कमलद्वीप प्रज्वलित हुआ...।
मेरे मस्तक पर दमकती बिंदिया,,
को प्रेमज्योत में लीन किया...।
तुम्हारे होंठों से सम्पूर्ण स्नेहसागर,,
मेरे मस्तक पर अलंकृत हुआ...।
पवित्र प्रेमज्योत ने नभ की चंद्रिका,,
की भाँति आभा जागृत किआ...।
पवित्र स्पर्श की प्रेमज्योत तपिश,,
में रोम-रोम मेरा लीन हुआ...।
आज ह्रदय ने आत्मा को,,
अद्भुत भाँति से स्पर्शित किया...।
इस पवित्र स्पर्श में वासना नहीं,,
है सिर्फ स्नेहसागर का दिया...।
प्रेम भावना के रम्य भंवर में,,
मैंने वेदना से आँचल छुड़ा लिया...।
कोरे आँचल को तुम्हारे प्रेमज्योत,,
के सुन्दर मोतियों से शोभित किया...।
प्रेम की इन अद्भुत भावनाओं,,
में मन मेरा मुग्ध हुआ...।
आजन्म के लिए मैंने इस शोभनिय,,
प्रेमज्योत को लब्ध किया...।