नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही वर्तमान सरकार का अस्तित्व में आने का एक ही कारण था कि देश में ईमानदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार चल रही थी। मेरे जीवन का एक अनुभव है कि ईमानदार शख्सियत या तो अपना स्वयं का नुकसान कर सकती है या अपने जैसे ही किसी ईमानदार का। वर्तमान में भ्रष्टाचारियों पर हाथ डालना ईमानदारों के बूते की बात नहीं रह गई है। भ्रष्टाचारी धराशायी होने से पहले अपने साथ असंख्य ईमानदारों/अर्ध ईमानदारों को लपेटे में लेने की क्षमता रखता है। राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय क्षत्रपों ने जमकर इस माहौल का फायदा उठाया। नतीजतन फायदा किसी और ने उठाया और बदनामी किसी और के माथे का कलंक बन गई। चर्चित हुआ कोयला घोटाला मगर कोयला क्षेत्र वाले किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं थी। 2जी घोटाला मगर मंत्रालय था क्षेत्रीय घटक दल के पास। कॉमनवेल्थ घोटाला मगर सुरेश कल्माडी भाजपा के पूर्व सहयोगी और दिल्ली की सभी नगर निगमों में भाजपा का कब्जा। कॉमनवेल्थ
खेल ों का एक सकारात्मक पहलू भी था जो घोटाले के शोर की बलि चढ़ गया। पहली बार भारतीय खिलाड़ियों ने मेडलों के आंकड़े को 100 के ऊपर पहुंचाया। इन खेलों का एक सनसनीखेज पहलू भी है कि सुरेश कल्माड़ी को इन खेलों को भारत लाने के लिए एक नहीं अनेक शेरों के जबड़े में हाथ डालना पड़ा था। इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के पास स्टेडियम हमेशा तैयार रहते थे। उनकी नियमित आय को कम करते हुए कल्माड़ी इन खेलों को भारत लाए। कटु सत्य यह भी है कि शेर के जबड़े से मांस छीनने का प्रयास जानलेवा ही हो सकता है। यह भी एक सत्य है जिन नगरों में विश्व स्तर की खेलों का आयोजन होता है कम से कम 10-15 वर्षों तक खर्च की भरपाई हेतु उस नगर के वासियों को अतिरिक्त कर बोझ वहन करना पड़ता है। कॉमनवेल्थ जैसे खेलों के आयोजन से इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के खर्च की नियमित प्रतिपूर्ति होती रहती थी। मगर खलनायक बनकर श्री सुरेश कल्माड़ी उनके रास्ते में आ गए। मनमोहन सरकार के पूरे दौर में भाजपा की किसी भी सरकार को अस्थिर नहीं किया गया था। इसके इतर मनमोहन सरकार के दौर में एक माहौल सा बन गया था कि जो कोई भी चाहे आंदोलनकारी बनकर दिल्ली की ओर कूच करे। जिस तरह छोटी मोटी मिल के सभी कर्मचारी प्रबंधक होते हैं उसी तर्ज पर हरकोई या तो अपने आप को प्रधानमंत्री समझता था या प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बैठा था। बाबा रामदेव और केजरीवाल जैसे स्वपनदर्शी भी बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहते थे। बाबा रामदेव तो भाजपा के पिछलग्गू तक ही सीमित हैं मगर केजरीवाल जैसे-तैसे अर्ध राज्य दिल्ली के मुख्यमंत्री की गद्दी बचाने में सफल हो रहे हैं। वर्तमान में चल रही सरकार की बात की जाए तो पूर्व योजनायों का नाम परिवर्तन, संस्थाओं का नाम परिवर्तन, नगरों का नाम परिवर्तन, धनबल-बाहुबल-भ्रष्टाचार के बल पर विपक्षी सरकारों का परिवर्तन, भारतीयों की भावनाय़ों से खिलवाड़ और वायदों से पलटने की कला इसकी नियत बन गई है। सरकार में आने से पूर्व भाजपा का नजरिया मुख्यत: पाकिस्तान, मुस्लिम, अफसरशाही, इंस्पेक्टर राज तथा भ्रष्टाचार विरोधी था। भ्रष्टाचार की उपज कालाधन विदेशों से लाकर प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 पंद्रह लाख डालने का एक प्रमुख नारा था। अपने भाषणों में बीजेपी नेताओं की ओर से देशी भाषा हिंदी का धाराप्रवाह उपयोग भी मोदी सरकार लाने का एक प्रमुख कारक बना । गुजरात विकास के मॉडल के रुप में प्रस्तुत था, 2 करोड़ नौकरियां युवकों के लिए प्रति वर्ष देने व अच्छे दिन लाने जैसे नारों ने युवाओं को इतना प्रभावित किया कि आज का युवा वर्तमान प्रधानमंत्री के मुकाबले 1947 के बाद के सभी प्रधानमंत्रियों के बारे में अर्ध
ज्ञान रखने को मजबूर है। मगर मई 2014 में सरकार के शफ्तग्रहण अवसर से ही भारतीयों के साथ झांसों का खेल आरंभ हो गया। जिस पाकिस्तान को पानी पी पीकर गालियां दी जाती थीं उसी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को शफ्तग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया। मामला यहीं तक सीमित रहता तो ठीक था मगर गलबहियां इतनी बढ़ गईं कि प्रधानमंत्री का बिना किसी निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान आना-जाना आरंभ हो गया। साड़ियों/शालों का आदान-प्रदान तब तक जारी रहा जब तक जम्मू-कश्मीर में हालात बद से बदतर नहीं हो गए और असंख्य भारतीय नागरिकों की जान नहीं चली गई। फिर बात आई 2 अक्तूबर की तो मैं जहां भारतीयों के ध्यान में लाना चाहता हूं कि अहिंसा के पुजारी बापू गाँधी के जन्मदिवस 2 अक्तूबर को पूर्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में मनाया जा रहा था। अपनी झांसा नीति के तहत इस दिवस पर स्वच्छता अभियान छेड़ने का स्वांग प्रत्येक भारतीय को समझ में आना आरंभ हो चुका है। इसी 02 अक्तूबर को देश के एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर वर्तमान प्रधानमंत्री ने सोची समझी साजिश अधीन उनकी समाधि पर नहीं जाने का स्वांग किया और हल्ला होने पर यूपी चुनाव के दौरान राजनैतिक लाभ हेतु बनारस में उनके पैतृक घर जाकर पूरा-पूरा राजनैतिक लाभ उठाया। बाबा रामदेव की दुकानदारी चमकाने के लिए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का अनुमोदन यूएनओ से कराया गया। राष्ट्रीय हरित अधिकरण की शक्तिय़ों की धज्जियां उड़ाकर यमुना किनारे श्रीश्री रविशंकर का कंसरट आयोजित कराया गया और इस बात की पूरी पूरी संभावना थी कि अगर हनीप्रीत व बाबा गुरमीत राम रहीम कानून के शिकंजे में नहीं आते तो पक्का नवंबर, 2017 में यूएनओ में व्याख्यान दे आते। पूरे विश्व में प्रजातंत्र के एक मॉडल के रुप में विख्यात भारत के नागरिकों को लग ही नहीं रहा कि भारत में प्रजातंत्र है। युवाओं पर देशद्रोह के मुकदमे और भाजपा के आलोचकों को देशद्रोही घोषित करने की परंपरा आम हो गई है।
लेख क व इतिहासकार दबाव में हैं। साहित्यकारों, इतिहासकारों, फिल्मनिर्माताओं और विद्वानो पर एक ही दबाव है कि जनता को वही परोसा जाए जो आरएसएस व भाजपा को पसंद है। जिस हिंदी ने अपनी शक्ति से भाजपा सरकार बनवाई उसी की उपेक्षा हो रही है। इस सरकार का सबसे पहला दायित्व यही बनता था कि अंग्रेजी को पीछे करके हिंदी की शक्ति बढ़ाई जाती। मगर इस सरकार ने अस्तित्व में आते ही कुछ समय तक हिंदी के स्थान पर संस्कृत के नाम से ड्रामा किया और तुरंत बाद बहुराष्ट्रीय कंपंनिओं को लाभ पहुंचाने हेतु डिजीटल इंडिया का राग अलापना शुरु कर दिया। सरकार की गलत नीतिओं का लाभ उठाकर बहुराष्ट्रीय कंपंनिओं ने पूरी की पूरी शिक्षा नीति को अपने कब्जे में कर लिया है। भारत में डिजीटेलाइजेशन मतलब विदेशी कंपंनिओं को सीधा लाभ। मेरा यह लेख लिखने का अभिप्राय ही यही है कि पूर्व की यूपीए सरकार को भ्रष्टाचार और महंगाई का ढिंढोरा ले डूबा । आज यूपीए काल में रेलमंत्री रह चुके लालू यादव तथा उसके परिवार को सबसे बढ़े भ्रष्टाचारी के रुप में प्रस्तुत करके कभी आयकर, कभी ईडी तथा सीबीआई के सामने पेश होने को विवश किया जा रहा है। लालू रेल को मुनाफे में ले आए थे। आज की ईमानदार सरकार के दौर में रेल को लाभ का
व्यापार बनाने के लिए तीन-तीन रेलमंत्री लगाए गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के रेट 60 प्रतिशत तक कम हो गए। टिकटों के रद्दीकरण मात्र से ही रेल्वे की 25 प्रतिशत आमदनी बढ़ गई। तीनगुना मालभाड़े में वृद्धि, किराए में बेतहाशा वृद्धि, प्लेटफार्म टिकट पर बेतहाशा वृद्धि, रेल खाने में बिना किसी सुधार दरवृद्धि मगर नतीजा यह हुआ कि न तो रेल में साफ सफाई है, न ही नई रेलगाड़ियां चल पाईं, न स्पीड में वृद्धि हुई और रेल दुर्घटनाओं में भी वृद्धि हुई। हालात इस हद तक बद्तर हैं कि जिस दिन भारत-जापान के प्रधानमंत्री बुलेट ट्रेन की आधारशिला रख रहे थे ठीक उसी दिन रांची राजधानी पटरी से बेपटरी हो गई। हम हमेशा से सुनते रहें हैं कि भारत का तेल आयात खर्च देश की महंगाई घटाने-बढ़ाने में प्रमुख रोल अदा करता है। मगर मनमोहन सरकार के मुकाबले भारत के तेल आयात खर्च में 60 प्रतिशत तक की बचत के बावजूद तेल व अन्य उपभोगता वस्तुओं के दामों में वृद्धि के बारे में किसी शोध व अनुसंधान की जरुरत नहीं है। रोजाना कभी मेक इन इंडिया, कभी स्टार्ट अप इंडिया, कभी डिजीटल इंडिया, कभी स्वच्छता अभियान, कभी स्वच्छता ही सेवा अभियान, कभी जनधन योजना, कभी मुद्रा बैंक योजना, कभी नई-नई बीमा योजनाएं, कभी उज्ज्वला योजना के नाम से नई-नई योजनाओं तथा लांच हो रहे ईवेंटस का रिकॉर्ड रखने के लिए एक म्यूजियम की आवश्यकता तो जरुर पड़ सकती है मगर जनता की सेहत सुधरेगी इसकी संभावना बहुत ही कम है। इसके अलावा 8 नवंबर, 2016 से लागू नोटबंदी सैंकड़ों जिंदगियां निगल गई मगर कालाधन कहां गायब हो गया कोई नहीं जानता। जिस तरह भीड़ का लाभ उठाकर जेबकतरे जनता की जेबें साफ करते हैं उसी तर्ज पर नोटबंदी जैसे सरकारी डाके का लाभ उठाकर असामाजिक तत्व जाली करंसी बैंकों में जमा कराने में सफल हो गए। लुधियाना के एक व्यापारी ने एक बैंक कर्मचारी की इसलिए हत्या करवा दी क्योंकि वह बैंक कर्मी उस व्यापारी का 13 लाख रुपए बदली कराने में सफल नहीं हो पाया। अब गलत निर्णयों का भार भारतीय जनता को वहन करने के लिए विवश किया जा रहा है। नोटबंदी पर हुए खर्च व जनता की ओर से झेली गई मुसीबतों का मुकाबला मैं अपने एक स्वयं के अनुभव से करुंगा। जीवन के एक मोड़ पर मैं पहले से नाजुक वित्तीय हालातों का सामना कर रहा था। रही-सही कसर तब निकली जब एक
यात्रा के दौरान मेरा बटुआ चला गया और वह अटैची भी जिसमें मेरे पूरे के पूरे कपड़े थे। अपनी वित्तीय हालत संतोषजनक करने तथा कपड़े पूरे करने के लिए पूरे 20 वर्ष लग गए। हम अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए महंगी से महंगी किताबें खरीदते हैं। पुस्तक चाहे 500 की हो या एक हजार की रद्दी में बेचने पर पाँच रुपए भी मिलने की गारंटी नहीं होती। जरा सोचिए 14 लाख करोड़ की करंसी वापस लेने के बाद स्थिति सामान्य करने के लिए केवल एक निर्धारित अवधि में ही 20000 करोड़ का खर्च केवल नई करंसी के परिवहन व अन्य खर्चों पर ही हो गया। 14 लाख करोड़ की पुरानी करंसी को आरबीआई तक वापस लाने का खर्च अलग। रद्दी कागजवाला सिद्धांत नोटबंदी पर भी लागू हुआ। मजबूरीवश 24 अक्तूबर को आयोजित अपनी प्रेस कान्फ्रैंस में वित्तमंत्री को भारत सरकार की ओर से 2.11 लाख करोड़ रुपए बैंकों की हालत सुधारने के लिए बैंकों में लगाने का ऐलान करना पड़ा। इसीलिए विपक्ष ने नोटबंदी को इस सदी के सबसे बड़े घोटाले का नाम दिया है। जनधन योजना के तहत खोले गए खाते भी नोटबंदी के बाद भाजपा सरकार के गले की फांस बन गए हैं। जीसीटी के भूत को संभालने के लिए भी सरकार के पसीने छूट रहे हैं। जहां तक बात है युवाओं को रोजगार देने की तो सरकार के नोटबंदी व जीसीटी जैसे तुगलकी फरमान रोजगार बढ़ाने की बजाए रोजगार निगल गए हैं और अधिकतर युवा सोशल मीडिया पर कंपंनिओं के ट्रोल के रुप में कार्य करने को मजबूर हैं जिसका सीधा फायदा ढोंगी व अत्यचारी नेताओं को रहा है । अब सरकार के अलग-अलग वक्ता 4 करोड़ से 8 करोड़ तक आम लोगों को कर्ज देने जैसे गुमराहकुन आंकड़े देकर युवाओं को संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्होंने सरकारी नौकरियां देने के बजाए चाय वालों व रेहड़ी पटरी वालों को उक्त लोन दिए हैं। दावे तो ऐसे किए जा रहे हैं कि भारत में जैसे आजतक किसी को कर्ज मिला ही नहीं। सरकार की ओर से 9 लाख करोड़ इंफ्रासटरक्चर विकास हेतु झोंकना भी सरकार के ऊपर दिख रहे दबाव को दर्शाता है। अब सरकार की ओर से नया ढिंढोरा पिटना शुरु हुआ है भारतमाला परियोजना जिसमें दावा किया जा रहा कि 7-8 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। जब प्रशासनिक तौर पर अनुभवहीन व तानाशाही सरकार की ओर से जनता को सुविधाएं देने की बजाए उनमें कमी की जाएगी तो भ्रष्टाचारी और ईमानदार के बीच तुलना तो होगी ही। भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सिंह सरकार के काल में विश्व में भयानक मंदी आई थी। मगर डॉ मनमोहन सिंह ने भारत पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखने दिया उल्टा पश्चिमी राष्ट्रों को बेलआऊट तक देने की घोषणा की गई। मगर ईमानदार मोदी सरकार के दौर में इस तरह की कोई घटना नहीं हुई। उल्टा मोदी देश-विदेश में यात्रा करके व भारतीय करदाताओं के पैसे उड़ाकर भगवान शिव के सुपुत्र कार्तिके के ब्राह्मंड भ्रमण का रिकॉर्ड तोड़कर अपनी निजी हसरत पूरी करना चाह रहे हैं। भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सिंह सरकार के काल में तेल के भाव आसमान छू रहे थे मगर ईमानदार मोदी सरकार के दौर में विदेश से तेल आयात का खर्च 60 प्रतिशत कम हो जाने के बावजूद जनता को तेल महंगा मिल रहा है। सरकारी व गैरसरकारी बोरोजगारी भी कम थी। भ्रष्टाचारी डॉ मनमोहन सिंह की सरकार के दौर में छठे वेतन आयोग के लागू होने पर सरकारी कर्मचारियों का वेतन 40 प्रतिशत बढ़ गया था मगर ईमानदार मोदी सरकार के दौर में 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए कर्मचारियों को रोने के लिए मजबूर कर दिया गया है व 1 से छठे वेतन आयोगों के मुकाबले सब से कम वेतनवृद्धि दी गई है। अगर किसी का वेतन 10-15 प्रतिशत बढ़ा भी होगा तो उसकी भरपाई कर लगाकर कर ली गई है। मनमोहन काल में जो महंगाई भत्ता 10 प्रतिशत तक मिलता था वो 1 प्रतिशत तक पहुंच गया है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों उपरांत 18 महीने का भत्तों का बकाया ईमानदार मोदी सरकार अलग से डकार गई। ईमानदारी के नाम से अगर देशवासियों को अतिविश्वासी, अहंकारी, अभिनयवादी, कट्टरवादी, तानाशाही, 56 इन्ची भ्रष्टाचारी, किसान-मजदूर व कर्मचारी विरोधी और अतिवादी सरकार मिलेगी तो भारतवासी यही चाहेंगे कि उन्हें झांसा सरकार के स्थान पर डॉ मनमोहन सिंह की भ्रष्टाचारी सरकार ही मिल जाए । इसलिए जनता मांगे भ्रष्टाचारी मनमोहन सरकार।