अंग्रेजी की एक टर्म लिटल नॉलेज
इज डेंजरस का हिंदी पर्याय बना है नीम हकीम खतराए जान जिसका अर्थ है कम ज्ञान
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एक सामान्य जन से जब नीम हकीम खतराएजान का अर्थ
पूछा गया तो उसका उत्तर था- ऐ हकीम तू नीम के पेड़ के नीचे मत जा वहां तेरी जान का खतरा है। शोले फिल्म का
एक मशहूर डॉयलाग है जब अभिनेता धर्मेंद्र शराब पीकर पानी की टंकी पर चढ़ जाता है
और कहता है कि अगर उसकी शादी बसंती (हेमा मालिनी) से न हुई तो वह सूआसाइड कर लेगा।
एक ग्रामीण जब दूसरे अनपढ़ ग्रामीण से पूछता है कि यह सूआसाइड क्या होता है तो उसे
उत्तर मिलता है कि जब अंग्रेज लोग मरते हैं न - तो उसे सूआसाइड कहते हैं। गाय की
पूँछ पकड़कर गोदान का विचार कहां से आया ? जब सरकार यह नियम बना देगी कि कोई गाय की पूंछ नहीं खींच पाएगा तो
गोदान करने वालों का क्या होगा ? आज पूरी दुनिया में अंग्रेजी का
डंका बजता है। कारण है अंग्रेजों ने पूरी दुनिया के ग्रंथों का अनुवाद किया और
भारतीय मान्यताओं के विपरीत अनुवादकों ने यह साबित कर दिया कि भारत की संपन्नता
साइंस व तकनीकी तरक्की के फलस्वरुप थी न कि देवताओं के कारण। जबकि भारतीयों की
आस्था है कि यह साइंस का नहीं बल्कि उनके देवताओं के शक्तिबल के फलस्वरुप था।
महात्मा बुद्ध भारत में पैदा हुए। वर्तमान में भारतीय़ तो अंग्रेजी पर निर्भर हैं
तो बुद्ध धर्म और भगवान बुद्ध की शिक्षाएं देश-विदेश में किस भाषा के माध्यम से
पहुंचीं यह भी एक अनुसंधान का विषय है।
सत्ता एवं राजनीति ऐसे दो
महत्वपूर्ण कारक हैं जो किसी एक समाज और संस्कृति की महत्वपूर्णता और दीर्घ आयु को
अभिप्रेत करते हैं। विश्व संस्कृति के विकास को आकृति देने हेतु अनुवाद एक प्रमुख
शक्ति-स्रोत है। जारों के ऑटोमन साम्राज्यों से, चीन के तंग शासकों, हिटलर, मुसोलिनी,
नेपोलियन से लेकर भारत के मौर्यकाल और मुगलिया सल्तनत तक किसी भी वंश की शान व
बर्बादी की कहानी उस अवधि की सत्ता के राजनैतिक सिद्धांतों के अध्ययन से ही पता चल
सकती है। यह किन्हीं सामान्य परिस्थितियों का आदान-प्रदान हो सकता है या अनेक
मोर्चों पर अलग-अलग विचार रखना। अनुवादक एवं उनके अनुदित पाठ तब बहुत ही नाजुक
भूमिका अदा करते हैं जब यह वृत्तांत अंतर-सांस्कृतिक गतिविधियों के अंतर्व्यवहार
व्याख्यान में इस्तेमाल होते हैं। अनुदित पाठ का राजनैतिक लक्ष्य-साधन व
अभिप्रेरणा हेतु संदर्भ दिया जाता है। उनका दुरुपयोग होता है और यहां तक संभव हो
निंदा भी की जाती है। मतवाद कुछ नहीं है बल्कि किसी एक सामाजिक ग्रुप के सामाजिक
प्रतिनिधित्व के मूल विश्वास व व्यवहार का मिश्रण है। और यही विचारधाराएं हैं जो
कि विख्यात लेख कों व विद्वानों द्वारा लिपीबद्ध की जाती हैं एवं सदियों तक रिकॉर्ड
रहती हैं। जिस तरह पुरातन काल में दरबारी इतिहासकार होते थे उसी तर्ज पर दरबारी
अनुवादक भी होते थे, जो मूल पाठ को दूसरी भाषाओं में परिवर्तित करते थे और सल्तनत
की योजनाओं व विचारों को राष्ट्रपारीय सीमाओं में फैलाने में सहायता करते थे।
विभिन्न समाजों की ओर से अनुवादकों के कार्यकलापों को हमेशा से सराहा भी गया है
तथा साथ ही साथ उनकी भूमिका पर प्रश्नचिन्ह भी लगाए गए हैं। उनके परिश्रमी एवं
अच्छे प्रयासों को स्वीकारा और सराहा गया किंतु कुछ मामलों में उनकी पूर्वग्रही व
उनके आकाओं के प्रति अत्यधिक निष्ठा के कारण उनकी आलोचना भी की गई। प्रभुत्व, नियम,
भाषा एवं लक्ष्य ग्रुप विवशताएं हैं जो कि राजनैतिक सत्ता की घटनाओं हेतु अनुवाद
में घटित हो रही हैं। बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से गलत सूचनाएं अघट घटनाएं हैं।
कभी कभार स्रोतभाषा और लक्ष्य भाषा संबंधी कम ज्ञान के कारण अनुवादक मूल काम का
केवल संक्षेपसार उपलब्ध करा देते हैं, मुख्य बिंदुओं के लुप्त होने के कारण जोकि
अनुवादक के अनुसार महत्वपूर्ण नहीं है और धाराप्रवाह सूचना अंतरण में बाधा उत्पन्न
करके और अनुवादक की पूर्वग्रहीय सामाजिक जुड़ाव, सामाजिक स्तर, एकपक्षीय संबंध के
कारण भ्रामक सूचनाएं सृजित कर देते हैं। सत्ताधारियों और सत्ता हासिल करने के
इच्छुकों के बीच अनुवादक दबा रहता है। अनुवाद मूल पाठ का प्रतिबिंबित बिंब है। यह
विभिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों, समाज और यहां तक समय अवधि को उपलब्ध साहित्य
से ज्ञान अर्जित करने, सीखने और उनकी समस्याओं का समाधान करने में सहायता करता है।
अनुवादकों के काम की मूल पाठ तक पहुंच तथा अनुदित पाठ की क्षमता उनकी योग्यता से प्रदर्शित
होती है। समाज में सत्ता संपर्क हमेशा से हैं जिनमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को दबाना
चाहता है। जैसे वर्तमान भारत में जब जब अंग्रेजी का कद कम करने का प्रश्न उठता है
तब तब मामले को हिंदी बनाम अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ओर मोड़ दिया जाता है। यह एक
निरंतर एवं अंतहीन प्रक्रिया है। महान चीनी नेता माओ-जे-तुंग सतत क्रांतिकारी
परिवर्तन अवधारणा की बात करते हैं। वे जर्मनी के कार्ल मार्क्स की ओर से दिए गए
साम्यवादी विचारों से प्रभावित थे। कार्ल मार्क्स ने जर्मन भाषा में और यूरोप की
परिस्थितियों के अनुसार लिखा। वो अनुवादक ही थे जिन्होंने विभिन्न भाषाओं में उनके
विचारों की व्याख्या की और माओ ने चीनी में सीखा। स्थानीय परिस्थितियों के अनुरुप
इसे चीनी समाज में लागू किया। विचार फलेफूले और उनके अलग-अलग प्रतिबिंब हो सकते
हैं किंतु मूल जडें वही रहीं। यदि कोई हिंदु रीति विज्ञान के बारे में बात करे तो
अनेक पुरातन हिंदु पवित्र ग्रंथ महत्वपूर्ण विद्वान वर्ग की भाषा संस्कृत में लिखे गए हैं। किसी
सामान्य व्यक्ति के लिए उन ग्रंथों के सार को समझ पाना कठिन था। बाद में दूसरी
राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय भाषायों में इनका अनुवाद किया गया और ज्ञान का आदान
प्रदान हुआ। आज भारतीय वीरगाथा काव्य रामायण के लगभग 300 से भी अधिक विविध रुप
उपलब्ध हैं। सामान्यत: महाऋषि बाल्मीक की ओर से रचित
संस्कृत संस्करण को ही सबसे पुरानी रचना माना जाता है। भारतवंशियों के बारे में
लिखित वीरगाथा काव्य महाभारत संस्कृत में ही है। इन दोनो ही पुरातन वीरगाथा
महाकाव्यों में पारिवारिक राजनीति और समाज के सत्ता संबंधों को दर्शाया गया है।
इन्हें दूसरी भाषाओं में अनुवाद करते हुए अनुवादक महत्वपूर्ण भूमिकाएं अदा करते
रहे हैं। अनुवादक लक्ष्य भाषा की सामाजिक पद्धति एवं संस्कृति को संपन्न बना देते
हैं। इससे उपलब्ध साहित्य में अधिक ज्ञान शामिल हो जाता है। अपने सर्वोत्तम ज्ञान
के बल पर अनुवादक लक्ष्य भाषा में मूल पाठ की व्याख्या एवं पुन:व्याख्य करने में अपना प्रत्येक
प्रयास झोंक कर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अंतिम तौर पर यह समाज के ऊपर निर्भर
करता है कि वे इस काम को किस रुप में स्वीकृत करते हैं। सारांश स्वरुप, अनुवादक दो
अलग-अलग संस्कृतियों, सत्तायों और समाजों में ज्ञान के आदान-प्रदान हेतु अविच्छेदय
भूमिका अदा कर रहे हैं। अनुवादक वे पहले भाषाविद होते हैं जिनकी मूल पाठ तक पहुंच
होती है, उनका काम एवं ज्ञान निश्चित ही बहुत महती है। जो इस व्यवसाय में है उसकी
यह एक कठिनतम जॉब है कि उसे विषय प्रति संपूर्ण ज्ञान हो। केवल एक गल्ती विशेषत: राजनैतिक, तकनीकी व मिलिटरी
अनुदित पाठों के विषय में गंभीर मुसीबत खड़ी कर सकती है। जिन अर्थों को ठीक से
संप्रेषित नहीं किया जाता अनुवाद की भाषा में गुमशुदा कहलाते हैं। अनुवादकों और
व्याख्याताओं से यह अपेक्षित है कि वे जिस विषय पर काम कर रहे हैं उनके बारे में व्यापक
अनुसंधान करें। ताकि परिणाम के रुप में दिखने वाला बिंब मूल पाठ का सर्वोत्तम प्रतिबिंब
हो। और अर्थ बिना किसी मतभेद के संप्रेषित कर दिया जाए।