जग हारा अंतक जीत गया आमोद मोद मधुगीत गया,
थे तन्हा तन्हा रात दिन वक्त शोकाकुल व्यतीत गया।
कुछ राष्ट्र बड़े जो बनते थे दीनों पर तनकर रहते थे ,
उनकी मर्यादा अनुशासित वो अहमभाव अपनीत गया।
खाली खाली सारी सड़कें थी सुनीं सुनी सब गलियां,
जीवन की वीणा बजती ना वो राग मधुर संगीत गया।
गत साल भरा था काँटों से मन शंकित शंकित रहता था,
शोक संदेशे सुन सुन कर उर का सारा वो गीत गया।
मदमाता सावन आया कब कब कोयल कूक सुनाती थी,
विस्मृत बाग में फूलों के हिलने डुलने का रीत गया।
निजनिलयों में रहकर जीना था डर का विषप्याला पीना,
बढ़ती दुरी थी अपनों में वो अपनापन वो प्रीत गया।
तन पर तो थोड़े चोट पड़े पर मन पर थे वो बड़े बड़े ,
अब तक चित्त पर जो हरे भरे देकर कैसा अतीत गया।
पर बुरी बात की एक बात अच्छी सबको हीं लगती है,
जो दौर बुरा ले विगत साल आया था अब वो बीत गया।
बाधा आती हैं आयेंगी जग में जीवन कब रुकता है,
नए आगत का स्वागत मन से ऊर्जा आशा संप्रीत नया।
चित्त के पल्लव मुस्काएंगे उल्लास कुसुम छा जाएंगे,
नव साल पुनः हम गायेंगे जीवन का न्यारा गीत नया।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित