आस्था से तात्पर्य है कि समग्र रुप से स्थिर या स्थित होना। यह आस्था किसी व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से संबंधित हो सकती है। जैसे कोई देव या देवालय। आ का मतलब समग्र रुप से व स्था का मतलब स्थिर रहने की अवस्था । विदेशों में भी पूर्व में आस्था व अंधविश्वास था। जर्मनी व फ्रांस जैसे देशों में भी पहले यह स्थिति चरम पर रह चुकी है। नेपोलियन बोनापार्ट और रोम के पोप पियस 7 के बीच विवाद की घटनाएं व पोप के साथ हुए अभद्र व्यवहार के कारण पोप द्वारा बड़बड़ाए गए यह शब्द कि ‘ भगवान नेपोलियन को सद्बुद्धि दे ‘ आज भी इतिहास का एक हिस्सा हैं। मगर आधुनिक काल में वै
ज्ञान िक व तार्किक शिक्षा के बल पर विकसित पश्चिम जगत इस समस्या पर पार पा चुका है। मगर अपने विरोधिओं को उलझाने के लिए आस्था का गलत इस्तेमाल करने में पश्चिम जगत भी पीछे नहीं है। आस्था की परंपरा को निभाने के लिए शैतान को पत्थर मारने की परंपरा है मगर अनेक बार वहां हादसे होते हैं मगर पश्चिम के प्रति आस्था रखने वाला देश सऊदी अरब इस समस्या से पार पाने में असफल है। आस्था के नाम पर अंधविश्वास बढ़ने से आमजन को आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्तर पर हानि होती है। इससे धर्म की भी हानि होती है। धर्म के प्रति आस्था भी डांवाडोल होती है। मानव का मन चंचल है। डांवांडोल रहता है। बच्चे का मन तो कोरी सलेट होता है। जो लिखोगे वही पढ़ेगा । पंजाब में पैदा होने वाला बच्चा पंजाबी ही बोलेगा व पंजाबी रीति-रिवाजों की ही पालना करेगा। यही अवस्था भारतवर्ष के अन्य राज्यों में भी है। परंपराओं का पालन करने वाला एवं धर्म अध्यात्म पर चलने वाला प्रत्येक साधक भक्त पहले अंधा ही होता है। वह सद्गुरु के कहने पर विश्वास करता है इसलिए अंधा होता है। मगर धार्मिक कुरीतिओं व रुढ़ीवादी परंपराओं के कारण किसी एक धर्म में से अनेक धर्मों का उदय होता है। भारत में बुद्ध धर्म, जैन धर्म, मुस्लिम धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म और डेरा संस्कृति के उत्थान के कारण एक समान हैं। हिंदु धर्म की रुढ़ीवादी व त्रृटिपूर्ण परंपराओं से भारतीओं को बचाने के लिए भगवान बुद्ध ने अवतार लिया। संसार की दुख तकलीफें उनसे देखी नहीं गईं इसलिए राजकुमार सिद्धार्थ ने सन्यासी जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया। लोगों को अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। मगर वही बुद्ध धर्म को मानने वाले देश जापान ने प्रथम व द्वीतीय विश्व युद्धों में अग्रणी भूमिका निभाई। आजाद हिंद फौज के सहयोग से भारत के पूर्वी राज्यों में प्रवेश भी किया और कहते हैं कि भारतीओं पर उतने जुल्म अंग्रेजों ने 200 साल में नहीं किए जितने जापानिओं ने 2 साल में कर दिए। फिर बारी आती है मुस्लिम दमनकारिओं की। दमनकारी नीतिओं से हिंदुओं को मुस्लिम बनाया। मुस्लिम जबर जुल्म से मुकाबला करने के लिए सिख धर्म का उदय हुआ और साथ ही साथ अविभाजित पंजाब के क्षेत्र में अनेक धार्मिक डेरे अस्तित्व में आए जिनमें से अनेकों ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया। मगर स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत सिख धर्म में उच्चजातियों का आधिपत्य होने के कारण दलितों व दबे कुचलों को सम्मान नहीं मिलने के परिणास्वरुप पंजाब में डेरों की संख्या में बढ़ोतरी होती चली गई। पंजाब में डेरों की परंपरा परतंत्र काल से ही है। 2009 में चंडीगढ़ के एक अखबार में छपे एक सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब के गांवों में 9000 सिख तथा 12000 गैरसिख डेरे हैं। अनुयाइयों में अधिकतर संख्या दलितों, गरीबों, दबे कुचलों तथा भूमिहीनो की है। संख्या बढ़ने का कारण टूटते परिवार, बदलते आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक समीकरण और संपन्नता का असमान बंटवारा है । सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि न तो आजादी से पूर्व तथा न ही आजादी के बाद भारत की किसी भी सरकार ने गरीबों की गरीबी दूर करने का प्रयास नहीं किया। वर्तमान में पंजाब व हरियाणा के प्रमुखत: राधा स्वामी, सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, दिव्य ज्योति जागरण संस्थान, भनियारावाला और रविदासी डेरे हैं । इन डेरों की देश विदेश में अकूत संपत्ति है। दिलचस्प बात यह है कि किसानो की हालत इतनी पतली है कि वे कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्याएं करने को मजबूर हैं और बाबाओं की
कृषि योग्य एवं गैरकृषि योग्य जमीन बढ़ती ही चली जा रही है। संपत्ति कितनी होगी इसका अंदाज लगाना तो एक कठिनतम कार्य है। इन डेरों के अपने अपने ग्रंथ होते हैं जो अपने अपने तरीके से समाज की उत्पति के तरीके बताते हैं। निरंकारी मिशन और डेरा सच्चा सौदा की ओर से सिख परंपराओं का उचित सम्मान नहीं करने के कारण निरंकारिओं व डेरा सच्चा सौदा समर्थकों में खूनी संघर्ष हो चुके हैं। सामाजिक न्याय दिलाने के नाम पर यह डेरा संचालक भक्तों का शोषण करने की हद तक चले जाते हैं। सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र की मुश्किल घड़ी में लोग त्वरित समाधान चाहते हैं, लिहाजा किसी चमत्कारिक व्यक्तित्व को तलाशते हैं और उसी घड़ी का यह तथाकथित बाबा फायदा उठाते हैं। एक समय था जब राजा महाराजा अपनी भूलें बक्शवाने के लिए सन्यास धारण कर लेते थे मगर आज की स्थिति देखिए साधू सन्यासी राजकाज पर कब्जा जमाने को लालायत हैं। अनेक योगी तथा योगनियां मंत्री तथा मुख्यमंत्री की गद्दियों पर आसीन हैं। बाबा रामदेव की राजनैतिक महत्वाकांशा किसी से छुपी नहीं है। हमेशा किंगमेकर की भूमिका में नजर आने वाले आसाराम बापू अपने कुकर्मों के कारण जेल की हवा खा रहे हैं, बाबा रामपाल तथा बाबा गुरमीत राम रहीम पर तो सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की धाराओं के तहत देशद्रोह के केस दर्ज हो चुके हैं। राधे माँ पर किसी भी समय सरकारी डंडा चल सकता है। बाबाओं व डेरों के उत्थान के कारण हैं वैज्ञानिक/तार्किक शिक्षा का अभाव, धर्म और शिक्षा का अनैतिक घालमेल, व्यक्ति पूजा का व्यवसायीकरण, आस्था और अंधविश्वास, लोगों में चमत्कार की चाहत, राजनैतिक व सरकारी तुष्टिकरण । 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता संग्राम के अगुवाओं द्वारा फौजिओं में फैलाई गई यह खबर कि अंग्रेजों की ओर से सप्लाई किए जा रहे कारतूसों को गाय व सुअर की चर्बी लगी हुई है, को आस्था व अंधविश्वास की किस श्रेणी में रखना वाजिब होगा यह एक विचारणीय तथ्य है। गुरु की महत्ता क्या होती है इसका एक उदाहरण हमें महाभारत काल में मिलता है जब गुरु द्रोण ने अपने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर शिष्य अर्जुन के हक में एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में माँग लिया था। भक्त कबीर कहते हैं ‘ गुरु और गोविंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाए, बलिहारी जाऊं गुरु आपने जिन गोविंद दिओ मिलाए ’ । मगर यह कलयुगी ढोंगी गुरु वंचितों को सस्ती दरों पर वस्तुएं का प्रलोभन देकर तथा अपने साथ जुड़े कुछ प्रभावशाली व्यक्तिओं के माध्य़म से उनके छोटे मोटे काम कराकर और उनके बेटे-बेटियों की शादीयां करवाकर अपने भक्तों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जिससे खतरा यहां तक बढ़ गया है कि कहीं आस्था चैनल जेल से ही न प्रसारित होना आरंभ हो जाए। इसलिए आस्था व अंधविश्वास से पूर्व पारखी नजर रखना बहुत ही आवश्यक है। आस्था एवं अंधविश्वास के कारण यदि स्वयं का अस्तित्व ही मिटा लिया तो मानव का संसार में आना कोई मायने नहीं रखता । खुद का अस्तित्व बचेगा तभी तो आस्था का महत्व है। यदि स्वयं का अस्तित्व ही समाप्त हो गया तो आस्था रखने का क्या लाभ।
विजय कुमार शर्मा की अन्य किताबें
मैं राजनीति शास्त्र एवं हिंदी में एम.ए हुं, अपने विभाग में यूनियन का अध्यक्ष रह चुका हुं, जिला इंटक बठिंडा का वरिष्ठ उप प्रधान रह चुका हुं, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बठिंडा एवं भुवनेश्वर का सदस्य-सचिव रह चुका हुँ, वर्तमान में अखिल भारतीय कर्मचारी भविष्य निधि राजभाषा संघ का सलाहकार हूँ, आयकर विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत रह चुका हुँ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर हिंदी मामलों से संबंधित विशेषज्ञ पेनलों एवं हिंदी संगोष्टियों का हिस्सा रह चुका हुं, अलग-अलग नाम से विभागीय और नराकास की 12 से भी अधिक पत्रिकाओं का संपादक रह चुका हुँ, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात जुलाई, 2019 से बतौर परामर्शदाता कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में तैनात हूँ, 05 वर्ष तक श्री साईं कॉन्वेंट स्कूल, अमृतसर के प्रधानाचार्य का पद संभाला और कुछ समय तक एनडीएमसी, दिल्ली के सोशल एजुकेशन विभाग के कौशल विकास अनुभाग का कार्य भी देखा। मनसुख होटल और करतार होटल अमृतसर का प्रबंधक रह चुका हूँ , भाषाकेसरीओएल के नाम से मेरा यूट्यूब चैनल है और स्वयं की ओर से लिखित पुस्तकों का लेखक भी हूँ ।D