अगर कहीं रेलगाड़ी से दिल्ली स्टेशन को लिंक करते नगरों की
यात्रा पर निकलें तो मैरिज ब्यूरो का एक विज्ञापन दिवारों पर लिखा मिलेगा – दुल्हन वही जो दादा जी दिलाएं । दशकों पूर्व सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्दांगनी जया भादुड़ी स्टारर एक फिल्म आई थी जिसका शीर्षक था दुल्हन वही जो पिया मन भाए। जीवनचक्र के दौरान हम अनेक वास्तविकताओं से रुबरु होते हैं। जिसमें से एक है जब कोई बिना सोचे समझे पानी की तरह पैसा बहाता है तो जनता कुछ कर तो सकती नहीं मगर अवसर का फायदा उठाना वाले बहती गंगा में हाथ धोते हैं वहीं जो सफल नहीं होते वो कहते हैं कि इसका ताजा ताजा बाप मरा है इसलिए बिना सोचे समझे बाप की मेहनत की कमाई उड़ा रहा है। इसी तरह किसी समय मैं एक घटना से रुबरु हुआ था जिसमें दो भाइयों का पिता दिल का दौरा पड़ने से मर गया। मृत पिता को संभालना तो दूर दोनो में जायदाद के बंटवारे पर झगड़ा हो गया। दोनो भाई संयुक्त परिवार में रहते थे मगर जिस भाई के यहां मौत हुई थी वही दावा ठोकने लगा कि पिता की मौत उसके घर में हुई है इसलिए ज्यादा जायदाद वही लेगा। मगर दूसरा कहां मानने वाला था। उसने अपने पिता के मृत देह का पैर पकड़ा और मृत देह को घसीटते हुए अपनी ओर ले गया। समझौता होने पर ही मृत देह का दाह संस्कार हुआ। यह एक सर्वस्वीकार्य सत्य है कि जीवनचक्र में जो तेजी दिखाने में सक्षम है वही लाभ उठा सकता है। मामला फिर चाहे जिंदा जिंदगी का हो या मृत का। कुछ ऐसी भी मृत देह होती हैं जो या तो अपने जीवनकाल में अथवा मौत के बाद अपने उत्तराधिकारिओं को मालामाल कर जाती हैं। मुंशी प्रेमचंद पूरा जीवन दो जून की रोटी के लिए झूझते रहे मगर उनकी मृत्यु के उपरांत उनकी
लेख नी की ताकत ने उनके उत्तराधिकारिओं के ऊपर लक्ष्मी की जमकर वर्षा की। एकबार मैं अपने बच्चों को दिल्ली दर्शन पर लेकर निकला था। दिल्ली दर्शन के दौरान बस के गाइड ने एक भवन दिखाते हुए बताया कि धीरुभाई से संबंधित यह भवन पूरा होने से पूर्व धीरुभाई अंबानी परलोक सिधार गए थे। यह भी बताया गया कि जिन सप्लायरस ने भवन के लिए सामान सप्लाई किया था कुछको तो उनका पैसा मिला ही नहीं और जिन भाग्यशालिओं को मिला उनके भी जूते घिस गए। वहीं रिलांयस ने जिस किसी से पैसा लेना हो उसको पता नहीं कहां-कहां से कानूनी नोटिस आते हैं। पूरी दुनिया ने मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच धीरुभाई अंबानी की विरासत बांटने हेतु सरफुटव्वल होते देखा। अब बात आती है भारतीय महापुरुषों से होने वाली लाभ-हानि की। जब 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो विश्व हिंदु परिषद के दिवंगत नेता श्री अशोक सिंघल ने मीडिया को ब्यान देते हुए कहा था कि 700 वर्षों बाद दिल्ली की गद्दी पर नरेंद्र मोदी के रुप में पहली बार हिंदु राजा बैठा है। उनका ईशारा दिल्ली के अंतिम हिंदु शासक पृथ्वीराज चौहान के बाद फिर से हिंदु राज स्थापित होने के मामले में साफ संकेत था कि स्वतंत्र भारत में भाजपा के सर्वस्वीकार्य प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी सहित मोदी से पहले बनने वाले प्रधानमंत्रिओं में से कोई भी हिंदु शासक नहीं था। मगर वो यह भूल गए कि कट्टरवादी संगठन ऑनर किलिंग के समर्थक हैं व प्रेमविवाह के भी विरोधी हैं। यहां यह भी बताना आवश्यक है कि श्री पृथ्वीराज चौहान जबरदस्ती कन्नौज के उन दिनों के शासक जयचंद की पुत्री संयोगिता को शादी के मंडप से उठाकर ले गए थे। यह इतिहास में दर्ज है कि जयचंद ने मोहम्मद गौरी के साथ मिलकर सदा के लिए भारत को विदेशिओं का गुलाम बनवा दिया। अंग्रेज जब कोलकाता से भारत की राजधानी दिल्ली लेकर आए थे तो उन्होंने दिल्ली पर शासन कर चुके प्रत्येक शासक के नाम से एक मार्ग वनवाया था। मगर नाम बदलो अभियान के तहत वर्तमान सरकार ने लीक से हटकर भारतीय हिंदुओं पर सबसे अधिक अत्याचार करने वाले मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह को धर्मनिर्पेक्षता का तमगा पहनाकर उसके नाम से मार्ग का नाम परिवर्तित कर दिया जबकि यही कट्टरवादी पंडित नेहरु को सोशल मीडिया में मुस्लिमों का उत्तराधिकारी प्रचारित कर बदनाम करने संबंधी दुष्प्रचार करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी तो भारतीओं के पास थे मगर भारत में राष्ट्रमाता का आकाल था। भारतीओं की मुराद पूरी करने को श्री संजयलीला भंसाली आगे आए और पदमावती पर एक फिल्म बना डाली। फिर क्या था मृत पूर्वजों से लाभ उठाने वाले कूद पड़े मैदान में। पदमावती एक महाकाव्य का किरदार है जिसे बहुत से इतिहासकार अस्तित्व में मानते ही नहीं। मगर एक वीरांगना का इतिहास बताकर आत्महत्या करने वाले किरदार को कोई अपनी आन-बान-शान बता रहा है तो वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने पदमावती को राष्ट्रमाता घोषित करते हुए आने वाले वर्षों में पुरस्कार देने की घोषणा करदी है। अगर आत्महत्या करने वाला नायक है तो जंग-ए- मैदान में शहीद होने वाले किरदार का कद तो घटेगा ही। मैं बात करना चाहुंगा ब्राहमण परिवार में जन्मी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की। याद कीजिए उस बलिदानी को जिसने अंतिम साँस तक अंग्रेजों के सामने हथियार नहीं डाले तथा अंतिम साँस तक डटकर अंग्रेजों के दांत खट्टे किए। अब बात आती है मृत सरदारों की । सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम से हाथ छिटकते वोट मिलने की आशा है तो उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा बनवाई जा रही है वहीं दूसरी ओर ट्रीब्यून
समाचार पत्र के संस्थापक, प्रथम भारतीय स्वदेशी बैंक पंजाब नेशनल बैंक के निदेशक मंडल के प्रथम अध्यक्ष की ओर से स्थापित दयाल सिंह के नाम का शासन चला रहे राजनैतिक दल को उनके मृत्यू पूर्व नाम का कोई फायदा नहीं इसलिए उनकी ओर से स्थापित कॉलेज का नाम बदलकर वंदे मातरम करने के ढीठ एवं बेतुके तर्क दिए जा रहे हैं। पूर्व शासकों में से पंजाब के शासक महाराजा रंजीत सिंह तथा मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने जमकर अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे। मगर वर्तमान में सरकार में चल रहे राजनैतिक दल को पंजाब में तटस्थ रहकर फायदा है तथा कर्नाटक में टीपू का विरोध करके वोट मिलने की उम्मीद है। ऐसे में मैं अपने लेख का नाम पूर्वज वही जो लाभ दिलाए न करुं तो और कोई चारा बताएं।
विजय कुमार शर्मा की अन्य किताबें
मैं राजनीति शास्त्र एवं हिंदी में एम.ए हुं, अपने विभाग में यूनियन का अध्यक्ष रह चुका हुं, जिला इंटक बठिंडा का वरिष्ठ उप प्रधान रह चुका हुं, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बठिंडा एवं भुवनेश्वर का सदस्य-सचिव रह चुका हुँ, वर्तमान में अखिल भारतीय कर्मचारी भविष्य निधि राजभाषा संघ का सलाहकार हूँ, आयकर विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत रह चुका हुँ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर हिंदी मामलों से संबंधित विशेषज्ञ पेनलों एवं हिंदी संगोष्टियों का हिस्सा रह चुका हुं, अलग-अलग नाम से विभागीय और नराकास की 12 से भी अधिक पत्रिकाओं का संपादक रह चुका हुँ, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात जुलाई, 2019 से बतौर परामर्शदाता कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में तैनात हूँ, 05 वर्ष तक श्री साईं कॉन्वेंट स्कूल, अमृतसर के प्रधानाचार्य का पद संभाला और कुछ समय तक एनडीएमसी, दिल्ली के सोशल एजुकेशन विभाग के कौशल विकास अनुभाग का कार्य भी देखा। मनसुख होटल और करतार होटल अमृतसर का प्रबंधक रह चुका हूँ , भाषाकेसरीओएल के नाम से मेरा यूट्यूब चैनल है और स्वयं की ओर से लिखित पुस्तकों का लेखक भी हूँ ।D