बात लगभग अस्सी के दशक की है . जितने में आजकल एक कप आइसक्रीम मिलता है , उतने में उनदिनों एक किलो चावल मिल जाया करता था. अंगिरस 6 ठी कक्षा का विद्यार्थी था. उसके पिताजी पोस्ट ऑफिस में एक सरकारी मुलाजिम थे. साईकिल से पोस्ट ऑफिस जाते थे. गाँव में उनको संपन्न लोगो में नहीं , तो गरीब लोगो में भी नहीं गिना जाता था.
अंगिरस इतना बड़ा तो नहीं था , पर इतना छोटा भी नहीं था कि अपने पिताजी की माली हालत को न समझ सके. अपने पिताजी को सुबह सुबह उठकर पोस्ट ऑफिस जाते देखता . चाहे गर्मी हो, बरसात हो , बुखार हो , ठंडी हो , उसके पिता साईकिल से घर घर जाकर सबको डाक पहुंचाते. अपनी पिता की कड़ी मेहनत को देखकर उसे पैसे के महत्त्व का भान तो हो हीं गया था .
उस जमाने में 5 पैसे में आइसक्रीम मिल जाया करती थी. गाँव में मेला लगा हुआ था. अंगिरस 6 ठी कक्षा में फर्स्ट आया था. उस दिन माँ ने खुश होकर ईनाम के तौर पर उसे 5 रूपये दिए. जिसको आजतक 5 पैसे से ज्यादा कभी नहीं मिले थे , अचानक 5 रूपये पाकर वो ख़ुशी से फुला न समाया. दौड़कर अपने दोस्त सत्यकाम के पास पहुंचा और दोनों मेले की तरफ भाग चले.
अंगिरस 5 रूपये लेकर सत्यकाम के साथ मेला पहुंचा तो उसका सीना फुला हुआ था . ऐसा लग रहा था पुरे मेले का मालिक है . दोनों ने अपनी पैनी नजर पुरे मेले पे दौड़ाई. दोनों के हाथ में आज पूरा आसमान था .
सबसे पहले दोनों ने कठपुतली का नाच देखने का मन बनाया . 10 पैसे का टिकट सुनकर दोनों को गुस्सा आ गया . ये भी भला कोई बात हुई ? मुंह उठा कर जो जी आया मांग लिया . पैसे क्या पेड़ पर उगते है . गुस्से में दोनों ने निर्णय किया इतना पैसा खर्च करना उचित नहीं .
फिर दोनों जादूगर के पास पहुंचे . उसका टिकट 15 पैसे थे . अंगिरस ने अपने दोस्त से सलाह ली. सत्यकाम को इस बात की ख़ुशी थी कि आंगिरस 30 पैसे खर्च करने को तैयार था . सत्यकाम का भी मित्र भाव जाग उठा. उसने कहा , इस तरह जादू देखने से कुछ नहीं मिलेगा. चलते हैं , कुछ और करते हैं . आंगिरस को भी अपने दोस्त पे नाज हो आया.
फिर दोनों मेले में खिलौने वाले के पास गाए . सोचे 10 पैसे की बांसुरी ली जाए . फिर छोड़ दिए . फिर मूर्तिवाले वाले के पास गए , कुछ विचार विमर्श कर उसे भी छोड़ दिया . इसी तरह दिन भर कभी पोस्टर वाले के पास,कभी आइसक्रीम वाले के पास ,कभी सिनेमावाले के पास , कभी बन्दुक वाले के पास , कभी चरखी वाले के पास जाते और जब भी पैसे खर्च करने का मुद्दा आता, दोनों के तार्किक मन खर्च के प्रासंगिकता पर बहस करने लगते. और अंत में दोनों आगे बढ़ जाते.
यदि माता ने खुश होकर 5 रूपये दिए थे तो आंगिरस और सत्यकाम उस पैसे का इस्तेमाल भी बड़ी जिम्मेदारी से करना चाहते थे. लगभग शाम हो चली थी. वो 5 रूपये उन दोनों के लिए सिर का जंजाल हो चुका था. दोनों बड़ी असमंजस की स्थिती में थे. उन लोगो की समझ में ये नहीं आ रहा था क्या किया जाए.
जादू देखने , बन्दुक मारने , चरखी पे खेलने , खिलौने खरीदने से कुछ भी हासिल नहीं होना था. वो सोच रहे थे 5 रूपये में पुरे 5 किलो चावल आ जाएगा . इस पैसे को ऐसे क्यों खर्च किया जाए? अंत में विचार विमर्श के बाद दोनों ने ये तय किया कि 20 पैसे की मिठाई खरीदकर बाकी पैसों को घर लौटा दिया जाए. दोनों के पेट में कुछ अन्न भी चला जाएगा और माँ भी खुश हो जाएगी .अब दोनों के सीने से बोझ हट चूका था. अधरों पे मुस्कान खिल रही थी.
दोनों ख़ुशी ख़ुशी हलवाई के दुकान पर पहुंचे और 20 पैसे की जलेबी खरीदी. जब पैसे देने के लिए आंगिरस ने जेब में हाथ डाला , उसके दोनों हाथ तोते उड़ गए . चेहरे पे हवाइयां उड़ने लगी . उसकी जेब कट चुकी थी . माँ ने उसे जो पाँच रूपये दिए थे, मेले में चोरी हो गए थे .
अंगिरस को काटो तो खून नहीं . आँखों के सामने अँधेरा छा गया था . रोते हुए वो घर जा रहा था. माँ से पिटने का का डर था. सत्यकाम भी पूरा घबराया हुआ था . उपर से मित्र की ये हालत देखकर और परेशान हो उठा .
माँ के सामने अंगिरस की हिचकी रुक हीं नहीं रही थी . सत्यकाम भी कुछ नहीं बता पा रहा था . माँ भी काफी घबड़ा गई . अनेक आशंकाओं के बादल माँ के मन पे मडराने लगे . काफी समय हो गया था . अंगिरस की हिचकी रुक हीं नहीं रही थी. माँ ने सोचा , अंगिरस को वैद्य के पास ले जाना उचित होगा.
रात हो चली थी. इसी बीच हलवाई चाचा मेले से लौट रहे थे . रास्ते में अंगिरस का घर पड़ता था. सोचे पैसे भी मांग लूँगा और चेता भी दूंगा . पर आंगिरस को देखकर उन्होंने तुरंत पूरी बात माँ को बताई , जब पूरी बात अंगिरस और सत्यकाम ने धीरे धीरे करके माँ को बताया तो माँ ने उसे ख़ुशी से गले लगा लिया . हलवाई चाचा भी अपने पैसे मांगना भूल गए .
इस बार फिर अंगिरस और सत्यकाम के कदम ख़ुशी से फुले न समा रहे थे . उन दोनों की समझ पे खुश होकर माँ ने 10 रूपये पकड़ा दिए थे.
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित