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खा जाओ इसको तल के

24 अगस्त 2019

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शैतानियों के बल पे,दिखाओ बच्चों चल के,

ये देश जो हमारा, खा जाओ इसको तल के।


किताब की जो पाठे तुझको पढ़ाई जाती,

जीवन में सारी बातें कुछ काम हीं ना आती।


गिरोगे हर कदम तुम सीखोगे सच जो कहना,

मक्कारी सोना चांदी और झूठ हीं है गहना।


जो भी रहा है सीधा जीता है गल ही गल के,

चापलूस हीं चले हैं फैशन हैं आजकल के


इस राह जो चलोगे छा जाओगे तू फल के,

ये देश जो हमारा, खा जाओ इसको तल के।

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कृष्ण: योगी भी भोगी भी:अजय अमिताभ सुमन

28 सितम्बर 2018
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मेरे एक मित्र ने कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सोशल मीडिया पे वायरल हो रहे एक मैसेज दिखाया। इसमें भगवान श्रीकृष्ण को काफी नकारात्मक रूप से दर्

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कुत्ते और इन्सान: अजय अमिताभ सुमन

2 अक्टूबर 2018
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मैंने ये कविता आदमी और कुत्तों के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए लिखी है. मैंने देखा कि ईश्वर कुत्ते को स्वतन्त्र निर्णय लेने की शक्ति से वंचित रखा हुआ है. जबकि आदमी के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता ह

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काटो नहीं फुफकारो

10 अक्टूबर 2018
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गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गांव के पास से गुजरे। गांव के बच्चों को एक खेल के मैदान में सहम कर खड़े हुए देखा। गौतम बुद्ध ने बच्चों से पूछा कि किस बात से वे डरे हुए हैं?बच्चों ने गौतम बुद्ध को बताया कि यहां पर वो सारे गेंद से खेल रहे थे। लेकिन वह गेंद उस बरगद के पेड़ के नीचे चली गई है। अब वह अ

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प्रतिभाशाली गधे

16 अक्टूबर 2018
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आज दिल्ली में गर्मी आपने उफान पे थी। अपनी गाड़ी की सर्विस कराने के लिए मै ओखला सर्विस सेंटर गया था। गाड़ी छोड़ने के बाद वहां से लौटने के लिए ऑटो रिक्शा ढूंढने लगा। थोड़ी ही देर में एक ऑटो रिक्शा वाला मिल गया। मैंने उसे बदरपुर चलने को कहा। उसने कहा ठीक है साब कितना दे दो

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संभवना

22 अक्टूबर 2018
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इससे फर्क नहीं पड़ता,तुम कितना खाते हो?फर्क इससे भी नहीं पड़ता,कि कितना कमाते हो?फर्क इससे भी नहीं पड़ता, कि कितना कमाया है?फर्क इससे भी नहीं पड़ता,कि क्या क्या गंवाया है?दबाया है कितनों को,कुछ पाने के लिए.जलाया है कितनों को,पहचान बनाने के लिए.फर्क इससे नहीं पड़ता,कि दूजों को

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कालिदास और कालीभक्त

23 अक्टूबर 2018
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इस कथा के दो पात्र है . एक भक्ति रस का उपासक तो दूजा श्रृंगार रस का उपासक है. दोनों के बीच द्वंद्व का होना लाजिमी है. ये कथा भक्ति रस के उपासक और श्रृंगार रस के उपासक मित्रों के बीच विवाद को दिखाते हुए लिखा गया है.ऑफिस से काम निपटा के दो मित्र कार से घर की ओर जा रहे थे

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वकील

25 अक्टूबर 2018
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जो कर न सके कोई वो काम कर जाएगा,ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा।फेकेगा दाना , फैलाएगा जाल,सोचे कि करे कैसे मुर्गे हलाल।आये समझ में ना , शकुनी को जो भी,चाल शतरंजी तमाम चल जायेगा .ये वकील दुनिया में नाम कर जायेगा।चक्कर कटवाएगा धंधे के नाम पे,सालो लगवाएगा महीनों के काम पे।ना

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हृदय दान

30 अक्टूबर 2018
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हृदय दान पर बड़े हल्के फुल्के अन्दाज में लिखी गयी ये हास्य कविता है। यहाँ पर एक कायर व्यक्ति अपने हृदय का दान करने से डरता है और वो बड़े हस्यदपक तरीके से अपने हृदय दान नहीं करने की वजह बताता है। हृदय दान के पक्ष में नेता,बाँट रहे थे ज्ञा

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शब्द

5 नवम्बर 2018
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अजीब विरोधाभास है शब्दों में। अजीब द्वंद्व है शब्द भरोसे में, विश्वास में, आस्था में, घृणा में, प्रेम में। दरअसल शब्दों का कार्य है एक खास तरह के विचार को प्रस्तुत करना। किसी मनःस्थिति, परिस्थिती, भाव , वस्तु , रंग, दिशा, दशा, जगह, स्थान, गुण, अवगुण इत्यादि को दर्शाना। शब

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बिछिया: एक रुकी हुई माफ़ी

10 नवम्बर 2018
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अनिमेश आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था । बचपन से हीं अनिमेश के पिताजी ने ये उसे ये शिक्षा प्रदान कर रखी थी कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक आदमी का योग्य होना बहुत जरुरी है। अनिमेश अपने पिता की सिखाई हुई बात का बड़ा सम्मान करता था । उसकी दैनिक दि

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माँ

21 नवम्बर 2018
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ये कविता एक माँ के प्रति श्रद्धांजलि है। इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक पे गर्भ धारण , बच्ची , तरुणी , युवती , माँ , सास , दादी के रूप में क्रमिक विकास और फिर देहांत और देहोपरांत तक दिखाई गई है। अंत में कवि माँ क

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नमक बेईमानी का

22 नवम्बर 2018
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अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंप

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कविता बहती है

22 नवम्बर 2018
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कविता तो केवल व्यथा नहीं,निष्ठुर, दारुण कोई कथा नहीं,या कवि शामिल थोड़ा इसमें,या तू भी थोड़ा, वृथा नहीं।सच है कवि बहता कविता में,बहती ज्यों धारा सरिता में,पर जल प

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मैंने देखा था एक सपना

6 दिसम्बर 2018
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मैं और ब्रह्मांड

8 दिसम्बर 2018
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मेरी ये कविता ईश्वर की विशालता और उसके असीमित प्रकृति को समर्पित है। मुझे आश्चर्य होता है कि मैं इतने बड़े ब्रह्मांड का हिस्सा हूँ।ये ब्रह्मांड इतना बड़ा है कि सबसे नजदीक के तारे के पास भी जाने में वर्षों लग जाते है। इस कविता के माध्यम से मैंने इस ब्रह्मांड के यात्रा की परिकल्पना की है। आइये मेरे

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हिप हिप हुर्रे

13 दिसम्बर 2018
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पिछले एकघंटे से उसके हाथ मोबाइल पर जमे हुए थे। पबजी गेममें उसकी शिकारी निगाहें दुश्मनों को बड़ी मुश्तैदी से साफ कर रहीं थी। तकरीबन आधेघंटे की मशक्कत के बाद वो जोर जोर से चिल्लाने लगा। हुर्रे, हुर्रे, हिप हिप हुर्रे। आखिकार लेबल 30 पार कर हीं लिया। डेढ़ घंटे की जद्दोजहद के

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पाँच रूपये

1 जनवरी 2019
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बात लगभग अस्सी के दशक की है . जितने में आजकल एक कप आइसक्रीम मिलता है , उतने में उनदिनों एक किलो चावल मिल जाया करता था. अंगिरस 6 ठी कक्षा का विद्यार्थी था. उसके पिताजी पोस्ट ऑफिस में एक सरकारी मुलाजिम थे. साईकिल से पोस्ट ऑफिस जाते थे. गाँव में उनको संपन्न लोगो में नहीं , त

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चप्पल वाला दुध

16 जनवरी 2019
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रमेश को बहुत आश्चर्य हुआ।मोन उसके हाथ में चप्पल पकड़ा रहा था। रमेश ने लेने से मना किया तो मोनू रोने लगा। रमेश के मामा ने समझाया, भाई हाथ में पकड़ लो, वरना मोनू दुध नहीं पियेगा। रमेश ने चप्पल हाथ में ले लिया। फिर मोनू एक एक करके मामा , फिर मामी के हाथ में चप्पल पकड़ाते गया। ज

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जीवन ऊर्जा

13 फरवरी 2019
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जीवन ऊर्जा तो एक हीं है, ये तुमपे कैसे खर्च करो।या जीवन में अर्थ भरो या,यूँ हीं इसको व्यर्थ करो।तुम मन में रखो हीन भाव,और ईक्क्षित औरों पे प्रभाव,भागो बंगला गाड़ी पीछे ,कभी ओहदा कुर्सी के नीचे,जीवन को खाली व्यर्थ करो, जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,ये तुमपे कैसे खर्च करो।या म

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राष्ट्र का नेता कैसा हो?

29 अप्रैल 2019
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राष्ट्र का नेता कैसा हो?जो रहें लिप्त घोटालों में,जिनके चित बसे सवालों में,जिह्वा नित रसे बवालों में,दंगा झगड़ों का क्रेता हो?क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?राष्ट्र का नेता कैसा हो?जन गण का जिसको ध्यान नहीं,दुख दीनों का संज्ञान नहीं,निज थाती का अभिज्ञान नहीं,अज्ञान हृदय में सेता हो,क्या राष्ट्र का नेता

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राह प्रभु की

14 मई 2019
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कितना सरल है,सच?कितना कठिन है,सच कहना।कितना सरल है,प्रेम?कितना कठिन है,प्यार करना।कितनी सरल है,दोस्ती,कितना मुश्किल है,दोस्त बने रहना।कितनी मुश्किल है,दुश्मनी?कितना सरल है,दुश्मनी निभाना।कितना कठिन है,पर निंदा,कितना सरल है,औरों पे हँसना।कितना कठिन है,अहम भाव,कितना सरल है,

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डिजिटल भी और सिंगल भी

18 मई 2019
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पबजी गेममें उसकी शिकारी निगाहें दुश्मनों को बड़ी मुश्तैदी से साफ कर रहीं थी। तकरीबन आधेघंटे की मशक्कत के बाद वो जोर जोर से चिल्लाने लगा। हुर्रे, हुर्रे, हिप हिप हुर्रे। आखिकार लेबल 30 पार कर हीं लिया। डेढ़ घंटे की जद्दोजहद के बाद उसने पबजी गेम का 30 वां लेबल पार कर लिया था

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चांडाल

21 मई 2019
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ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। इस कविता में ये दर्शाया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास एक नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। इस कविता को पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करता है, तो कवि अपने प्

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न्यूटन का अपराध

22 जुलाई 2019
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न्यूटन का अपराधअर्जुन अपने 5 भाइयों के साथ मुजफ्फपुर में रहता था। उसके पिता सरकारी मुलाजिम थे । गुजर बसर लायक बामुश्किल कमा पाते थे।अक्सर खाने पीने के लिए अन्य भाइयों के साथ उसको छीना झपटी करनी पड़ती थी। मन लायक भरपुर खाना यदा कदा हीं नसीब होता था। गर्मी की छुट्टियों में

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एक से पचास

6 अगस्त 2019
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एक दो तीन चार पाँच छे सात,गिनती ये मेरी प्रभु सुनो जग्गनाथ।आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह,तेरा हो हाथ छूटे जन्मों का घेरा।चौदह पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस,हार भी ना मेरा प्रभु ना हीं मेरी जीत।बीस इक्कीस बाइस तेईस चौबीस पच्चीस,हरो दुख सारे प्रभु तू हीं मन मीत।छब्बीस सताईस अ

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सागर के दर्शन जैसा

10 अगस्त 2019
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तुम कहते वो सुन लेता,तुम सुनते वो कह लेता।बस जाता प्रभु दिल मे तेरे,गर तू कोई वजह देता।पर तूने कुछ कहा नही,तेरा मन भागे इतर कहीं।मिलने को हरक्षण वो तत्पर,पर तुमने ही सुना नहीं।तुम उधर हाथ फैलाते पल को,आपदा तेरे वर लेता।तुम अगर आस जगाते क्षण वो,विपदा सारे हर लेता।पर तूने क

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खा जाओ इसको तल के

24 अगस्त 2019
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शैतानियों के बल पे,दिखाओ बच्चों चल के,ये देश जो हमारा, खा जाओ इसको तल के।किताब की जो पाठे तुझको पढ़ाई जाती,जीवन में सारी बातें कुछ काम हीं ना आती।गिरोगे हर कदम तुम सीखोगे सच जो कहना,मक्कारी सोना चांदी और झूठ हीं है गहना।जो भी रहा है सीधा जीता है गल ही गल के,चापलूस हीं चल

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बाजार

27 अप्रैल 2020
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झूठ हीं फैलाना कि,सच हीं में यकीनन,कैसी कैसी बारीकियाँ बाजार के साथ।औकात पे नजर हैं जज्बात बेअसर हैं ,शतरंजी चाल बाजियाँ करार के साथ।दास्ताने क़ुसूर दिखा के क्या मिलेगा,छिप जातें गुनाह हर अखबार के साथ।नसीहत-ए-बाजार में आँसू बावक्त आज,दाम हर दुआ की बीमार के साथ।दाग जो हैं

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अभिलाष

26 दिसम्बर 2020
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जीवन के मधु प्यास हमारे, छिपे किधर प्रभु पास हमारे?सब कहते तुम व्याप्त मही हो,पर मुझको क्यों प्राप्त नहीं हो?नाना शोध करता रहता हूँ, फिर भी विस्मय में रहता हूँ,इस जीवन को तुम धरते हो, इस सृष्टि को तुम रचते हो।कहते कण कण में बसते हो,फिर क्यों मन बुद्धि हरते हो ?सक्त हुआ मन निरासक्त पे,अभिव

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नया साल 2021

31 दिसम्बर 2020
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अंधकार का जो साया था, तिमिर घनेरा जो छाया था,निज निलयों में बंद पड़े थे,रोशन दीपक मंद पड़े थे।निज श्वांस पे पहरा जारी, अंदर हीं रहना लाचारी ,साल विगत था अत्याचारी,दुख के हीं तो थे अधिकारी।निराशा के बादल फल कर,रखते सबको घर के अंदर,जाने कौन लोक से आए, घन घ

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सचमुच सब सरकार खा गई

9 जनवरी 2021
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राशन भाषण का आश्वासन देकर कर बेगार खा गई।रोजी रोटी लक्कड़ झक्कड़ खप्पड़ सब सरकार खा गई। देश हमारा है खतरे में, कह जंजीर लगाती है।बचे हुए थे अब तक जितने, हौले से अधिकार खा गई।खो खो के घर बार जब अपना , जनता जोर

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कैसे हो जाति और धर्म का नाश?

19 जनवरी 2021
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मैंने एक छोटी सी कहानी पढ़ी है । एक किसान था । उसके चार बेटे थे । समय आने पर उसने अपनी जमीन को चार बेटों में बाँट दिया । उसने अपने चार बेटों को एक बराबर जमीं प्रदान की थी । सोचा था चारो बेटे शांति से रहेंगे। एक आदमी बहुधा जैसा सोचता है , वैसा होता नहीं है। चारो बेटे एक स

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ईश्वर का प्रमाण

25 जनवरी 2021
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मानव ईश्वर को पूरी दुनिया में ढूँढता फिरता है । ईश्वर का प्रमाण चाहता है, पर प्रमाण मिल नहीं पाता। ये ठीक वैसे हीं है जैसे कि मछली सागर का प्रमाण मांगे, पंछी आकाश का और दिया रोशनी का प्रकाश का। दरअसल मछली के लिए सागर का प्रमाण पाना बड़ा मुश्

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मंजिल का अवसान नहीं

30 जनवरी 2021
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एक व्यक्ति के जीवन में उसकी ईक्क्षानुसार घटनाएँ प्रतिफलित नहीं होती , बल्कि घटनाओं को प्रतिफलित करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। समयानुसार झुकना पड़ता है । परिस्थिति के अनुसार ढ़लना पड़ता है । उपाय के रास्ते अक्सर दृष्टिकोण के परिवर्तित होने पर दृष्टिगोचित होने लगते हैं।

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आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है

13 फरवरी 2021
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सत्य का पालन करना श्रेयकर है। घमंडी होना, गुस्सा करना, दूसरे को नीचा दिखाना , ईर्ष्या करना आदि को निंदनीय माना गया है। जबकि चापलूसी करना , आत्मप्रशंसा में मुग्ध रहना आदि को घृणित कहा जाता है। लेकिन जीवन में इन आदर्शों का पालन कितने लोग कर पाते हैं? कितने लोग ईमानदार, शां

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क्या रखा है नाम में

15 फरवरी 2021
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अपने प्रसिद्ध लेखन में , जिसका नाम है रोमियो और जूलियट, विश्व प्रसिद्ध कवि विलियम शेक्सपियर का एक प्रसिद्ध वक्तव्य दिया है,: - "यदि गुलाब को किसी और नाम से पुकारे तो भी वो उतना हीं मीठा सुगंध देगा जितना कि गुलाब के नाम से पुकारने पर देता है" इस कथन की प्रासंगिकता आज भी

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दशरथ मांझी : प्रेम की अद्भुत मिसाल

13 मार्च 2021
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प्रेम के प्रतीक के रूप में ताजमहल की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है । मिस्र के पिरामिड , चीन की दिवाल, पीसा की झुकी हुई मीनार इत्यादि के साथ ताजमहल को भी दुनिया के सात अजूबों में से एक माना जाता है । सफेद संगमरमर के पत्थर से बनी हुई ये अद्भुत कृति भारत के उत्तर प्रदेश

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अंतर्द्वन्द्व

19 मार्च 2021
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जीवन यापन के लिए बहुधा व्यक्ति को वो सब कुछ करना पड़ता है , जिसे उसकी आत्मा सही नहीं समझती, सही नहीं मानती । फिर भी भौतिक प्रगति की दौड़ में स्वयं के विरुद्ध अनैतिक कार्य करते हुए आर्थिक प्रगति प्राप्त करने हेतु अनेक प्रयत्न करता है और भौतिक समृद्धि प्राप्त भी कर लेता है ,

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आक्सी

27 मार्च 2021
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तुम आते हीं रहो देर से हम रोज हीं बतातें है,चलो चलो हम अपनी अपनी आदतें दुहराते हैं।लेट लतीफी तुझे प्रियकर नहीं समय पर आते हो,मैं राही हूँ सही समय का नाहक हीं खिसियाते हो।तुम कहते हो नित दिन नित दिन ये क्या ज्ञान बताता हूँ?नही समय पर तुम आते हो कह क्यों शोर मचाता हूँ?जाओ ज

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पश्चाताप

3 अप्रैल 2021
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तुम कहते हो करूँ पश्चताप,कि जीवन के प्रति रहा आकर्षित ,अनगिनत वासनाओं से आसक्ति की ,मन के पीछे भागा , कभी तन के पीछे भागा ,कभी कम की चिंता तो कभी धन की भक्ति की। करूँ पश्चाताप कि शक्ति के पीछे रहा आसक्त ,कभी अनिरा से दूरी , कभी मदिरा की मज़बूरी ,कभी लोभ कभी भोग तो कभी म

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-1

18 अप्रैल 2021
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जब सत्ता का नशा किसी व्यक्ति छा जाता है तब उसे ऐसा लगने लगता है कि वो सौरमंडल के सूर्य की तरह पूरे विश्व का केंद्र है और पूरी दुनिया उसी के चारो ओर ठीक वैसे हीं चक्कर लगा रही है जैसे कि सौर मंडल के ग्रह जैसे कि पृथ्वी, मांगल, शुक्र, शनि इत्यादि सूर्य का चक्कर लगाते हैं। न

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दुर्योधन कब मिट पाया:[भाग-2]

26 अप्रैल 2021
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महाभारत के शुरू होने से पहले जब कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर दुर्योधन के पास आये तो दुर्योधन ने अपने सैनिकों से उनको बन्दी बनाकर कारागृह में डालने का आदेश दिया। जिस कृष्ण से देवाधिपति इंद्र देव भी हार गए थे। जिनसे युद्ध करने की हिम्मत देव, गंधर्व और यक्ष भी जुटा नहीं पाते थे, उन श्रीकृष्ण को कैद मे

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जरा दिल को थाम के

30 अप्रैल 2021
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कोरोना बीमारी की दूसरी लहर ने पूरे देश मे कहर बरपाने के साथ साथ भातीय तंत्र की विफलता को जग जाहिर कर दिया है। चाहे केंद्र सरकार हो या की राज्य सरकारें, सारी की सारी एक दूसरे के उपर दोषरोपण में व्यस्त है। जनता की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव प्रचार हो गया है। दवाई, टीका, बेड आदि की कमी पूरे देश मे

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कोरोना से हार चुके क्या ईश्वर से ये कहे बेचारे?

3 मई 2021
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कोरोना महामारी के हाथों भारत में अनगिनत मौतें हो रही हैं। सत्ता पक्ष कौए की तरह अपनी शक्ति बढ़ाने के लालच में चुनाव पे चुनाव कराता जा रहा है तो विपक्ष गिद्ध की तरह मृतकों की गिनती करने में हीं लगा हुआ है। इन कौओं और गिद्धों की प्रवृत्ति वाले लोगों के बीच मजदूर और श्रमिक प

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-3

19 मई 2021
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रामायण में जिक्र आता है कि रावण के साथ युद्ध शुरू होने से पहले प्रभु श्रीराम ने उसके पास अपना दूत भेजा ताकि शांति स्थापित हो सके। प्रभु श्री राम ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि युद्ध विध्वंश हीं लाता है । वो जान रहे थे कि युद्ध में अनगिनत मानवों , वानरों , राक्षसों की जान जाने वाली थी ।

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-4

23 मई 2021
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जिस प्रकार अंगद ने रावण के पास जाकर अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र के संधि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था , ठीक वैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण भी महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले कौरव कुमार दुर्योधन के पास पांडवों की तरफ से शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। एक दूत के रूप में अंगद और श्रीकृष्ण की भू

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आओ ऐसे दीप जलाओ

4 नवम्बर 2021
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<p>इस दीवाली सबके हृदय में दया , शांति, करुणा और क्षमा का उदय हो, क्रोध और ईर्ष्या का नाश हो और प्रे

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वक्त का मारा हुआ

7 नवम्बर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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विगत साल

2 जनवरी 2022
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जग हारा अंतक जीत गया आमोद  मोद मधुगीत गया,थे तन्हा तन्हा रात दिन  वक्त  शोकाकुल  व्यतीत गया।कुछ राष्ट्र   बड़े जो  बनते थे दीनों  पर तनकर  रहते थे ,उनकी मर्यादा अनुशासित वो अहमभाव ..

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अफसोस शहीदों का

27 मार्च 2022
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चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, खुदी राम बोस, मंगल पांडे इत्यादि अनगिनत वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हंसते हंसते अपनी जान को कुर्बान कर दिया। परंतु ये देश

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क्या क्या काम कराओगे तुम

3 अप्रैल 2022
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मर्यादा पालन करने की शिक्षा लेनी हो तो प्रभु श्रीराम से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता। कौन सी ऐसी मर्यादा थी जिसका पालन उन्होंने नहीं किया ? जनहित को उन्होंने हमेशा निज हित सर्वदा उपर रखा। परंतु

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साँप की हँसी कैसी होती

10 अप्रैल 2022
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जब देश के किसी हिस्से में हिंसा की आग भड़की हो , अपने हीं देश के वासी अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हो  और जब अपने हीं देश मे पराये बन गए इन बंजारों की बात की जाए तो क्या किसी व्यक्ति के लिए ये हँ

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क्यों सत अंतस दृश्य नहीं

15 अप्रैल 2022
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सृष्टि के कण कण में व्याप्त होने के बावजूद परम तत्व, ईश्वर  या सत , आप उसे जिस भी नाम से पुकार लें, एक मानव की अंतर दृष्टि में क्यों नहीं आता? सुख की अनुभूति प्रदान करने की सम्भावना से परिपूर्ण हो

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किस राह के हो अनुरागी

25 अप्रैल 2022
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ईश्वर किसी एक धर्म , किसी एक पंथ या किसी एक मार्ग का गुलाम नहीं। अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने से ज्यादा अप्रासंगिक मान्यता कोई और हो हीं नहीं सकती । परम तत्व को किसी एक धर्म या पंथ में बाँधने की कोश

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अखबार ए खास

8 मई 2022
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समाज की बेहतरी की दिशा में आप कोई कार्य करें ना करे परन्तु कार्य करने के प्रयासों का प्रचार जरुर करें। आपके झूठे वादों , भ्रमात्मक वायदों , आपके प्रयासों की रिपोर्टिंग अखबार में होनी चाहिए। समस्

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मेरे गाँव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर [प्रथम भाग】

22 मई 2022
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इस सृष्टि में कोई भी वस्तु बिना कीमत के नहीं आती, विकास भी नहीं। अभी कुछ दिन पहले एक पारिवारिक उत्सव में शरीक होने के लिए गाँव गया था। सोचा था शहर की दौड़ धूप वाली जिंदगी से दूर एक शांति भरे माहौ

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मेरे गांव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर:भाग:2

5 जून 2022
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हाल फिलहाल में मेरे द्वारा की गई मेरे गाँव की यात्रा के दौरान मेने जो बदलाहट अपने गाँव की फिजा में देखी , उसका काव्यात्मक वर्णन मेने अपनी कविता "मेरे गाँव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर" क

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वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में [तृतीय भाग ]

10 जुलाई 2022
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प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए संसार को कोसना सर्वथा व्यर्थ है। संसार ना तो किसी का दुश्मन है और ना हीं किसी का मित्र। संसार का आपके प्रति अनुकूल या प्रतिकूल बने रहना बिल्कुल आप पर निर्भर करता है। महत्व

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वर्तमान से वक्त बचा लो [पंचम भाग ]

28 अगस्त 2022
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विवाद अक्सर वहीं होता है, जहां ज्ञान नहीं अपितु अज्ञान का वास होता है। जहाँ ज्ञान की प्रत्यक्ष अनुभूति  होती है, वहाँ  वाद, विवाद या  का प्रतिवाद क्या स्थान ?  आदमी के हाथों में  वर्तमान समय के अल

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