देहरादून: उत्तर प्रदेश में युवा जोश अखिलेश यादव मोदी के तिलिस्म को चुनौती दे पाएं या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है। लोकिन पड़ोस के उत्तराखंड में हरीश रावत बीजेपी के लिए उतनी ही बड़ी चुनौती हैं जितने ऊंचे यहां के पहाड़ हैं। उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ और हर चौराहे पर लोगों से घुलमिल जाने वाले हरीश रावत, मुख्यमंत्री से कहीं बढ़कर राजनीति के खिलाड़ी हैं।
दरअसल, राष्ट्रपति शासन लगने के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी और उनके सिपहसालार हरीश रावत से गच्चा खाकर उनकी सरकार को फिर से बनते हुए देखने को मजबूर हुए, उसी के बाद से उत्तराखण्ड की कमान मोदी ने खुद संभाली। दरअसल मोदी जान गए कि हरीश रावत को घेरना खण्डूरी और कोशियारी जैसे बुजुर्ग नेताओं के बस की बात नहीं। उन्हें इस बात पर भी संदेह था कि अजय भट्ट या अनिल बलूनी, हरीश रावत को उन्हीं की ज़मीन यानी उत्तराखंड में चित्त कर पाएंगे। मोदी जानते थे कि जिस मुरली मनोहर जोशी के सारथी बनकर वो श्रीनगर में तिरंगा फहराकर राष्ट्रीय राजनीति की सुर्खियों में आए थे, उन्हीं महारथी मुरली मनोहर जोशी को मात देकर रावत ने राजनीति शुरू की।
मोदी ने खेल ा अपना पत्ता
सूत्रों के मुताबिक़ उत्तराखण्ड में जिस तरह राष्ट्रपति शासन लगाया और हटाया गया, मोदी उसे किसी राजनाथ, विजयवर्गीय या श्यामजाजू की मात नहीं मानते। उसे वो अपने सम्मान से जोड़कर देखते हैं। इंडिया संवाद से बातचीत में भाजपा के वरिष्ठ सांसद ने बताया कि मोदी राष्ट्रपति शासन को लेकर सशंकित थे, लेकिन जिस तरह पार्टी के कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री को भरोसा दिलाया कि सब कुछ आसानी से निपट जाएगा, लेकिन जब वह रणनीति चारों खाने चित्त हुई तो मोदी को लगा कि उनकी छवि पर अकारण एक दाग़ लग गया है। भले ही इस दाग़ को लगाने में मोदी विरोधी कुछ लोग सक्रिय हुए थे, लिहाज़ा हरीश रावत को घेरने में मोदी ने खुद अपनी जेब से अपना एक पत्ता निकाला और उस पत्ते को मोदी ने अपने मंत्रीमंडल में सजा लिया। यह पत्ता कोई और नहीं बल्कि उत्तराखण्ड के भाजपा के डायनमो कहे जाने वाले हाई एनर्जी नेता अजय टम्टा थे।
टम्टा अपनी सादगी और मेहनत के चलते लंबे समय से मोदी की नज़र में थे। मोदी ने टम्टा को मंत्री बनाकर न सिर्फ उत्तराखण्ड की बीजेपी ब्रिगेड में खलबली मचा दी, बल्कि दिल्ली की अशोका रोड पर कई स्वयंभू चाण्क्यों को भी चौंका दिया। संघ के एक राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी ने बताया कि मोदी ने टम्टा को कहा है कि कुछ महीनों के लिए वो दिल्ली का राजपाठ और संसद भूल जाएं और सिर्फ़ पहाड़ पर चढ़ाई करें। गुरू मोदी की बात मानकर चेले अजय टम्टा ने उत्तराखंड में इतनी सक्रियता बढ़ा दी कि उन्हें दिल्ली में नए बंगले में प्रवेश करने का भी वक़्त नहीं मिला।
मोदी ने तय किया उत्तराखण्ड का 'सोनोवाल'
दरअसल टम्टा दिल्ली के 604, कावेरी अपार्टमेंट से ही हरीश रावत की हर काट की व्यूह रचना रच रहे हैं। टम्टा मोदी को हर कदम से परिचित करा रहे हैं। बहरहाल यूपी में मोदी मुख्यमंत्री का कोई चेहरा भले ही न चुन पाए हों लेकिन उत्तराखण्ड में उन्होनें 'सोनोवाल' चुन लिया है। वह सोनवाल, जो असम के मुख्यमंत्री हैं यानी अजय टम्टा, टम्टा को मोदी उत्तराखण्ड की बागडोर सौंपना चाहते हैं। लेकिन उनके लिए मुसीबत पार्टी के कोई धुरंधर नेता नहीं हैं, बल्कि वो हरीश रावत हैं जो चालीस साल की सियासत के बाद उत्तराखण्ड की सियासत में रम गए हैं। यानी आने वाले कुछ महीनों में देवभूमि में आपको जिस रणभूमि के दर्शन होंगे, उसमें एक तरफ टम्टा और मोदी होंगे तो दूसरी तरफ हरीश रावत और उनका 40 साल का तजुर्बा।