लखनऊ: हार के भय और भाजपा को सत्ता में न आने देने की वजह से उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री और सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने बुआ जी अर्थात मायावती का हाथ पकड़ने की घोषणा कर दी।
मायावती वही नेता है जिन्हें 25 वर्ष पहले उनके ऊपर समाजवादियों द्वारा राज्य अतिथि गृह मीरा बाई मार्ग लखनऊ में अटैक किया गया था और उनकी जान बचाना भी मुश्किल हो गया था। क्या मायावती उस घटना को भूलकर अखिलेश का साथ लेने में सहमत होगी ....एक बहुत बड़ा प्रश्न है ।
मायावती के अपने सिद्धान्त है और उनकी पार्टी ने उन लोगो को आश्रय दिया है जिन्हें समाजवादी पार्टी ने अपमानित कर पार्टी से निकाला है या अपने अपमान को देखते हुऐ वे स्वंम पार्टी छोड़कर बीएसपी की शरण में गए है। निःसंदेह ऐसे कुछ लोग बुद्धिमान और कुछ बलवान भी है।
जो व्यक्ति सत्ता की लोलुपता में अपने परिवार से बगावत कर सकता है वह दूसरी पार्टी के साथ बगावत करने में कैसे पीछे रह जायेगा......विचारणीय प्रश्न है।
निःसंदेह अखिलेश यादव ने पारिवारिक कलह न की होती और अपने पिता मुलायम सिंह का हाथ न छोड़कर हर निर्णय में उन्हें आगे रखा होता तो निश्चित रूप से मुलायम सिंह यादव द्वारा बनाये गए किले में कभी सेंध न लगती और न कभी धराशायी होता । समाजवादी पार्टी यदि अकेले अपने बल बूते पर चुनाव लड़ती तो अखिलेश को सत्ता का सुख भोगने हेतुे पांच वर्ष का कार्य काल और मिलता।
कांग्रेस मुक्त भारत के नारे से आम हिंदुस्तानी सहमत होता जा रहा है जिसका दुष्परिणाम समाजवादी पार्टी को भी भुगतना पड़ा। पिता मुलायम के सिद्धांतों के विरुद्ध अखिलेश ने राहुल गांधी का साथ लेकर कांग्रेस को अनावश्यक सीटे देकर पार्टी को रसातल में पहुँचा दिया ।