लखनऊ: बाराबंकी के युवक की आंत के ऑपरेशन के समय उसके शरीर से गायब हुई दाहिनी किडनी के बारे में यह कहकर केजीएमयू प्रशासन बच नही सकता कि उसके पास किडनी का कोई हिसाब नही।
बाराबंकी निवासी युवक का ऑपरेशन KGMU के जूनियर डॉक्टरों ने किया था,ऑपरेशन के पहले दोनों किडनी होने के प्रमाण KGMU के ही थे तो ऑपरेशन के बाद एक किडनी काम होने की जिम्मेदारी भी KGMU की ही बनती है। अब मेडिकल रिकॉर्ड की छानबीन में किडनी का कोई ब्योरा दर्ज नहीं मिल रहा, ओटी नोटस में भी डैमेज आंत की रिपेयरिंग का ही जिक्र है। ऐसे में मरीज में दायीं किडनी के गायब होने का सस्पेंस अभी भी बना हुआ है।
बाराबंकी निवासी पृथ्वीराज 23 के किडनी गायब होने का मामला उलझता जा रहा है। कल स्थानीय समाचार पत्रों एवम इंडिया संवाद में मामला उठने पर KGMU में हडकंप मच गया है।कोई भी सच बात बताने को तैयार नही है।
कार्यालय खुलते ही वर्ष 2015 के पेशेंट मेडिकल रिकॉर्ड खंगाले गए। रिकॉर्ड पृथ्वीराज की ऑपरेशन टीम में सीनियर चिकित्सक का नाम मौजूद नहीं था। सीनियर व जूनियर रेजीडेंट की टीम द्वारा पृथ्वीराज का ऑपरेशन किया गया। वहीं डिस्चार्ज स्लिप में दो सीनियर कंसल्टेंट का नाम डाला गया। इलाज का ब्योरा चेक करने में फाइल में न तो मरीज का पहले का अल्ट्रासाउड जांच व फिल्म मिली और न ही ऑपरेशन के बाद की। रिकॉर्ड में रक्त की जांच व दर्ज ब्योरा ही मिला। कोई सटीक जांच न मिलने से पृथ्वीराज की किडनी का मुददा उलझता ही जा रहा है या KGMU प्रशासन द्वारा अपने स्टाफ को बचाने के लिए अभि लेख ों में हेराफेरी की जा रही हो।
एक चिकित्सक के मुताबिक फाइल में ब्लाइंड इंजरी एब्डॉमिन बताया गया । वहीं ओटी नोटस में जूनियर चिकित्सकों द्वारा आंत के दो हिस्सों की रिपेयरिंग का जिक्र किया गया है। इसमें आंत के ऊपर के हिस्से डयूडेनम व नीचे के हिस्से जेजुनम है। वही डयूडेनम में लगे टांके को एसिड से बचाने के लिए उसका बाईपास के लिए एक टयूब डाली गई, वहीं मरीज को खाना देने के लिए निचले हिस्से जेजुनम में टयूब डाली गई। इसके अलावा ब्योरो में कोई अन्य अंग की रिपेयरिंग का जिक्र नहीं था।सीनियर चिकित्सक ने जूनियर डॉक्टरों को भी तलब किया।
ऑपरेशन टीम में एक एसआर, दो जेआर थ्री, दो एनेस्थेटिस्ट, एक सिस्टर, एक ओटी टेक्नीशियन व एक स्वीपर भी शामिल था। ऐसे में जेआर- एसआर ने सिर्फ आंत रिपेयरिंग की बात कही। विशेषज्ञों की माने तो सीटी एंजियोग्राफी और डीएमएसए स्कैन जांच से मामले की पूरी पडताल की जा सकती है।
यदि मरीज की किडनी सिकुड कर शरीर मे मौजूद है तो वह भी पता चल जाएगा और यदि किडनी निकाली गई है तो शरीर में एओटा से कनेक्ट होने वाली रीनल आर्टरी व यूरेटर का कुछ हिस्सा शरीर में मौजूद होगा। यही नहीं यदि जन्म से ही व्यक्ति में किडनी नहीं होगी तो कुछ नहीं आएगा।
यदि सीटी एंजियोग्राफी व डीएमएस में जन्म से ही किडनी न होने की पुष्टि होती है तो बाराबंकी व KGMU मे अल्ट्रासउंड करने वाले रेडियोलॉजिस्ट की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है। दोनों केंद्रों पर घटना के दिन हुए अल्ट्रासाउंड में दोनों किडनी मौजूदगी दर्शाई गई है।
ज्ञात हो कि यह मामला बाराबंकी निवासी पृथ्वीराज से संबंधित है जो ट्रैक्टर पलटने से वह घायल हो गया था। 19 फरवरी 2015 घायल पृथ्वीराज को लेकर परिजन बाराबंकी अस्पताल भागे। निजी डायग्नोसिटक सेंटर पर अल्ट्रासाउंड कराकर जिला अस्पताल की इमरजेंसी में दिखाया जिसे आंत फटी बताकर KGMU रेफर कर दिया। अरोप है कि भाई विलेश व मौसी रामदुलारा को बाराबंकी अस्पताल के चिकित्सक KGMU में परिचित डॉक्टरों का हवाला देकर मदद का भी आश्वासन दिया। साथ ही एंबुलेंस से KGMU भेजकर खूद रात में ऑपरेशन के वक्त मौजूद रहा।
ट्रांमा के डॉक्टरों ने रात 11ः45 पर मरीज को ओटी में शिफ्ट कर ओपेन सर्जरी की। इसके बाद सुबह साढे छह बजे मरीज को बाहर निकाला गया। ऑपरेशन से पहले हुए दो अल्ट्रासाउंड में दोनों किडनी मौजूद थीं।ऑपरेशन में बाराबंकी के डॉक्टर का भी होना संदेह से अलग नही है और यदि ऐसा है तो ट्रामा सेंटर और बाहर का डॉक्टर मिल करवतः कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र करतेव्है इसी कारण KGMU की फ़ाइल से रिपोर्ट गायब हो रही है।
गुरूवार को डीजीपी ने इस समाचार को सं ज्ञान लेते हुए पूरे प्रकरण में अपने कार्यालय के जरिए जानकारी हासिल की। वही इस मामले में अब सबकी निगाहें न्यायालय पर टिकी है। पुलिस से राहत न मिलने पर पृथ्वीराज ने न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था। अदालत ने अभी पृथ्वीराज के मामले में कोई आदेश नही दिया है ।