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पात्र

27 अप्रैल 2022

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पुरुष-पात्र

स्कंदगुप्त-- युवराज (विक्रमादित्य)

कुमारगुप्त-- मगध का सम्राट

गोविन्दगुप्त-- कुमारगुप्त का भाई

पर्णदत्त-- मगध का महानायक

चक्रपालित-- पर्णदत्त का पुत्र

बन्धुवर्मा-- मालव का राजा

भीमवर्मा-- उसका भाई

मातृगुप्त-- काव्यकर्ता (कालिदास)

प्रपंचबुद्धि-- बौद्ध कापालिक

शर्वनाग-- अन्तर्वेद का विषयपति

कुमारदास (धातुसेन)-- सिंहल का राजकुमार

पुरगुप्त-- कुमारगुप्त का छोटा पुत्र

भटार्क-- नवीन महाबलाधिकृत

पृथ्वीसेन-- मंत्री कुमारामात्य

खिगिल-- हूण आक्रमणकारी

मुगल-- विदूषक

प्रख्यातकीर्ति-- लंकाराज-कुल का श्रमण, महा-बोधिबिहार-स्थविर

अन्य-- महाप्रतिहार, महादंडनायक, नन्दी-ग्राम का दंडनायक, प्रहरी, सैनिक इत्यादि


स्त्री-पात्र

देवकी-- कुमारगुप्त की बड़ी रानी, (स्कंद की माता)

अनन्तदेवी-- कुमारगुप्त की छोटी रानी (पुरगुप्त की माता)

जयमाला-- बंधुवर्मा की स्त्री, (मालव की रानी)

देवसेना-- बंधुवर्मा की बहिन

विजया-- मालव के धनकुबेर की कन्या

कमला-- भटार्क की जननी

रामा-- शर्वनाग की स्त्री

मालिनी-- मातृगुप्त की प्रणयिनी

अन्य-- सखी, दासी इत्यादि

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रचनाएँ
स्कंदगुप्त (नाटक)
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स्कंदगुप्त नाटक में गुप्तवंश के सन् 455 से लेकर सन् 466 तक के 11 वर्षों का वर्णन है। इस नाटक में लेखक ने गुप्त कालीन संस्कृति, इतिहास, राजनीति संधर्ष, पारिवारिक कलह एवं षडयंत्रों का वर्णन किया है। स्कंदगुप्त हूणों के आक्रमण (455 ई०) से हूण युद्ध की समाप्ति (466) तक की कहानी है।
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पात्र

27 अप्रैल 2022
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पुरुष-पात्र स्कंदगुप्त-- युवराज (विक्रमादित्य) कुमारगुप्त-- मगध का सम्राट गोविन्दगुप्त-- कुमारगुप्त का भाई पर्णदत्त-- मगध का महानायक चक्रपालित-- पर्णदत्त का पुत्र बन्धुवर्मा-- मालव का राजा भीमव

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प्रथम अंक

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[उज्जयिनी में गुप्त-साम्राज्य का स्कंधावार] स्कंदगुप्त---(टहलते हुए) अधिकार-सुख कितना मादक और सारहीन है! अपने को नियामक और कर्ता समझने को बलवती स्पृहा उससे बेगार कराती है! उत्सव में परिचारक और अस्त्र

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द्वितीय अंक

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[मालव में शिप्रा-तट-कुंज] देवसेना--इसी पृथ्वी पर है और अवश्य है। विजया--कहाँ राजकुमारी? संसार में छल, प्रवञ्चना और हत्याओं को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत् ही नरक है। कृतघ्ता और पाखं

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तृतीय अंक

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[शिप्रा-तट] प्रपंचबुद्धि--सब विफल हुआ! इस दुरात्मा स्कन्दगुप्त ने मेरी आशाओं के भंडार पर अर्गला लगा दी। कुसुमपुर में पुरगुप्त और अनन्तदेवी अपने विडम्बना के दिन बिता रहे हैं। भटार्क भी बन्दी हुआ, उसके

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चतुर्थ अंक

27 अप्रैल 2022
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( विजया और अनन्तदेवी ) अनन्त०--क्या कहा? विजया--मैं आज ही पासा पलट सकती हूँ। जो झूला ऊपर उठ रहा है, उसे एक ही झटके में पृथ्वी चूमने के लिये विवश कर सकती हूँ। अनन्त०--क्यों? इतनी उत्तेजना क्यों है?

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पंचम अंक

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[पथ में मुद्गल] मुद्गल-- राजा से रंक और ऊपर से नीचे; कभी दुवृर्त्त दानव, कभी स्नेह-संवलित मानव; कहीं वीणा की झनकार, कहीं दीनता का तिरस्कार। (सिरपर हाथ रखकर बैठ जाता है) भाग्यचक्र! तेरी बलिहारी! जयमा

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