तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ दो महीने बाद 26 नवंबर को रिटायर होंगे और नवाज शरीफ की सत्ता की उम्र अभी पौने दो बरस बची हुई है। इन दोनों के बीच सेना के पांच अफसर ऐसे हैं, जिनमें से कोई एक नवंबर के बाद पाकिस्तान का जनरल हो जायेगा, लेकिन ये कहानी सच्ची तो है लेकिन अच्छी नही लगती। पाकिस्तान में सत्ता यूं ही बदलती और कोई सामान्य तरीके से कोई रिटायर भी नहीं होता। तो जो कहानी सच्ची नहीं होती वह पाकिस्तान को लेकर अच्ची लगती है। इस कहानी में असल पेंच आ फंसा है भारत का सर्जिकल आपरेशन। भारत के चार घंटे के इस आपरेशन ने पाकिस्तान के सियासी और सेना के इतिहास को ही उलट पलट दिया है। पहली बार दोनों शरीफ पाकिस्तान के बीतर ही इस तरह कटघरे में आ खड़े हुये हैं कि अब दोनों को ये तय करना है कि साथ मिलकर चले या फिर एक दूसरे को शह-मात देने की बिसात बिछा लें। पाकिस्तान के हालात शह- मात की बिसात में जाने लगे है क्योंकि कैबिनेट की बैठक में नवाज अपने ही मंत्रियो को ये भरोसा ना दिला पाये कि वह चाहेंगे तो सेना कूच कर जायेगी। दूसरी तरफ राहिल शरीफ रावलपिंडी में अपने सैनिक अधिकारियों को इस भरोसे में लेने में लगे रहे कि सेना तभी कूच करती है जब उसे पता हो जाये कि जीत उसकी होगी ।
यानी नवाज शरीफ के कहने पर सेना चल नहीं रही है और नवाज शरीफ की बिसात राहिल शरीफ के रिटायरमेंट के बाद अपनी पसंद के अधिकारी को जनरल के पद पर बैठाने की है। यानी भारत के इस सर्जिकल आपरेशन ने पाकिस्तान के भीतर के उस सच को सतह पर ला दिया है जिसे आंतकवाद से लडने और कश्मीर के नाम पर अभी तक सत्ता सेना संभाले नवाज और राहिल किसी शरीफ की तरह ही नजर आ रहे थे। यानी नये हालात में तीन सवाल पाकिस्तान में गूंजने लगे है। पहला, राहिल रिटायरमेंट पसंद कर किसी सरकारी कारपोरेशन में सीईओ का पद लेना चाहेंगे। दूसरा, राहिल, मुशर्ऱफ की राह पर निकल कर खुद सत्ता संभालने और अपने पसंदीदा को जनरल की कुर्सी पर बैठाएंगे। तीसरा, नवाज शरीफ किसी भी हालात में सेना को सियासत से दूर करने के लिये युद्द में झोकना पंसद करेगें।
यानी तरकीबी दोनों तरफ से चली जायेगी और चली जा रही है। नवाज शरीफ के सामने दो बरस का वक्त अभी भी है लेकिन जिस तरह भुट्टो की पीपीपी और इमरान की पार्टी राहिल शरीफ के कन्धों पर चढकर अब सत्ता पाने का ख्वाब देखने लगी है वह नवाज के लिये खतरे की घंटी है क्योंकि नवाज के विरोधी अब पाकिस्तान की अवाम की भावनाओं के साथ सेना या कहे राहिल शरीफ को करीब बता रहे है। भारत के सर्जिकल अटैक के पीछे सेना की असफलता को ना कहकर नवाज की असफलता ही बता रहे है। यानी मोदी से नवाज की यारी भी पाकिस्तान में नवाज शरीफ पर खतरे के बादल मंडरा रही है। राहिल शरीफ की बिसात पर वजीर नवाज कब प्यादा बना दिये जा सकते है इसका इंतजार सेना-सियासत दोनों करने लगे है। तो क्या पाकिस्तान में हालात ऐसे बन रहे हैं कि सत्ता पलट हो सकता है। ये सवाल इसलिए क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता पलट का इतिहास है और हर बार जब लोकतांत्रिक सरकार कुछ कमजोर होती है या पिर सत्ता पूरी तरह सेना की कार्रवाई पर ही आ टिकती है तो सेना सीधे सत्ता संभालने से नहीं कतराती और फिलहाल पकिस्तान का रास्ता इसी दिशा में जा रहा है।
अभी तक नवाज शरीफ ने राहिल शरीफ के अलावे पाकिस्तान में जिन दो अधिकारियों से संपर्क साधा वह दोनो जनरल बनने की रेस में है। इन्हीं दोनों को रावलपिंडी में राहिल शरीफ ने अफगालनिस्तान की सीमा से भारत की सीमा यानी लाइन आफ कन्ट्रोल की दिशा में भेजे जा रहे सैनिकों की निगरानी के निर्देश भी दिये है। बाकी तीन जो जनरल की रेस में है उन्हें भी राहिल शरीफ ने बीते 48 घंटो में अपनी तीन बैठको में बुलाया। तो पाकिस्तान के भीतर सेना की हलचल बता रही है कि भारत के खिलाफ कोई भी कार्रवाई को वह राहिल शरीफ की बिसात पर करेगी ना कि नवाज शरीफ के सियासी फैसले पर। इसीलिये इकबाल रानाडे की निगरानी में अफगान बार्डर से एलओसी में ट्रांसफर किये जा रहे सैनिको की अगुवाई का काम सौपा गया है। इकबाल ट्रिपल एक्सआई कमांडर हैं। साल 2009 में अफ़ग़ानिस्तान सीमा के पास स्वात घाटी में पाकिस्तानी तालिबानी आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन को लीड किया। वही राहिल का परिवार जिस तरह सेना में रहा है उसमें जुबैर हयात का परिवार भी सेना में रहा है तो उनकी निगरानी में एलओसी की हरकत है।
जुबैर हयात न केवल खुद लेफ्टिनेंट जनरल हैं उनके पिता मेजर जनरल असलम हयात नामी शख्सियतों में एक रहे। और राहिल शरीफ के चाचा के साथ सेना में रहे है । महत्वपूर्ण है कि नवाज शरीफ अज अपनी कैबिनटे में हालात को बताते हुये सेना के बारे में सिर्फ यही कह पाये कि संसद के विशेष सत्र में सारी जानकारी हर राजनीति क दल और देश के सामने रखेंगे । यानी जो मूवमेंट पाकिस्तानी सेना के भीतर हो रहे हैं, उसे नवाज शरीफ या तो बता नहीं पा रहे है या फिर सर्जिकल अटैक के बाद सेना और सत्ता में ये दूरी आ गई है कि अब सफलता के लिये दोनो ही अपनी अपनी बिसात बिछा रहे है । इसीलिये पाकिसातन के कराची और रावलपिंडी के न्यूक्लियर प्लांट पर निगरानी का काम मजहर जामिल देख रहे रहे है । ये वही शख्स है जो करगिल के दौर में पाकिस्तान के न्यूक्किल कॉप्लेक्स देखते थे ।और तब मुशर्रफ के सत्ता पलट के दौर में ये नवाज शरीफ को कोई सूचना देने से पहले सेना हेडक्वार्टर के करीब रहे । तो नया सवाल ये भी है कि पाकिस्तान की सेना अगर एलओसी पर सक्रिय हो रही है तो फिर हमले या किसी कार्रवाई का निर्देश कौन देगा । या किस निर्देश को सेना मानेगी। और पाकिस्तान के भीतर की हलचल भारत में क्या असर डालेगी । ये सारे सवाल उस युद्द की ही दस्तक दे रहे है जिसे दुनिया नहीं चाहती है।