नई दिल्लीः यह तस्वीर है इलाहाबाद की। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि नाला साफ करने में जुटे इन युवाओं में से किसी के पास बीटेक की डिग्री है तो किसी के पास एमबीए की। वैसे जात-पात की बात नहीं करनी चाहिए, चूंकि जिस पेशे में यह युवा उतरने जा रहे हैं, वह आमतौर पर एक जाति विशेष का माना जाता है, इस नाते यहां जाति का बात करना बेमानी नहीं होगी। इसमें से ज्यादातर पंडित, ठाकुर, कायस्थ आदि ऊंची बिरादियों के युवा हैं। आइए हम बताते हैं कि क्यों ऊंची बिरादियों के इतने पढ़े-लिखे युवा आजकल नाला सफाई का इम्तहान दे रहे हैं।
नियुक्ति के लिए नाला साफ कर दिखाना होगी काबिलियत
दरअसल सफाईकर्मियों की नियुक्ति में पारदर्शिता के लिए 2008 में सर्कुलर जारी हुआ था प्रैक्टिकल का। यानी आवेदकों को नाले में उतरकर सफाई का हुनर पेश करना होगा। अगर अफसर संतुष्ट होंगे तभी प्रैक्टिकल में उन्हें पास करेंगे। यूपी की ज्यादातर नगर निकायों में यह व्यवस्था नहीं लागू हुई। मगर हाल में जब इलाहाबाद नगर निगम की ओर से कुल 119 सफाईकर्मियों के पदों की भर्ती निकाली गई तो यह नियम लागू कर दिया गया। जिसके बाद अब अच्छी-खासी डिग्री लेकर आवेदन करने वाले युवाओं को नाले में उतरकर साफ-सफाई का इम्तहान देना पड़ रहा है।
एक अनार सौ बीमार, 119 पोस्ट के लिए 1.10 लाख दावेदार
बीए-बीएससी, बीटेक-एमटेक करने के बाद भी युवा किस कदर बेरोजगार हैं, सफाईकर्मियों की भर्ती से पोल खुलती है। यूं तो सफाईकर्मी बनने के लिए महज साक्षर होना जरूरी है। मगर, इलाहाबाद नगर निगम में जिस तरह से ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट किए युवाओं ने आवेदन किया है, उससे साफ पता चलता है कि वे 17 हजार रुपये महीने की सेलरी वाली सफाईकर्मी की नौकरी करने से भी संतोष करने के मूड में हैं।