भारत ऋतुओं का देश है।
यहां अपनी-अपनी बारी से 6 ऋतुएं आती हैं । इन सभी में से बसंत ऋतु सबसे हरमन
प्यारी है । बसंत पंचमी मूल रुप से प्रकृति का उत्सव है । इस दिन से धार्मिक,
प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कार्यों में बदलाव आना आरंभ हो जाता है । बसंत पंचमी
प्रकृति के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से अपने को समझने, नए संकल्प लेने और उसके लिए
साधना आरंभ करने का पर्व भी है । माना जाता है कि माघ
शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ज्ञान अर्जित करने की कला आदि शब्द-शक्ति प्राणीमात्र
को प्राप्त हुई थी । इसलिए यह त्यौहार स्कूलों में मनाया जाता है । बसंत पंचमी पर
पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और तिलक लगाने का विधान है । इस माह
पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें पकने वाली होती हैं । यह रंग समृद्धि का
सूचक भी माना जाता है । इस दिन बिना मुहुर्त जाने शुभ एवं मांगलिक कार्य किए जाते
हैं । बसंत पंचमी ऋतुराज बसंत के आगमन का पहला दिन भी होता है । जब लोग ठंड से
कांप रहे होते हैं तब उनका ध्यान बसंत ऋतु की ओर ही रहता है । बसंत ऋतु आने पर लोग
बहुत प्रसन्न होते हैं । हर कोई यही समझता है कि अब खुली गर्माहट और सभी को नया
रुप देने की ऋतु आ गई है । बसंत पंचमी का स्वागत करने के लिए स्थान-स्थान पर समागम
होते हैं । इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं । खिलौनो और मिठाइयों की दुकाने सजती हैं
। लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं । घर-घर बसंती हल्वा, चावल और केसरी खीर बनती
है । बच्चे और युवा पीले रंग की पतंगों को रंग-बरंगी डोर से आकाश में उड़ाकर
पतंगबाजी करते हैं । मेलों में पहलवानो की कुश्ती और खेल तमाशों का विशेष प्रबंध
किया जाता है । बच्चे झूला झूलते हैं । इस दिन का महत्व बाल हकीकत राय की शहीदी के
साथ भी है । इस दिन इस वीर को अपने धर्म के प्रति पक्का रहने पर मौत के घाट उतार
दिया गया था । इस दिन उस वीर की याद में कवि दरबार भी होते हैं । इस दिन 1816 ई.
में महाराजा रंजीत सिंह की सेना में रहे तथा बाद में कूका पंथ के संस्थापक बने और
हिंदी धर्म की रक्षा करते हुए अपने शिष्यों सहित अंग्रेजों के अत्याचार का शिकार
हुए गुरु राम सिंह कूका का जन्म लुधियाणा के भैणीं ग्राम में हुआ था । 28.02.1899
बसंत पंचमी हिंदी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का
जन्मदिवस भी है । इस ऋतु में न तो सर्दी की ठंड होती है तथा न ही ग्रीष्म की गर्मी
बल्कि यह गर्माहट देने वाली और सुहावणी होती है । जीव-जंतुओं और पौदों में नए जीवन
का संचार होता है । छोटे पौदों और पेड़ों के जिन पत्तों को शरद ऋतु ने झाड़ दिया
होता है वे फिर से हरे होने लगते हैं । सच ही है कि इस ऋतु में कुदरत नवविवाहित
दुल्हन की तरह फबती है । पेड़ों के ऊपर नए पत्ते और फूलदार पौधों के फूल एकबार तो
मन को मंत्रमुगध कर देते है । बसंत के फूलों से भरा आला-दुआला इस तरह लगता है जैसे
कुदरत पीले गहने पहन कर बसंत मना रही हो । मधु-मक्खियां और तितलियां फूलों के ऊपर
उडारियां मारती हैं और भँवरे खुशी में भूँ-भूँ करते हैं । इन दिनो आम को बूर पड़
जाता है तथा छोटी-छोटी अंबियां लगनी शुरु हो जाती हैं । कोयल की कू-कू सुनकर हर
किसी के मन को मस्ती चढ़ जाती है । हर किसी का मन करता है कि वह बाहर जाकर इस
सुगंधित वातावरण में अपना मन प्रसन्न करे । भारत की कोई भी ऐसी बोली नहीं होगी जिसके
कवि ने बसंत ऋतु की महिमा में कविता न लिखी हो । यह ऋतु मानव की सेहत बनाने और
निखारने के लिए बहुत बढ़िया है । इसमें हमें रोजाना सुबह की सैर करनी चाहिए और
सेहत बनाने वाला भोजन करना चाहिए।