नई दिल्ली : एक तरफ देशभर के बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें लगी हैं वहीँ दूसरी तरफ सरकार के पास नोट छापने के लिए न तो स्याही है और न ही कागज़। एक रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया नोट छापने के लिए टेंडर प्रक्रिया भी शुरू नही कर पाया है। अभी तक सरकार मैसूर के मिल से नोट छापने के लिए कागज की भरपाई कर रही थी लेकिन इस मिल से सिर्फ पांच फीसदी कागज की भरपाई की जा सकती है।
आरबीआई 95 फीसदी कागज़ अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी पर निर्भर है। अब नोटों की भारी जरूरत पड़ रही है इसलिए अब जल्दबाजी में कंपनियों को टेंडर के लिए प्रस्ताव भेजा जा रहा है। आरबीएआई ने जो पत्र वित्त मंत्रालय को भेजा है उसमे कहा गया है कि नोटों की छपाई के लिए तकरीबन 22 हजार मीट्रिक टन करेंसी कागज की जरूरत है। आरबीआई ने कहा है कि मध्यप्रादेश के होशंगाबाद में बड़ी पेपर मिल है लेकिन वहां कागज है ही नही। भारत के पास अभी जरूरत का 10 फीसदी कागज़ है जो देश में बनता है।
वित्त मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है कि अभी देवास और नाशिक के प्रिंटिंग प्रेस में पुराने नोटों का स्क्रैप हटाने की चुनौती है। दो महीने पहले तक दोनों जगह पांच सौ और एक हजार रुपए के पुराने नोट छप रहे थे, जिनके लिए इस साल जुलाई में आर्डर भेजा जा चुका था। प्रधानमंत्री की नोटबंदी की आकस्मिक घोषणा के बाद मैसूर में प्रयोग के तौर पर छापे जा रहे नोटों को चलन के लिए जारी करने की जद्दोजहद रही। अब जबकि नोटों की मांग बढ़ने लगी है, दोनों जगह नए नोट छापने की मांग प्रेषित की गई है।
दोनों मुद्रणालयों में छपकर पड़े नोटों की शीट्स के साथ ही छपाई मशीनों में पड़े नोटों को भी हटाने और स्क्रैप करने की चुनौती है। इन नोटों को कटिंग, नंबरिंग, बंडल के लिए भेजने की तैयारी चल रही थी, जब नोटों को अमान्य करने की घोषणा की गई। इन जगहों पर रोजाना पांच- पांच लाख करंसी छापी जा रही थी।
मौजूदा हालात में इन मुद्रणालयों में एक-एक सौ के नोट छापने का आदेश जारी किया गया है। लेकिन दोनों जगह कागजों की नई खेप का इंतजार हो रहा है। स्विस कंपनी करती है छपाई की स्याही की आपूर्ति स्विट्जरलैंड की कंपनी एसआइसीपीए दुनिया के तमाम देशों को नोटों की छपाई के लिए स्याही की आपूर्ति करती है। स्याही के लिए आरबीआइ इसी कंपनी से स्याही खरीदती है।