मैं विदेशी तू नाज-ए-हिंद है
भूल मत तू हिंदमाता की बिंदी है
पुष्पक पहला तेरे वतन में ही आया था
आँखों देखा हाल देववाणी ने बयाँ कराया था
धरती पुत्रों तेरों ने ही भूखों का हल निकाला था
पूर्वज मेरों ने पूर्वज तेरों से बहुत कुछ
चुराया था
अस्त्र-शस्त्र-ब्रह्मास्त्र का डंका तो
तेरे पूर्वजों ने ही बजाया था
संविधान निर्माताओं ने देवनागरी को लिपि तेरी बनाया था
देववाणी संस्कृत का उत्तराधिकार तुझे ही
थमाया था
पल पल रोना छोड़ दे तू ऐ हिंदी
जानकर भी तू अंजान न बन ऐ हिंदी
कल कल बहती नदी धारा बन तू ऐ हिंदी
चुनौती तो पूरे विश्व की बबौती है ऐ हिंदी
याद रख जिंदगी होती है धूप-छाँव ऐ हिंदी
कभी भीड़ तो कभी अकेली जिंदगी है ऐ हिंदी
यथार्थ का अनुभव करने वाली बन तू ऐ हिंदी
जो समय के साथ चले वही है जिंदगी ऐ हिंदी
जिंदगी खट्टी-मीठी यादों की स्मृति है ऐ
हिंदी
दूसरों से हटकर तू बना अपनी पहचान ऐ हिंदी
नए-नए सबक सीखने को मिलते सबको ऐ हिंदी
अंधेरे के निशां छोड़ उगता सूरज बन तू ऐ
हिंदी
अपने कर्मों के आधार पर मिलती है इज्जत ऐ
हिंदी
असली पहेली किसी के लिए न बन पाई तू ऐ
हिंदी
गम छोड़ भीतर हौसला रखने का हुनर सीख ऐ
हिंदी
जिंदगी तुझे अपनाकर इतराए ऐसी गद्दी हथिया
ऐ हिंदी
तेरी हिमायती सरकार अपनाती डिजीटल
अंग्रेजी ऐ हिंदी
जिसे कोई समझ न पाए ऐसी अभूझ पहेली बन ऐ
हिंदी
संभल नहीं तो दुनिया से खोने का डर मंडराए
तुझ पर ऐ हिंदी
धरती पुत्र तेरे स्वीकारते पटरानी मुझे
स्थान दासी का देते तुझे ऐ हिंदी
तू अपनो में पैठ बढाकर बनकर उबर उनके मुख की कोयल ऐ हिंदी फिर साँतवां स्थान तो छोड़ यूएनओ स्वयं ढूँढते-ढूँढते तेरा पीछा करने भागेगा ऐ हिंदी