
मानव की प्रगतिरोधक प्रत्येक
आफत से भिड़ी हूँ मैं
मैं वक्त के पन्नों पर परिश्रम के किस्से
लिख रही हूँ
निद्रा का सोमरस न फुहारो मैं इम्तिहान का
समय हूँ
है जिनके पास समय फंसें वे रुपजाल के भँवर
में
मैं श्रम की दीवानी हूँ मुझे अवकाश नहीं
है
जिंदगानी आखिर कब तक सब्र का इम्तिहान
लेगी
घुटन जितनी ही बढ़ेगी आग उतनी ही फैलेगी
भूख क्या होती है यह
निर्धन ही जानते हैं
सूखे से दो-चार होकर
घर संसार त्यागते हैं
तुफानो को करना
आमंत्रित दर्द वाले जानते हैं
परंपराओं की राख कब
तक आग के सर चढ़ेगी
शौक हो जिन्हें जिएं
परछाईयों की आड़ में
मैं रोशनी का प्रतीक
हूँ मुझे अवकाश नहीं है