👉यह कहानी काल्पनिक है,, , इससे किसी का कोई लेना देना नहीं है।👈
अंकल..........पापा की सर्विस सीट में किस किस का नाम होगा, यह सुन कर मैं हैरान सा रह गया..... क्योंकि ये सवाल बड़ा अजीब सा था, उस जगह..... और मैं सोच में पड़ गया की पिता की अंत्येष्टि में आया एक बेटा ये सवाल भी पूछ सकता है,
और वो भी जब, तब की उसके पिता की चिता को अग्नि देकर बैठा ही था.....
फिर से वही सवाल जब दोबारा पूछा तो मुझे अचानक बहुत क्रोध आया, लेकिन अपने क्रोध को काबू कर मैंने यह जानना चाहा की वह ऐसा क्यों कर रहा है?????
मैंने कहा बेटा ये समय है कोई " नहीं अंकल माफ़ करिएगा"
तभी किसी के बहुत तेज रोने की आवाज़ सुनकर छोटा भी उस और लपका और ऊँचे स्वर में रोकर साथ देने लगा, मैं कुछ समझ पता इसके पहले दोनों मेरे काफी करीब आकर बैठ गए,
दोनों भाइयों को देख ऐसा लगा जैसे वे अपनी पिता की अंत्येष्टि में दुखी कम, किसी और बात को लेकर चिंतित ज्यादा लग रहे थे.....क्योंकि जहां मेरा ध्यान चिता से उठती हुई एक एक चिंगारी और उसमें समाए हुए दर्द पर था, वहीं उन दोनों का ध्यान कहीं और भटका हुआ सा लग रहा था।
वे कभी उठकर बाहर एकत्रित भीड़ में गुम हो जाते तो, कभी किसी और बात को लेकर अपने मित्रों से चर्चा में लग जाते हैं, और मित्र भी उनके ऐसे ही... आते समय तो ऐसा लगता कि जैसे खुद उन्होंने अपने ही पिता को खो दिया हो और थोड़े देर में सामान्य होकर हंसी ठिठोली में लग जाते।
मुझे क्यों तो उन दोस्तों और दोनों भाइयों पर दया कम गुस्सा ज्यादा आ रहा था, लेकिन वह समय उन्हें समझाने का नहीं था, क्योंकि मैं खुद ऐसे सदमे के साथ ऐसी मनः स्थिति में था कि मुझे ऐसा लग रहा था मानो वह चिता बाहर नहीं मेरे दिल में जल रही हो।
मुझे अब भी यह उम्मीद थी कि काश मेरा मित्र संसार के नियमों को बदलकर अभी उठ मेरे पास आ मुझे गले लगा, मुझे मनाने लगेगा....... लेकिन रह रह कर उठती ज्वाला उसके पार्थिव शरीर को पंचतत्व में विलीन कर रही थी और मेरी उम्मीद खत्म होती जा रही थी।
लेकिन मेरा मन इस प्रकृति को भला कहां मानने वाला था, वह तो जैसे जैसे चिता आग पकड़ती है, वैसे वैसे मेरे मित्र की छवि को मेरे मन मन मंदिर में और भी गहराई से अंकित करते जाती, जैसे वह प्रकृति से लड़कर मेरे मित्रता के बीज को और भी गहराई में स्थापित कर देना चाहती है।
मैं अब भी मानने को तैयार नहीं हूं, मेरे ही सामने मेरे ही बाहों में मेरे मित्र ने अपना दम तोड़ा था। लेकिन तभी मैंने देखा कि मेरे बाजू में बैठा शख्स मेरे कंधे पर हाथ रख कर कह रहा था, थोड़ा ख्याल रखो भाई साहब.......
भला होनी को कौन टाल सकता है, कहते हुए जैसे वह सात्वना कम दे रहा हो, लेकिन जाने की अनुमति पहले मांग रहा हो.........
मैं काफी देर से देख रहा था, उसने हर जतन कर अब तक अपने आप को रोक रखा था, ठीक ऐसे ही सभी धीरे-धीरे निकलते जा रहे थे, जैसे बस यहीं तक साथ हमारा कहकर विदाई लेते जा रहे हो,
लेकिन जाते वक़्त एक बार मुड़कर देखना कोई नहीं भुला, कुछ की आंखे नम थी तो कुछ की आँखों में उनकी ऎश्वर्य गाथा दिखाई देती थी,
मेरा मित्र था ही ऐसा...... कभी किसी को निराश नहीं किया, जितना जैसा बन पड़ा सबकी मदद करता रहता था,
लेकिन एक दिन अचानक........... खैर मौत,,, चूँकि काम के दौरान हुई थी, इसलिए कुछ अधिकारीगण भी बाद की समस्या से बचने हेतु वहाँ उपस्थित हो ही गए थे और थोड़ी ही देर में अपनी झूठी वयवस्थता बताकर चले भी गए.....
मैं कुछ पुराने ख्याल में खो सा गया था, अर्थी से उठने वाला धुआँ जैसे मेरे मित्र और मेरी पुरानी यादो को ताजा कर रही हो,
तभी अचानक छोटे की आवाज सुनाई दी....
अंकल........ पंचाग्नि का समय हो गया, मतलब साफ था की बस अंतिम बिदाई, जिसे अक्सर हम दोनो कभी कभी मजाक में भी कह दिया करते थे,
बड़े अनसुलझे मन से मैं वहाँ से निकला, लेकिन तभी किसी ने मुझसे पूछा......अच्छा तो आप ही हो हमारे जवाई सा के परम मित्र, आपसे एक काम था, यदि आप बुरा न माने तो ये बताएँगे की सर्विस बुक में किस किस का नाम लिखा है, और किसको कितना कितना मुआवजा मिलेगा......
इतने सारे सवाल सुनकर मेरा मन भर आया, और मैं वह से निकल आया......
क्रमशः..........................