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पीठिका में शिव-प्रतिमा

21 जून 2022

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पीठिका में शिव-प्रतिमा की भाँति मेरे हृदय की परिधि में तुम्हारा अटल आसन है।

मैं स्वयं एक निरर्थक आकार हूँ, किन्तु तुम्हारे स्पर्श से मैं पूज्य हो जाती हूँ क्योंकि तुम्हारे चरणों का अमृत मेरे शरीर में संचारित होता है।

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रचनाएँ
चिन्ता
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अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्मकता समाज के काम आनी चाहिए। जिस तरह एक दीपक के लिए अकेले जलने से बेहतर है, दीपकों की कतार में जलना। उसी तरह व्यक्ति के लिए समाज से जुड़े रहकर अपने जीवन को सार्थक बनना चाहिए। अज्ञेय की कई कविताएं काव्य-प्रक्रिया की ही कविताएं हैं। उनमें अधिकतर कविताएं अवधारणात्मक हैं जो व्यक्तित्व और सामाजिकता के द्वंद्व को, रोमांटिक आधुनिक के द्वंद्व को प्रत्यक्ष करती है। उन्हें सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।” जिजीविषा अज्ञेय का अधिक प्रिय काव्य-मूल्य है। एक लंबी साधना प्रक्रिया से गुजरता है। वह अपने आत्म को उस परम सत्ता में विलीन कर देता है। इसलिए आत्म विसर्जन के जरिये वह स्वयं को परम सत्ता से जोड़ देता है। यही पूरी कविता की मूल संवेदना है
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छाया, छाया तुम कौन हो

21 जून 2022
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छाया, छाया, तुम कौन हो? ओ श्वेत, शान्त घन-अवगुंठन! तुम कौन-सी आग की तड़प छिपाये हुए हो? ओ शुभ्र, शान्त परिवेष्टन! तुम्हारे रह:शील अन्तर में कौन-सी बिजलियाँ सोती हैं? वह मेरे साथ चलती है। मैं नहीं ज

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छाया! मैं तुममें किस वस्तु का अभिलाषी हूँ

21 जून 2022
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छाया! मैं तुम में किस वस्तु का अभिलाषी हूँ? मुक्त कुन्तलों की एक लट, ग्रीवा की एक बंकिम मुद्रा और एक बेधक मुस्कान, और बस? छाया! तुम्हारी नित्यता, तुम्हारी चिरन्तन सत्यता क्या है? आँखों की एक दमक -

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विश्व-नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार

21 जून 2022
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विश्व-नगर नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार रिक्ति-भरे एकाकी उर की तड़प रही झंकार 'अपरिचित! करूँ तुम्हें क्या प्यार?' नहीं जानता हूँ मैं तुम को, नहीं माँगता कुछ प्रतिदान; मुझे लुटा भर देना है, अपन

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सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे

21 जून 2022
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सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे जब किसी स्वप्न-जागृति में मैं रुका पास आ तेरे। मैं ने सहसा यह जाना तू है अबला असहाया : तेरी सहायता के हित अपने को तत्पर पाया। सामथ्र्य-दर्प से उन्मद मैं ने जब

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हा कि मैं खो जा सकूँ

21 जून 2022
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हा, कि मैं खो जा सकूँ! हा, कि उस के भाल पर अवतंस-पद मैं पा सकूँ हा, किस उस के हृदय पर एकाधिकार जमा सकूँ! टूट कर उस के करों, चिर-ज्योति में सो जा सकूँ हा, कि उस के चरण छू कर आत्मभाव भुला सकूँ! यदि

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तेरी आँखों में क्या मद है जिसको पीने आता हूँ

21 जून 2022
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तेरी आँखों में क्या मद है जिस को पीने आता हूँ जिस को पी कर प्रणय-पाश में तेरे मैं बँध जाता हूँ? तेरे उर में क्या सुवर्ण है जिस को लेने आता हूँ जिस को लेते हृदय-द्वार की राह भूल मैं जाता हूँ? तेरी

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आ जाना प्रिय आ जाना

21 जून 2022
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आ जाना प्रिय आ जाना! अपनी एक हँसी में मेरे आँसू लाख डुबा जाना! हा हृत्तन्त्री का तार-तार, पीड़ा से झंकृत बार-बार- कोमल निज नीहार-स्पर्श से उस की तड़प सुला जाना। फैला वन में घन-अन्धकार, भूला मैं जा

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आज तुम से मिल सकूँगा था मुझे विश्वास

21 जून 2022
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आज तुम से मिल सकूँगा, था मुझे विश्वास! आज जब कि बबूल पर भी सिरिस-कोमल बौर पलता मंजरी की प्यालियों में ओस का मधु-दौर चलता; खेलती थी विजन में सुरभि मलय की साँस। उर भरे उल्लास। प्यार के उन्माद से भर

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ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह

21 जून 2022
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ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह इस प्रेमी उर में जागी है प्रिय होने की चाह! अन्धकार में क्षीण ज्योति से पग-पग रहा टटोल आज चला खद्योत माँगने वाडव-उर का दाह!

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व्यथा मौन

21 जून 2022
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व्यथा मौन, वाञ्छा भी मौन, प्रणय भी, घोर घृणा भी मौन हाय, तुम्हारे नीरव इंगित में अभिप्रेत भाव है कौन? कोई मुझे सुझा दे-मर भी जाऊँ तो जाऊँ, संशय की आग बुझा दे!

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मैं अपने को एकदम

21 जून 2022
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मैं अपने को एकदम उत्सर्ग कर देना चाहता हूँ, किन्तु कर नहीं पाता। मेरी इस उत्सर्ग-चेष्टा को तुम समझतीं ही नहीं। अगर मैं सौ वर्ष भी जी सकूँ, और तुम मुझे देखती रहो, तो मुझे नहीं समझ पाओगी। इस लिए नहीं

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मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार

21 जून 2022
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मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार इसी व्यथा से रोता रहता अन्तर बारम्बार! कठिन-कुहर-प्रच्छन्न प्राण में पावक-दाह प्रसुप्त पतझर की नीरसता में चिर-नव-यौवन-भंडार। धवल मौन में अस्फुट-मधु-वैभव के

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गए दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है

21 जून 2022
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गये दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है मीठा, कोमल, स्निग्ध और चिर-अस्थिर प्रेम दिया है। आज किन्तु, प्रियतम! जागी प्राणों में अभिनव पीड़ा यह रस किसने इस जीवन में दो-दो बार पिया है? वृक्ष खड़

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फूला कहीं एक फूल

21 जून 2022
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फूला कहीं एक फूल! विटप के भाल पर, दूर किसी एक स्निग्ध डाल पर, एक फूल - खिला अनजाने में। मलय-समीर उसे पा न सकी, ग्रीष्म की भी गरिमा झुका न सकी सुरभि को उस की छिपा न सकी शिशिर की मृत्यु-धूल! फूल

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जाने किस दूर वन-प्रांतर से उड़ कर

21 जून 2022
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जाने किस दूर वन-प्रान्तर से उड़ कर आया एक धूलि-कण। ग्रीष्म ने तपाया उसे, शीत ने सताया उसे, भव ने उपेक्षा के समुद्र में डुबाया उसे, पर उस में थी कुछ ऐसी एक धीरता जीवन-समर में थी ऐसी कुछ वीरता, जग

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इस कोलाहल भरे जगत में

21 जून 2022
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इस कोलाहल-भरे जगत् में भी एक कोना है जहाँ प्रशान्त नीरवता है। इस कलुष-भरे जगत् में भी एक जगह एक धूल की मुट्ठी है जो मन्दिर है। मेरे इस आस्थाहीन नास्तिक हृदय में भी एक स्रोत है जिस से भक्ति ही उमड़ा

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प्राण तुम आज चिंतित क्यों हो

21 जून 2022
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प्राण, तुम आज चिन्तित क्यों हो? चिन्ता हम पुरुषों का अधिकार है। तुम केवल आनन्द से दीप्त रहने को, सब ओर अपनी कान्ति की आभा फैलाने को हो। फूल डाल पर फूलता मात्र है, उस का जीवन-रस किस प्रकार भूमि से खी

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तुम्हारा जो प्रेम अनंत है

21 जून 2022
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तुम्हारा जो प्रेम अनन्त है, जिसे प्रस्फुटन के लिए असीम अवकाश चाहिए, उसे मैं इस छोटी-सी मेखला में बाँध देना चाहता हूँ!  तुम मेरे जीवन-वृक्ष की फूल मात्र नहीं हो, मेरी सम-सुख-दु:खिनी, मेरी संगिनी, मेरे

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कैसे कहूँ कि तेरे पास आते सम

21 जून 2022
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कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय मेरी काया अमलिन, सम्पूर्ण और पवित्र है या कि मेरी आत्मा अनाहत, अविच्छिन्न है? क्योंकि तुझ तक पहुँचने में, तेरी खोज में बिताये हुए अपने भूखे जीवन में क्या मुझे भयंकर अन्ध

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हमारा तुम्हारा प्रणय

21 जून 2022
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मेरा-तुम्हारा प्रणय इस जीवन की सीमाओं से बँधा नहीं है। इस जीवन को मैं पहले धारण कर चुका हूँ। पढ़ते-पढ़ते, बैठे-बैठे, सोते हुए एकाएक जाग कर, जब भी तुम्हारी कल्पना करता हूँ, मेरे अन्दर कहीं बहुत-स

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तुम गूजरी हो

21 जून 2022
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तुम गूजरी हो, मैं तुम्हारे हाथ की वंशी। तुम्हारे श्वास की एक कम्पन से मैं अनिर्वचनीय माधुर्य-भरे संगीत में ध्वनित हो उठता हूँ। ये गायें हमारे असंख्य जीवनों के असंख्य प्रणयों की स्मृतियाँ हैं। वंशी

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इतने काल से मैं

21 जून 2022
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इतने काल से मैं जीवन की उस मधुर पूर्ति की खोज करता रहा हूँ- जीवन का सौन्दर्य, कविता, प्रेम...और अब मैंने उसे पा लिया है। यह एक मृदुल, मधुर, स्निग्ध शीतलता की तरह मुझ में व्याप्त हो गयी है। किन्तु इस

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प्रिये तनिक बाहर तो आओ

21 जून 2022
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प्रिये, तनिक बाहर तो आओ, तुम्हें सान्ध्य-तारा दिखलाऊँ! रुष्ट प्रतीची के दीवट पर करुण प्रणय का दीप जला है लिये अलक्षित अनुनय-अंजलि किसे मनाने आज चला है? प्रिये, इधर तो देखो, तुम से इस का उत्तर पाऊँ!

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प्राण-वधूटी

21 जून 2022
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प्राण-वधूटी! अन्तर की दुर्जयता तुमने लूटी! गौरव-दृप्त दुराशाएँ, अभिमानिनी हुताशाएँ, स्वीकृति-भर से ही कर डालीं झूटी! प्राण-वधूटी! दानशीलता खो डाली - दम्भ मलिनता धो डाली! अहंमन्यता की छाया भी

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विद्युद्गति में

21 जून 2022
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विद्युद्गति में सुप्त विकलता खोयी-सी बहती है, घन की तड़पन में पुकार-सी कुछ उलझी रहती है; उस प्रवाह से एक कली ही चुन तो लो! देवी, सुन तो लो यह प्रवास-रजनी क्या कहती है क्षण-भर रुक कर सुन तो लो! 'आ

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आओ एक खेल खेलें

21 जून 2022
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आओ, एक खेल खेलें! मैं आदिम पुरुष बनूँगा, तुम पहली मानव-वधुका। पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का! पथ-विमुख करे वह, जग की कुत्सा का पात्र बनावे; दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे! नि

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वधुके उठो

21 जून 2022
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वधुके, उठो! रात्रि के अवसान की घनघोर तमिस्रता में, अनागता उषा की प्रतीक्षा की अवसादपूर्ण थकान में हम जाग रहे हैं, मैं और तुम! हमारे प्रणय की रात- हमारे प्रणय की उत्तप्त वासना-ज्वाला में डूबी हुई रात

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सुमुखि मुझको शक्ति दे

21 जून 2022
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सुमुखि, मुझ को शक्ति दे वरदान तेरा सह सकूँ मैं! घोर जन की गूँज-सा आयास जग पर छा रहा है, दामिनी की तड़प-सा उल्लास लुटता जा रहा है ऊपरी इन हलचलों की आड़ में आकाश अविचल। दे मुझे सामथ्र्य ध्रुव-सा च

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जिह्वा ही पर नाम रहे

21 जून 2022
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जिह्वा ही पर नाम रहे तो कोई उस की टेर लगा ले, शब्दों ही में बँधे प्यार तो उसे लेखनी भी कह डाले; आँखों में यदि हृदय बसा हो करे तूलिका उस का चित्रण वह क्या करे जिस की रग-रग में हो आत्मदान का स्पन्दन?

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ये सब कितने नीरस जीवन के लक्षण हैं

21 जून 2022
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ये सब कितने नीरस जीवन के लक्षण हैं? मेरे लिए जीवन के प्रति ऐसा सामान्य उपेक्षा-भाव असम्भव है। सहस्रों वर्ष की ऐतिहासिक परम्परा, लाखों वर्ष की जातीय वसीयत इस के विरुद्ध है। मेरी नस-नस में उस सनातन जीव

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मेरे मित्र, मेरे सखा

21 जून 2022
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मेरे मित्र, मेरे सखा, मेरे एक मात्र विपद्बन्धु- आत्माभिमान! देखो, मैं ने अपने अन्तर की नारकीय वेदना छिपा दी है, मेरे मुख पर हँसी की अम्लान रेखा स्थिर भाव से खिंची है। जब तक रात्रि के एकान्त में मैं अप

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इस विचित्र खेल का अंत

21 जून 2022
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इस विचित्र खेल का अन्त क्या, कहाँ, कब होगा? विवेक कहता है, प्रत्येक घटना, जिस का कहीं आरम्भ होता है, कहीं न कहीं समाप्त होती है। तो फिर यह प्रणय, जिस का उद्भव एक मधुर स्वप्न में हुआ था, कहाँ तक चला ज

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आकाश में एक क्षुद्र पक्षी

21 जून 2022
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आकाश में एक क्षुद्र पक्षी अपनी अपेक्षा अधिक वेगवान् पक्षी का पीछा करता जा रहा है। क्षुद्र पक्षी! तू अपने नीड़ से दूर और दूरतर होता जा रहा है, अपने विभव को खो कर उस का पीछा कर रहा है। किन्तु वह तेजोर

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अंत कब कहाँ

21 जून 2022
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अन्त? कब, कहाँ, किस का अन्त? दोनों ही असम्भव... इस बढ़ते हुए अन्तरावकाश के कारण किसी दिन वह तेजोराशि अदृश्य हो जाएगी- और तू, क्षुद्र पक्षी, तू शून्य में भटकता रह जाएगा- शायद खो जाएगा... पागल, तेरा

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तुम्हीं हो क्या वह

21 जून 2022
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तुम्हीं हो क्या वह प्रोज्ज्वल रेखाओं में चित्रित ज्वाला एक अँधेरी पीड़ा की छाया हो मानो आशाओं ने घेरी? सारस-गति से चली जा रहीं मौन रात्रि में, नीरव गति से, दीपों की माला के आगे! क्षण-भर बुझे दीप,

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मन मुझ को कहता है

21 जून 2022
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मन मुझ को कहता है- मैं हूँ दीपक यह तेरे हाथों का मुझे आड़ तेरे हाथों की, छू पावे क्यों झोंका! राजा हूँ, ऊँचा हूँ- मुझ-सा नहीं दूसरा कोई; फिर भी कभी न हो पाता हूँ साथ तुम्हारे मैं एकाकी- सब विभूति

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मैं हूँ खड़ा देखता

21 जून 2022
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मैं हूँ खड़ा देखता वह जो सारस-गति में चली जा रही, मौन रात्रि में, नीरव गति से दीपों की माला के आगे। क्षण-भर बुझे दीप, फिर मानो पागल से हो जागे!

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तोड़ दूँगा मैं तुम्हारा आज यह अभिमान

21 जून 2022
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तोड़ दूँगा मैं तुम्हारा आज यह अभिमान! तुम हँसो, कह दो कि अब उत्संग वर्जित है छोड़ दूँ कैसे भला मैं जो अभीप्सित है? कोषवत्ï, सिमटी रहे यह चाहती नारी खोल देने, लूटने का पुरुष अधिकारी! ओस चाहे, वह र

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तितली, तितली

21 जून 2022
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तितली, तितली! इस फूल से उस पर, उस से फिर तीसरे पर, फिर और आगे, रंगों की शोभा लूटती, मधुपान करती, उन्मत्त, उद्भ्रान्त तितली! मेरे इस सम्बोधन में उपालम्भ की जलन नहीं है। तितली! तुम्हारा जीवन चंचल, अस्थ

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जब तुम हँसती हो

21 जून 2022
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 जब तुम हँसती हो, तब तुम मेरे लिए अत्यन्त जघन्य हो जाती हो। तब तुम मेरी समवर्तिनी नहीं, किन्तु एक तुच्छ वस्तु रह जाती हो- एक ओछा, खोखला खिलौना, एक सुन्दर, सुरूप, पर नि:सत्त्व क्षार-पुंज मात्र! जब तुम

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जान लिया तब प्रेम रहा क्या

21 जून 2022
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जान लिया तब प्रेम रहा क्या? नीरस प्राणहीन आलिंगन अर्थहीन ममता की बातें अनमिट एक जुगुप्सा का क्षण। किन्तु प्रेम के आवाहन की जब तक ओठों में सत्ता है मिलन हमारा नरक-द्वार पर होवे तो भी चिन्ता क्या है?

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जब मैं तुमसे विलग होता हूँ

21 जून 2022
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जब मैं तुम से विलग होता हूँ, तभी मुझे अपने अस्तित्व का ज्ञान होता है। जब तुम मेरे सामने उपस्थित नहीं होतीं, तभी मैं तुम्हारे प्रति अपने प्रेम का परिणाम जान पाता हूँ। जब तुम दु:खित होती हो, तभी मुझे

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मैंने अपने आप को

21 जून 2022
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 मैं ने अपने-आप को सम्पूर्णत: तुम्हें दे दिया है। पर तुम और मैं अत्यन्त एकत्व नहीं प्राप्त कर सके। हम मानो एक अगाध समुद्र में उतरे हुए दो गोताखोर हैं। संसार की दृष्टि में हमारा स्वतन्त्र अस्तित्व नही

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हा वह शून्य

21 जून 2022
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हा वह शून्य! हाय वह चुम्बन! किस से किस का था वह प्रणय-मिलन किया था किस का मैं ने चुम्बन! तेरा या तेरे कपोल का या उस पर आँसू अमोल का या जो उस आँसू के पीछे छिपी हुई थी विरह-जलन? किया था किस का मैं

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तुम जो सूर्य को जीवन देती हो

21 जून 2022
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तुम जो सूर्य को जीवन देती हो, किन्तु उस की किरणों की आभा हर लेती हो, तुम कौन हो? तुम्हारे बिना जीवन निरर्थक है; तुम्हारे बिना आनन्द का अस्तित्व नहीं है। किन्तु तुम्हीं हो जो प्रत्येक घटना में, प्रत्य

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तुम देवी हो नहीं

21 जून 2022
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तुम देवी हो नहीं, न मैं ही देवी का आराधक हूँ, तुम हो केवल तुम, मैं भी बस एक अकिंचन साधक हूँ। धरती पर निरीह गति से हम पथ अपना हैं नाप रहे आगे खड़ा काल कहता है, मैं विधि, मैं ही बाधक हूँ। विश्व हमार

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तुम में यह क्या है

21 जून 2022
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तुम में यह क्या है जिस से मैं डरता हूँ और घृणा करता हूँ? यह संहत छाया क्या है जिस को भेद कर मेरी दृष्टि पार तक नहीं देख सकती? क्या यह केवल तुम्हारे गत जीवन की ही छाया है, केवल तुम्हारे जीवन का एक अंग

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वह इतना नहीं

21 जून 2022
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वह इतना नहीं, इस से कहीं अधिक है। तुम में कोई क्रूर और कठोर तत्त्व है- तुम निर्दय लालसाओं की एक संहत राशि हो! यही है जो कि एकाएक मानो मेरा गला पकड़ लेता है, मेरे मुख में प्यार के शब्दों को मूक कर देत

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मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता

21 जून 2022
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मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता। मैं चाहता हूँ, यह विश्वास कर सकूँ कि तुम में व्यथा का अनुभव करने का सामथ्र्य ही नहीं है; क्योंकि मेरा अपना हृदय टूट गया है, और मैं अधिक नहीं सह सकता। मेरी इच्छा है कि

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यह छिपाए छिपता नहीं

21 जून 2022
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यह छिपाये छिपता नहीं। मुझे सत्य कहना ही पड़ेगा, क्योंकि वह मेरे अन्तस्तल को भस्म कर के भी अदम्य अग्निशिखा की भाँति प्रकट होगा। तुम्हारी दु:खित, अभिमान-भरी आँखों में मेरी आँखें वह तमिस्र संसार देख सकत

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जीवन का मालिन्य

21 जून 2022
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 जीवन का मालिन्य आज मैं क्यों धो डालूँ? उर में संचित कलुषनिधि को क्यों खो डालूँ? कहाँ, कौन है जिस को है मेरी भी कुछ परवाह जिस के उर में मेरी कृतियाँ जगा सकें उत्साह? विश्व-नगर की गलियों में खोये क

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हम एक हैं

21 जून 2022
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हम एक हैं। हमारा प्रथम मिलन बहुत पहले हो चुका- इतना पहले कि हम अनुमान भी नहीं लगा सकते। हम जन्म-जन्मान्तर के प्रणयी हैं। फिर इतना वैषम्य क्यों? क्या इतने कल्पों में भी हम एक-दूसरे को नहीं समझ पाये?

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यह एक कल्पना है

21 जून 2022
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 यह एक कल्पना है किन्तु इस काल्पनिक सिद्धान्त की पुष्टि जीवन की अनेक घटनाएँ करती हैं। विधाता ने प्रेम-रज्जु में एक विचित्र गाँठ लगा रखी है- जो सदा अटकी रहती है। चिरकाल के प्रेमियों में भी एक स्वभाव-व

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अपने प्रेम के उद्वेग में

21 जून 2022
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अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुम से कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है। तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है। तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घ

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छलने! तुम्हारी मुद्रा खोटी है

21 जून 2022
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 छलने! तुम्हारी मुद्रा खोटी है। तुम मुझे यह झूठे सुवर्ण की मुद्रा देते अपने मुख पर ऐसा दिव्य भाव स्थापित किये खड़ी हो! और मैं तुम्हारे हृदय में भरे असत्य को समझते हुए भी चुपचाप तुम्हारी दी हुई मुद्रा

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चुक गया दिन

21 जून 2022
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'चुक गया दिन'—एक लम्बी साँस उठी, बनने मूक आशीर्वाद सामने था आर्द्र तारा नील, उमड़ आई असह तेरी याद !        हाय, यह प्रति दिन पराजय दिन छिपे के बाद !

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इंदु तुल्य शोभने

21 जून 2022
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इन्दु-तुल्य शोभने, तुषार-शीतले! हीरक-सी थी तू अतिशय ज्योतिर्मय, तेरी उस आभा ने मुझे भुलाया। हीरक है पाषाण- अधिक काठिन्यमय! आज जान मैं पाया! आज- दर्प जब चूर्ण हो चुका तेरे चरण तले! इन्दु-तुल्य शोभन

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किंतु छलूँ क्यों अपने को फिर

21 जून 2022
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किन्तु छलूँ क्यों अपने को फिर? दानव की छाया में अपनी हार छिपाऊँ? मैं ही था वह, तेरी पूजा को चिर-तत्पर, क्यों इस स्वीकृति से घबराऊँ? मैं हूँ दलित, किन्तु जीवन आरम्भ तभी तब जाएँ छले! इन्दु-तुल्य शो

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मैं था कलाकार

21 जून 2022
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मैं था कलाकार, सर्वतोन्मुखी निज क्षमता का अभिमानी। मेरे उर में धधक रही थी अविरल एक अप्रतिम ज्वाला। तुझे देख कर मुझे कला ने ही ललकारा तू विजयी यदि इस प्रस्तर-प्रतिमा में तूने जीवन डाला। दीपन की ज्य

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मैं तुम्हें किसी भी वस्तु की

21 जून 2022
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 मैं तुम्हें किसी भी वस्तु की असूया नहीं करता- किन्तु तुम सब कुछ ले कर चली-भर जाओ, मेरे जीवन में से सदा के लिए लुप्त हो जाओ! तुम ने मुझे वेदना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिया; मुझ में वही वेदना जम कर और

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इस प्रलयंकर कोलाहल में

21 जून 2022
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इस प्रलयंकर कोलाहल में मूक हो गया क्यों तेरा स्वर? एक चोट में जान गया मैं- यह जीवन-अणु कितना किंकर! झुकने दो जीवन के प्यासे इस मेरे अभिमानी मन को आओ तो, ओ मेरे अपने, चाहे आज मृत्यु ही बन कर!

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बाहर थी तब राका छिटकी

21 जून 2022
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बाहर थी तब राका छिटकी! यदि तेरा इंगित भर पाता, क्यों विभ्रम में बाहर आता? प्रेयसि! तुम ही कुछ कह देतीं, तब जब थी मेरी मति भटकी! पुरुष? तर्क का कठपुतला-भर, स्त्री- असीम का अन्त:निर्झर! पर मैं तब भी

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वह प्रेत है

21 जून 2022
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वह प्रेत है, उस में तर्क करने की शक्ति नहीं है। जिस भावना को ले कर वह इस रूप में आया है, उसे अब दूर करने में वह असमर्थ है। किन्तु जितनी अच्छी तरह वह इस पूर्व-भावना की सहायता से अपने को समझ सकता है, उ

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क्षण भर पहले ही आ जाते

21 जून 2022
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क्षण-भर पहले ही आ जाते! प्राण-सुधा को क्या तुम सब ऐसी बिखरी ही पाते! भरी-भरी आँखों के प्यासे-प्यासे सूने आँसू... नहीं तुम्हारे ही चरणों क्या लोट-लोट लुट जाते! हाय तुम्हारे पथ में आँखें अनझिप बिछ-ब

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देवता

21 जून 2022
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 देवता! मैं ने चिरकाल तक तुम्हारी पूजा की है। किन्तु मैं तुम्हारे आगे वरदान का प्रार्थी नहीं हूँ। मैं ने घोर क्लेश और यातना सह कर पूजा की थी। किन्तु अब मुझे दर्शन करने का भी उत्साह नहीं रहा। पूजा करत

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मैं अपने अपनेपन से

21 जून 2022
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मैं अपने अपनेपन से मुक्त हो कर, निरपेक्ष भाव से जीवन का पर्यवलोकन कर रहा हूँ। एक विस्तृत जाल में एक चिड़िया फँसी हुई छटपटा रही है। पास ही व्याध खड़ा उद्दंड भाव से हँस रहा है। चिड़िया को फँसी और छटपट

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कल मुझ में उन्माद जगा था

21 जून 2022
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कल मुझ में उन्माद जगा था, आज व्यथा नि:स्पन्द पड़ी कल आरक्त लता फूली थी, पत्ती-पत्ती आज झड़ी। कल दुर्दम्य भूख से तुझ को माँग रहे थे मेरे प्राण आज आप्त तू, दात्री, मेरे आगे दत्ता बनी खड़ी। अपना भूत

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मैं आम के वृक्ष की छाया में

21 जून 2022
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मैं आम के वृक्ष की छाया में लेटा हुआ हूँ। कभी आकाश की ओर देखता हूँ, कभी वृक्ष में फूटती हुई छोटी-छोटी आमियों की ओर। किन्तु मेरा मन शून्य है। मेरे मन में कोई साकार कल्पना नहीं जाग्रत होती। मैं मानो एक

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स्वर्गंगा की महानता में

21 जून 2022
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 स्वर्गंगा की महानता में अप्रतिहत गति से प्रतिकूल दिशा में चले जा रहे थे दो तारे। दोनों एकाएक परस्पर आकर्षित हो, वद्र्धमान गति से निज पथ से हट कर खिंचे चले आये बेचारे। प्रेरक शक्ति रहस्यमयी-से ह

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दीप बुझ चुका

21 जून 2022
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 दीप बुझ चुका, दीपन की स्मृति शून्य जगत् में छुट जाएगी; टूटे वीणा-तार, पवन में कम्पन-लय भी लुट जाएगी; मधुर सुमन-सौरभ लहरें भी होंगी मूक भूत के सपने कौन जगाएगा तब यह स्मृति- कभी रहे तुम मेरे अपने?

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मैं केवल एक सखा चाहता था

21 जून 2022
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मैं केवल एक सखा चाहता था। मेरे हृदय में अनेकों के लिए पर्याप्त स्थान था। संसार मेरे मित्रों से भरा पड़ा था। किन्तु यही तो विडम्बना थी- मैं असंख्य मित्र नहीं चाहता था, मैं चाहता था केवल एक सखा! नियति

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नहीं, नियति को दोष क्यों दूँ

21 जून 2022
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नहीं, नियति को दोष क्यों दूँ? कारण कुछ और था। मेरे ही हृदय में कुछ ऐसा कठोर, ऐसा अस्पृश्य, ऐसा प्रतारणापूर्ण विकर्षण था। वह कठोर था, किन्तु सूक्ष्म; निराकार था किन्तु अभेद्य...मेरे समीप आकर भी कोई मु

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पता नहीं कैसे

21 जून 2022
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पता नहीं कैसे, तुम मेरे बहुत समीप आ पायी थीं...और अस्थायी अत्यन्त सान्निध्य में मैं काँप गया था, किन्तु तुम कितनी जल्दी परे चली गयीं? मेरा जीवन क्या हो सकता है वह देख कर मैं फिर अपने पुराने भव में लौ

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हमारी कल्पना के प्रेम में

21 जून 2022
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हमारी कल्पना के प्रेम में, और हमारी इच्छा के प्रेम में, कितना विभेद है! दो पत्थर तीव्र गति से आ कर एक दूसरे से टकराते हैं, तो दोनों का आकार परिवर्तित हो जाता है। किन्तु वे एक नहीं हो जाते। प्रतिक्रिय

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जीवन बीता जा रहा है

21 जून 2022
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जीवन बीता जा रहा है। प्रत्येक वस्तु बीती जा रही है। हम ने कामना की थी, वह बीत गयी। हम ने प्रेम करना आरम्भ किया, पर वह भी बीत गया। हम विमुख हो गये, एक-दूसरे से घृणा करने लगे, फिर उस की भी निरर्थकता प्

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इस परित्यक्त केंचुल की ओर

21 जून 2022
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 इस परित्यक्त केंचुल की ओर घूम-घूम कर मत देखो। यह अब तुम्हारा शरीर नहीं है। अपने नये शरीर में चेतनामय स्फूर्ति के स्पन्दन का अनुभव करो, शिराओं में उत्तप्त रक्त की ध्वनि सुनो, अपनी आकृति में अभिमान-पू

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नहीं देखने को उसका मुख

21 जून 2022
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 नहीं देखने को उस का मुख किंचित् भी हो तुम उत्सुक, फिर क्यों, प्रणयी, निकट जान कर उस को, हो उठते हो चंचल? क्या केवल आँखों में संचित दृप्त व्यथा कर, होने प्रस्तुत; जिस से वह न जानने पाये हृदय तुम्हा

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मेरे गायन की तान

21 जून 2022
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 मेरे गायन की तान टूट गयी है। मैं चुप हूँ, पर मेरा गायन समाप्त नहीं हुआ, केवल तान मध्य में टूट गयी है। मुझे याद नहीं आता कि मैं क्या गा रहा था- कि तान कहाँ टूट गयी। और जितना ही याद करता हूँ, उतना ही

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ऊषा अनागता

21 जून 2022
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 ऊषा अनागता, पर प्राची में जगमग तारा एकाकी; चेत उठा है शिथिल समीरण : मैं अनिमिष हो देख रहा हूँ यह रचना भैरव छविमान! दूर कहीं पर, रेल कूकती, पीपल में परभृता हूकती, स्वर-तरंग का यह सम्मिश्रण जाने ज

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आज चल रे तू अकेला

21 जून 2022
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 आज चल रे तू अकेला! आज केंचुल-सा स्खलित हो असह माया का झमेला! जगत् की क्रीड़ा-स्थली में संगियों के साथ खेला सघन कुंजों में पड़े तूने स्त्रियों का प्यार झेला आज वह आया बुलाने जो सदा निस्संग ही है

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मेरे आगे तुम ऐसी खड़ी

21 जून 2022
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मेरे आगे तुम ऐसी खड़ी हो मानो विद्युत्कणों का एक पुंज साकार हो कर खड़ा हो। तुम वास्तविक होती हुई भी सात्त्विक नहीं जान पड़तीं-क्योंकि तुम में स्थायित्व नहीं है। फिर भी, मेरे अन्दर कोई शक्ति तुम्हारी

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मैं तुम्हें जानता नहीं

21 जून 2022
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मैं तुम्हें जानता नहीं। तुम किसी पूर्व परिचय की याद दिलाती हो, पर मैं बहुत प्रयत्न करने पर भी तुम्हें नहीं पहचान पाता। मुझे नया जीवन प्राप्त हुआ है। कभी-कभी मन में एक अत्यन्त क्षीण भावना उठती है कि

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मैं अपने पुराने जीर्ण शरीर से

21 जून 2022
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मैं अपने पुराने जीर्ण शरीर से मुक्त हो गया हूँ। नया जीवन पाने के उन्माद-मिश्रित आह्लïद में भी मुझे यह बात नहीं भूलती-नवीन जीवन की प्राप्ति भी उतनी सुखद नहीं है जितना यह ज्ञान कि मेरा पुराना जीवन नष्ट

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यह नया जीवन कहाँ से आया

21 जून 2022
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यह नया जीवन कहाँ से आया? संसार-भर के संजीवन की एक उन्मत्त लहर बही जा रही है। लहर नहीं, अनबुझ आग की एक लपट धधकती हुई जा रही है! उसी की एक झलक मुझे मिली है-एक किरण मुझे भी छू गयी है। यह कवि-कल्पना के

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व्यष्टि जीवन का अंधकार

21 जून 2022
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व्यष्टि-जीवन का अन्धकार! इसी नयी भावना के व्यापकत्व में भी मैं अपने को भुला नहीं पाता, मेरी संज्ञा केवल उस संजीवन के एक अंश तक सीमित है जो मुझे प्राप्त हुआ है। अपनी इस क्षुद्र संज्ञा से मैं निर्बाधता

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विज्ञान का गंभीर स्वर

21 जून 2022
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विज्ञान का गम्भीर स्वर कहता है, विश्व का प्रस्तार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है-विश्व सीमित होते हुए भी धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। दर्शन का चिन्तित स्वर कहता है, मनुष्य का विवेक धीरे-धीरे अधिकाधिक प्रस्फ

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शब्द-शब्द-शब्द

21 जून 2022
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शब्द-शब्द-शब्द...बाह्य आकारों का आडम्बर! एक प्राणहीन शव को छोड़ते हुए मुझे मोह होता है-फिर भी मैं समष्टि-जीवन की कल्पना कर रहा हूँ-और इस का अभिमान करता हूँ? अरी निराकार किन्तु प्रज्वलित आग! इस भाव क

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नहीं काँपता है अब अंतर

21 जून 2022
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 नहीं काँपता है अब अन्तर। नहीं कसकती अब अवहेला, नहीं सालता मौन निरन्तर! तुझ से आँख मिलाता हूँ अब, तो भी नहीं हुलसता है उर, किन्तु साथ ही कमी राग की देख नहीं होता हूँ आतुर। नहीं चाहता अब परिचय तेरे

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मैं जीवन-समुद्र पार कर के

21 जून 2022
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 मैं जीवन-समुद्र पार कर के विश्राम के स्थल पर पहुँच गया हूँ। जिस तू फान में मैं खो गया था, उस में से निकलने का पथ विद्युत् के प्रकाश की एक रेखा ने इंगित कर दिया है। प्रेम को प्राप्त करना, जीवन के मि

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विदा! विदा!

21 जून 2022
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 विदा! विदा! इस विकल विश्व से विदा ले चुका! अपने इस अतिव्यस्त जगत से जुदा हो चुका! देख रहा हूँ मुड़-मुड़ कर-यह मोह नहीं है नहीं हृदय की विकल निबलता फूट रही है! सोच रहा हूँ कल जिस को खोजते स्वयं खो

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हमें एक दूसरे को

21 जून 2022
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 हमें एक-दूसरे को कुछ नहीं कहना है, फिर भी हम क्यों रुके हुए हैं? हम क्यों अपने को एक-दूसरे से बाँधने का प्रयत्न कर रहे हैं-जब कि हमारे बीच में पीड़ा के अतिरिक्त किसी बात का सान्निध्य नहीं है? हम दो

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विदा हो चुकी

21 जून 2022
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विदा हो चुकी (मिलन हुआ कब?) पर हा, फिर भी 'विदा! विदा!' नहीं कभी आया था जो उस को कहता हूँ 'अब तू जा!' फिर भी क्यों अन्तर में जाग रहा कोई सोया परिताप? कहता, 'इस को भी मेटेगा तू जो कुछ भी कभी न था?'

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तुम्हारी अपरिचित आकृति को देख कर

21 जून 2022
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 तुम्हारी अपरिचित आकृति को देख कर क्यों मेरे ओठ एकाएक उन्मत्त लालसा से धधक उठे हैं? तुम्हारी अज्ञात आत्मा तक पहुँचने के लिए क्यों मेरा अन्तर पिंजरबद्ध व्याघ्र की तरह छटपटा रहा है? मैं बन्दी हूँ, परे

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तरु पर कुहुक उठी पड़कुलिया

21 जून 2022
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तरु पर कुहुक उठी पड़कुलिया मुझ में सहसा स्मृति-सा बोला गत वसन्त का सौरभ, छलिया। किसी अचीन्हे कर ने खोला द्वार किसी भूले यौवन का फूटा स्मृति संचय का फोला। लगा फेरने मन का मनका पर हा, यह अनहोनी क

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तुम आए, तुम चले गए

21 जून 2022
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तुम आये, तुम चले गये! नाता जोड़ा था, तोड़ गये। हे अबाध! जाते अबाध सूनापन मुझ को छोड़ गये। अशुभ विषैली छायाओं से, अब मैं जीवन भरता हूँ नीच अजान नहीं हूँ, प्रियतम! सूनेपन से डरता हूँ!

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यह केवल एक मनोविकार है

21 जून 2022
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 यह केवल एक मनोविकार है। हमारी बुद्धि, हमारी विश्लेषण-शक्ति, जो हमारी सभ्यता और संस्कृति का फल है, एक-दूसरे की त्रुटियों को जान गयी है। मनसा हम विमुख हो गये हैं, और विश्रान्ति से भरे एक क्षीण औत्सुक्

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मैं जगत को प्यार कर के

21 जून 2022
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 मैं जगत को प्यार कर के लौट आया! सिर झुकाये चल रहा था, जान अपने को अकेला, थक गये थे प्राण, बोझल हो गया जग का झमेला, राह में जाने कहाँ कट-सा गिरा कब जाल कोई चुम्बनों की छाप से यह पुलक मेरा गात आय

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तुम्हारे प्रणय का कुहरा

21 जून 2022
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तुम्हारे प्रणय का कुहरा आँसुओं की नमी से और सहानुभूति की तरलता से सजीव हो रहा है, और मैं उस सजीव यवनिका को भेदता हुआ चला जा रहा हूँ। लालसा के घने श्यामकाय वृक्ष और अज्ञात विरोधों की झाडिय़ाँ उस कुहरे

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निराश प्रकृति

21 जून 2022
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निराश प्रकृति विहाग गा रही है; मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में मौन खड़ा हूँ। आकाश की आकारहीनता की करुण पुकार की तरह टिटिहरी रो रही है-'चीन्हूँ! चीन्हूँ!' पर अपनी अभिलाषाओं के साकार पुंज को कहीं चीन्ह नहीं

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जब तुम चली जा रही थीं

21 जून 2022
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 जब तुम चली जा रही थीं, तब मैं तुम्हारे पथ की एक ओर खड़ा था। तुम से बात करने का साहस मुझ में नष्ट हो चुका था। मैं ने डरते-डरते तुम्हारे अंचल का छोर पकड़ लिया। (न जाने मैं ने ऐसा क्यों किया? मुझे तुम

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अब भी तुम निर्भीक हो

21 जून 2022
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अब भी तुम निर्भीक हो कर मेरी अवहेलना कर सकती हो। क्योंकि तुम गिर चुकी हो, पर ओ घृणामयी प्रतिमे! अभी हमारा प्रेम नहीं मरा। तुम अब भी इतनी प्रभावशालिनी हो कि मुझे पीड़ा दे सकती हो, और मैं अब भी इतना न

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प्रत्यूष के क्षीणतर होते

21 जून 2022
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प्रत्यूष के क्षीणतर होते हुए अन्धकार में क्षितिज-रेखा के कुछ ऊपर दो तारे चमक रहे हैं। मुझ से कुछ दूर वृक्षों के झुरमुट की घनी छाया के अन्धकार में दो खद्योत जगमगा रहे हैं। नदी का मन्दगामी प्रवाह आकाश

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मेरे प्राण आज कहते हैं

21 जून 2022
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मेरे प्राण आज कहते हैं वह प्राचीन, अकथ्य कथा, जिस में व्यक्त हुई थी प्रथम पुरुष की प्रणय-व्यथा! फिर भी पर वह चिर-नूतन हो सकती नहीं पुरानी, जब तक तुझ में जीवन है मुझ में उस का आकर्षण, जब तक तू रूप-

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तुम में या मुझ में

21 जून 2022
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तुम में या मुझ में या हमारे प्रणय-व्यवहार में, अभिजात कुछ भी नहीं है। केवल हम तीनों के मिलने से उत्पन्न हुई आत्म-बलिदान की कामना ही अभिजात है। तुममें, या मुझ में, या हमारे प्रेम में ही, अजस्रता नहीं

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कभी-कभी मेरी आँखों के आगे

21 जून 2022
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कभी-कभी मेरी आँखों के आगे से मानो एकाएक परदा हट जाता है-और मैं तुम में निहित सत्य को पहचान लेता हूँ। प्रेम में बन्धन नहीं है। हमें जो प्रिय वस्तु को स्वायत्त करने की इच्छा होती है-वह इच्छा जिसे हम प्

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उखड़ा-सा दिन

21 जून 2022
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उखड़ा-सा दिन, उखड़ा-सा नभ, उचटे-से हेमन्ती बादल क्या इसी शून्य में खोएगा अपना दुलार का अन्तिम पल? ढलते दिन में तन्द्रा-सी से सहसा जग कर अलसाया-सा, करतल पर तेरे कुन्तल धर मैं बैठा हूँ भरमाया-सा भटक

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तुम मेरे जीवन-आकाश में

21 जून 2022
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 तुम मेरे जीवन-आकाश में मँडराता हुआ एक छोटा-सा मेघपुंज हो। तुम तन्वंगी हो, तुम लचीली और तरल हो, तुम शुभ्र और नश्वर हो। जीवन में आनन्द-लाभ के लिए जिन-जिन उपकरणों की आवश्यकता है, वे सभी तुम में उपस्थि

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मुझे जो बार-बार

21 जून 2022
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मुझे जो बार-बार यह भावना होती है कि तुम मुझे प्रेम नहीं करतीं, यह केवल लालसा की स्वार्थमयी प्रेरणा है। मैं अपने को संसार का केन्द्र समझ कर चाहता हूँ कि वह मेरी परिक्रमा करे। मुझे अभी तक यह ज्ञान नहीं

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आओ, हम-तुम अपने संसार का

21 जून 2022
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आओ, हम-तुम अपने संसार का फिर से निर्माण करें। हम बहुत ऊँचा उडऩा चाहते थे-सूर्य के ताप से हमारे पंख झुलस गये। उस वातावरण में हमारा स्थान नहीं था। हम अपना नीड़ पृथ्वी पर बनाएँगे। नहीं, वृक्ष की डालों

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वह पागल है

21 जून 2022
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वह पागल है। मैं उस का निरन्तर प्रयास देख कर उसे समझाता हूँ, 'पागल! ओ पागल! तू इस टूटे हुए कलश में पानी क्यों भरता है? इस का क्या फल होगा? यह पानी बह कर लाभहीन अनुभव की रेत में सूख जाएगा, और तू प्यासा

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भीम-प्रवाहिनी

21 जून 2022
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 भीम-प्रवाहिनी नदी के कूल पर बैठा मैं दीप जला-जला कर उस में छोड़ता जा रहा हूँ। प्रत्येक दीप का विसर्जन कर मैं सोचता हूँ-'यही मेरा अन्तिम दीप है।' किन्तु जब वह धीरे-धीरे बहुत दूर निकल कर दृष्टि से ओझ

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हमारा प्रेम

21 जून 2022
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हमारा प्रेम एक प्रज्वलित दीप है। तुम उस दीप की शिखा हो, मैं उस की छाया। मेरे अन्तर की दुर्दनीय लालसाएँ अन्धकार की लपलपाती जिह्वाओं-सी तुम्हें ग्रसने आती हैं, और तुम्हारी कान्ति पर क्रूर आक्रमण करती ह

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मैं तुम्हें संपूर्णतः जान गया हूँ

21 जून 2022
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 मैं तुम्हें सम्पूर्णत: जान गया हूँ। तुम क्षितिज की सन्धि-रेखा के आकाश हो, और मैं वहीं की पृथ्वी। हम दोनों अभिन्न हैं, तथापि हमारे स्थूल आकार अलग-अलग हैं; हम दोनों ही सात्त्विक हैं, पर हमारा अस्तित्

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मेरे उर की आलोक-किरण

21 जून 2022
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मेरे उर की आलोक-किरण! तेरी आभा से स्पन्दित है मेरा अस्फुट जीवन क्षण-क्षण! मैं ने रजनी का भार सहा, तम वार-पार का ज्वार बहा- पर तारों का आलोक तरल मुझ को चिर अस्वीकार रहा; सुख-शय्या का आह्वान मिला-मत

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तुम चैत्र के वसंत की तरह हो

21 जून 2022
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तुम चैत्र के वसन्त की तरह हो, प्राप्ति से शून्य किन्तु आशा से परिपूरित! जिस प्रकार चैत्र में पुरानी त्वचा झड़ चुकी होती है, शिशिर का कठोरत्व नष्ट हो चुकता है, विटप-श्रेणियाँ नयी-नयी कोंपलों से भूषित

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अल्लाह के

21 जून 2022
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अल्लाह के निन्नानबे नामों की तरह तुम्हारी विरुदावली भी असम्पूर्ण ही रह जाती है। तुम्हारे अनेक रूपों को विश्व देखता है और प्यार करता है, किन्तु तुम्हारा जो अत्यन्त अपनापन है, तुम्हारे अस्तित्व का सार,

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इस अपूर्ण जग में कब किसने

21 जून 2022
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इस अपूर्ण जग में कब किसने प्रिय, तेरा रहस्य पहचाना? क्यों न हाथ फिर मेरा काँपे छू माला का अन्तिम दाना?

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निष्पत्ति

21 जून 2022
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 निष्पत्ति प्रियतमे! तुम मुझे कहती हो कि मैं उस अनुभूति के बारे में लिखूँ, पर मैं लिख नहीं पाता। मैं उस पक्षी की तरह हूँ जो सूर्य के तेज को छू कर आया है, किन्तु जो थका हुआ पंख खोले पृथ्वी पर पड़ा है

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सखि! आ गये नीम को बौर

21 जून 2022
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 निष्पत्ति  सखि! आ गये नीम को बौर! हुआ चित्रकर्मा वसन्त अवनी-तल पर सिरमौर। आज नीम की कटुता से भी लगा टपकने मादक मधु-रस! क्यों न फड़क फिर उठे तड़पती विह्वलता से मेरी नस-नस! सखि! आ गये नीम को बौर!

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पथ पर निर्झर-रूप बहे

21 जून 2022
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पथ पर निर्झर-रूप बहे। प्रलयंकर पीड़ाएँ बोलीं, 'तेरी प्रणय-क्रियाएँ हो लीं।' किस उत्सर्ग-भरे सुख से मैं ने उन के आघात सहे! मैं ही नहीं, अखिल जग ही तो, रहा देखता उसे, स्तिमित हो! सृष्टि विवश बह गयी

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मैंने तुम से कभी कुछ नहीं माँगा

21 जून 2022
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मैं ने तुम से कभी कुछ नहीं माँगा। किन्तु, जब मधु-सन्ध्या के धुँधलके में मैं पश्चिमी आकाश को देखती बैठी होती हूँ, जब स्निग्ध-तप्त समीर नीबू के सौरभ-भार से झूमता हुआ मुझे छू जाता है, तब मैं अपने भीतर ए

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मधु मंजरि

21 जून 2022
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मधु मंजरि, अलि, पिक-रव, सुमन, समीर- नव-वसन्त क्या जाने मेरी पीर! प्रियतम क्यों आते हैं मधु को फूल, जब तेरे बिन मेरा जीवन धूल?

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करुणे, तू खड़ी-खड़ी क्या सुनती

21 जून 2022
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करुणे, तू खड़ी-खड़ी क्या सुनती! उस निर्झरिणी की कल-धारा को बाँधे क्या कूल-किनारा! देव-गिरा के मुक्तक-दाने खड़ी रहेगी कब तक गुनती? अखिल जगत् की स्तब्ध अंजली से पावन-पीड़ा बह निकली! तू मुग्धा, हतस

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पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ

21 जून 2022
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जारिन कैसी हूँ मैं नाथ! झुका जाता लज्जा से माथ! छिपे आयी हूँ मन्दिर-द्वार छिपे ही भीतर किया प्रवेश। किन्तु कैसे लूँ वदन निहार-छिपे कैसेे हो पूजा शेष! दया से आँख मूँद लो देव! नहीं माँगूँगी मैं वरदा

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टूट गये सब कृत्रिम बन्धन

21 जून 2022
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 टूट गये सब कृत्रिम बन्धन! नदी लाँघ कूलों की सीमा, अर्णव-ऊर्मि हुई, गति-भीमा; अनुल्लंघ्य, यद्यपि अति-धीमा है तुझ को मेरा आवाहन! टूट गये सब कृत्रिम बन्धन! छिन्न हुआ आचार-नियन्त्रण-कैसे बँधे प्रणय-आ

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जब मैं कोई उपहार ले कर

21 जून 2022
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जब मैं कोई उपहार ले कर तेरे आगे उपस्थित होती हूँ, तब मेरे प्राण इस भावना से भर-भर आते हैं कि वह तेरे योग्य नहीं है। तब, तुझे कैसे वह भेंट चढ़ाऊँ? किन्तु यह मैं भूल जाती हूँ कि अब कभी कोई वस्तु मेरी आ

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उर-मृग! बँधता किस बन्धन में

21 जून 2022
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 उर-मृग! बँधता किस बन्धन में! थकित हुए स्वच्छन्द प्राण क्या भटक-भटक कर घन निर्जन में! अर्ध-निमीलित हैं क्यों लोचन, स्थिर क्यों चपल पदों का स्पन्दन; किस गुरु-भार दबा सुन्दर तन-किस आकर्षक सम्मोहन में

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कहीं किसी ने गाया

21 जून 2022
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 कहीं किसी ने गाया : 'मैं तेरा हूँ-तू मेरा है कैसा यह प्रेम घनेरा है!' मेरा मन भर आया... प्रियतम, कभी तुम्हारे मुख से ये ही शब्द सुने थे मैं ने- अनजाने में मन के धागे से यह बेध गुने थे मैं ने

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बहुत अब आँखें रो लीं

21 जून 2022
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बहुत अब आँखें रो लीं! नामहीन-या प्रियतम?-पीड़ा की क्रीड़ाएँ हो लीं। काँपी दूर उषा की आभा, कमल-कली में गौरव जागा- 'जीती हूँ!' अनुभूति-विकल हो मुकुलित पलकें खोलीं। फूट पड़ा नभ का अन्तस्तल बिखरी वि

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मैं अपने पैरों के किंकिण

21 जून 2022
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 मैं अपने पैरों के किंकिण-नुपूर खोल कर तुम्हारे चरणों में अर्पण करती हूँ। तुम्हारे समीप आ कर मैं ने अपने लौट जाने के सामथ्र्य का त्याग कर दिया है। मैं अपनी भुजाओं से वलयादि भूषण उतार कर तुम्हारे चरणो

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विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती

21 जून 2022
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विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती। यह भी नहीं कि तुम इन्हें ग्रहण ही करो। भेंट का साफल्य उसे दे देने में ही है, उस की स्वीकृति में नहीं। तुम नि:शंक हो कर इन्हें ठुकराओ और अपने विजय-पथ पर बढ़े च

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किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही

21 जून 2022
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किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही, स्वेच्छा से अपने अन्त:करण के छलकते हुए सम्पूर्णत्व से विवश हो कर, अपने विजय-पथ पर रुक कर कुछ दे दोगे तो... तो तुम देखोगे, तुम्हारा विजय-पथ समाप्त हो गया है, तुम्ह

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तुम चिर-अखंड आलोक

21 जून 2022
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 तुम चिर-अखंड आलोक! तुम खर-निदाघ-ज्वाल की ऊध्र्वंग तप्त पुकार तुम सघन-पावस व्योम से उल्लास धारासार, तुम शीत के विच्छिन्न धूमिल कम्पमय संसार तुम मधु निशा के विपुल पुलकित प्राण-रस-संचार! तुम समय-

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मुझे जान पड़ता है, मैं चोर हूँ

21 जून 2022
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मुझे जान पड़ता है, मैं चोर हूँ। जब कभी पथ पर जाते हुए तुम्हारे अदृश्य चरणों की चाप मैं सुन लेती हूँ, और एक अकथ्य भाव से भर उठती हूँ जिसे तुम नहीं जानते, तभी मुझे जान पड़ता है, मैं चोर हूँ। जब कभी अन

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मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते

21 जून 2022
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 मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते! स्वरगत यदि हो मेरा मौन, तुम्हारे प्राण नहीं सह सकते! देखो, शिरा-शिरा है सिहरी-बहा ले चली अनुभवी-लहरी- अन्तर्मुख कर सब संज्ञाएँ, तुम्हीं क्यों न उस में बह सकते? छू कर

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मैं गाती हूँ

21 जून 2022
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 मैं गाती हूँ, पर गीतों के भाव जगाने वाला तू, मैं गति हूँ, पर मेरी गति में जीवन लाने वाला तू! मैं वीणा हूँ-या हूँ उस के टूटे तारों की वाणी- उस से सम्मोहन, संजीवन ध्वनि उपजाने वाला तू! मैं आरती क

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प्राण अगर निर्झर से होते

21 जून 2022
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राण अगर निर्झर-से होते पृथ्वी-सा यह मेरा जीवन तू होता सुदूर वारिधि-सा तेरी स्मृति लहरों की गर्जन; प्रणय! अंक तेरे में खोने मैं युग-युग बहती ही बहती, अथक स्वरों से, अनगिन दिन तक वही बात बस कहती रहती

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मेरे इस जीर्ण कुटीर में

21 जून 2022
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मेरे इस जीर्ण कुटीर में-जिस में वर्षा, वायु, निदाघ, शीत, वसन्त की असंख्य सुरभियों और जीवन की असंख्य पीड़ाओं, प्रत्येक ने अपने-अपने सुभीते के लिए असंख्य प्रवेश-मार्ग बना रखे हैं-द्वार एक ही है। यह वह

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शशि जब जा कर

21 जून 2022
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 शशि जब जा कर फिर आये-सरसी तब शून्य पड़ी थी! सुख से रोमांचित होती कुमुदिनी कहीं न खड़ी थी। शशि मन में हँस कर बोले-'मुग्धा से परिणति होगी? सरसी में शीश छिपा कर मुझ से क्या मान करोगी?' ओ दर्प-मूढ़

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गंगा-कूल सिराने

21 जून 2022
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 गंगा-कूल सिराने ओ लघु दीप मूक दूत से जाओ सिन्धु समीप! ढुलक-ढुलक! नयनों से आँसू-धार! कहाँ भाग्य ले उन के पाँव पखार!

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पीठिका में शिव-प्रतिमा

21 जून 2022
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पीठिका में शिव-प्रतिमा की भाँति मेरे हृदय की परिधि में तुम्हारा अटल आसन है। मैं स्वयं एक निरर्थक आकार हूँ, किन्तु तुम्हारे स्पर्श से मैं पूज्य हो जाती हूँ क्योंकि तुम्हारे चरणों का अमृत मेरे शरीर में

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पथ में आँखें आज बिछीं

21 जून 2022
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 पथ में आँखें आज बिछीं प्रियदर्शन! तेरा दर्शन पा के, तोड़ बाँध अस्तित्व मात्र के आज प्राण बाहर हैं झाँके; पर मानस के तल में जागृति-स्मृति यह तड़प-तड़प कहती है प्रेयस! मन के किरण-कर तुझे घेरे ही त

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आओ, इस अजस्र निर्झर के

21 जून 2022
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 आओ, इस अजस्र निर्झर के तट पर प्रिय, क्षण-भर हम नीरव रह कर इस के स्वर में लय कर डालें अपने प्राणों का यह अविरल रौरव! प्रिय! उस की अजस्र गति क्या कहती है? 'शक्ति ओ अनन्त! ओ अगाध!' प्राणों की स्प

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प्रियतम! देखो

21 जून 2022
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प्रियतम! देखो, नदी समुद्र से मिलने के लिए किस सुदूर पर्वत के आश्रय से, किन उच्चतम पर्वत-शृंगों को ठुकरा कर, किस पथ पर भटकती हुई, दौड़ी हुई आयी है! समुद्र से मिल जाने के पहले उसने अपनी चिर-संचित स्मृत

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मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ

21 जून 2022
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मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ? प्रियतम, यदि नितप्रति तेरा ही स्नेहाग्रह-आतुर कर-कम्पन विस्मय से भर कर ही खोले मेरे अलस-निमीलित लोचन; नितप्रति माथे पर तेरा ही ओस-बिन्दु-सा कोमल चुम्बन मेरी शिरा-शिर

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प्रियतम, क्यों यह ढीठ समीरण

21 जून 2022
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 प्रियतम, क्यों यह ढीठ समीरण, किस अनजाने क्षण में आ कर, जाता है बिखरा-बिखरा कर मेरे राग-भरे ओठों को सम्भ्रम नीरव कम्पन? प्रियतम, क्यों यह सौरभ छलिया, मेरा दीर्घ प्रयास विफल कर, इस अबाध में गल-घु

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मेरे आरती के दीप

21 जून 2022
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मेरे आरती के दीप! झिपते-झिपते बहते जाओ सिन्धु के समीप! तुम स्नेह-पात्र उर के मेरे- मेरी आभा तुम को घेरे! अपना राग जगत का विस्मृत आँगन जावे लीप? मेरे आरती के दीप! हम-तुम किस के पूजा-साधन? किस क

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मैं-तुम क्या? बस सखी-सखा

21 जून 2022
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मैं-तुम क्या? बस सखी-सखा! तुम होओ जीवन के स्वामी, मुझ से पूजा पाओ- या मैं होऊँ देवी जिस पर तुम अघ्र्य चढ़ाओ, तुम रवि जिस को तुहिन बिन्दु-सी मैं मिट कर ही जानूँ- या मैं दीप-शिखा जिस पर तुम जल-जल

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यह भी क्या बन्धन ही है

21 जून 2022
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यह भी क्या बन्धन ही है? ध्येय मान जिस को अपनाया मुक्त-कंठ से जिस को गाया समझा जिस को जय-हुंकार, पराजय का क्रन्दन ही है? अरमानों के दीप्त सितारे जिस में प्रतिपल अनगिन बारे मेरे स्वप्नों का प्रश

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ओ तू

21 जून 2022
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 ओ तू, जिसे आज मैं ने सह-पथिक लिया है मान, दे मत कुछ, न माँग तू मुझ से कोई भी वाग्दान, लेन-देन ही है क्या इस परमाहुति का सम्मान? जहाँ दान है वहाँ कभी टिक सकते हैं अधिकार? शब्दों ही में बँध जाएगा

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मैंने देखा

21 जून 2022
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मैं ने देखा सान्ध्य क्षितिज को चीर, गगन में छाये तुम; मैं ने देखा, खेतों में से धीरे-धीरे आये तुम। शशि टटोलते आये किरण-करों से रजनी को तम में देखा, तुम समीप आ कर भी रुके निमिष-भर सम्भ्रम में। दे

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प्रदोष की शान्त और नीरव भव्यता

21 जून 2022
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प्रदोष की शान्त और नीरव भव्यता से मुग्ध हो कर दार्शनिक बोला, 'ईश्वर कैसा सर्वज्ञ है! दिवस के तुमुल और श्रम के बाद कितनी सुखद है यह सन्ध्याकालीन शान्ति!' निश्चल और तरल वातावरण को चीरती हुई, दार्शनिक क

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अपने तप्त करों में ले कर

21 जून 2022
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 अपने तप्त करों में ले कर तेरे दोनों हाथ मैं सोचा करती हूँ जाने कहाँ-कहाँ की बात! तेरा तरल-मुकुर क्यों निष्प्रभ शिथिल पड़ा रहता है जब मेरे स्तर-स्तर से ज्वाला का झरना बहता है? क्यों, जब मैं ज्वा

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प्रियतम! जानते हो

21 जून 2022
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प्रियतम! जानते हो, सुधाकर के अस्त होते ही कुमुदिनी क्यों नत-मस्तक हो कर सो जाती है? इसलिए नहीं कि वह प्रणय से थकी होती है। इसलिए नहीं कि वह वियोग नहीं सह सकती। इसलिए नहीं कि वह सूर्य के प्रखर ताप स

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प्रियतम मेरे मैं प्रियतम की

21 जून 2022
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 प्रियतम मेरे मैं प्रियतम की! आँखें व्यथा कहे देती हैं खुली जा रही स्पन्दित छाती, अखिल जगत् ले आज देख जी भर मुझ गरीबनी की थाती, सुन ले, आज बावली आती गाती अपनी अवश प्रभाती : प्रियतम मेरे मैं प्र

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शशि रजनी से कहता है

21 जून 2022
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शशि रजनी से कहता है, 'प्रेयसि, बोलो क्या जाऊँ?' कहता पतंग से दीपक, 'यह ज्वाला कहो बुझाऊँ?' तुम मुझ से पूछ रहे हो-'यह प्रणय-पाश अब खोलूँ?' इस को उदारता समझूँ-या वक्ष पीट कर रो लूँ!

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मृत्यु अन्त है

21 जून 2022
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 मृत्यु अन्त है सब कुछ ही का फिर क्यों धींगा-धींगी, देरी? मुझे चले ही जाना है तो बिदा मौन ही हो फिर मेरी! होना ही है यह, तो प्रियतम! अपना निर्णय शीघ्र सुना दो नयन मूँद लूँ मैं तब तक तुम रस्सी काट

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प्रियतम, एक बार और

21 जून 2022
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प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर के लिए और! मुझे अपनी ओर खींच कर,  अपनी समर्थ भुजाओं से अपने विश्वास-भरे हृदय की ओर खींच कर,  संसार के प्रकाश से मुझे छिपा कर, एक बार और खो जाने दो,  एक क्षण-भर के लि

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जाना ही है तुम्हें

21 जून 2022
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 जाना ही है तुम्हें, चले तब जाना, पर प्रिय! इतनी दया दिखाना, मुझ से मत कुछ कह कर जाना! सेवक होवे बाध्य कि अनुमति ले कर जावे, और देवता भी भक्तों के प्रति यह शिष्टाचार दिखावे; पर तुम, प्राण-सखा तु

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मानस के तल के नीचे

21 जून 2022
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मानस के तल के नीचे है नील अतल लहराता तल पर लख अपनी छाया तू लौट-लौट क्यों जाता? है काम मुकुर का केवल करना मुख-छवि प्रतिबिम्बित क्या इसी मात्र से उस की है यथार्थता परिशंकित?

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मैं समुद्र-तट पर उतराती

23 जून 2022
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मैं समुद्र-तट पर उतराती एक सीपी हूँ, और तुम आकाश में मँडराते हुए तरल मेघ। तुम अपनी निरपेक्ष दानशीलता में सर्वत्र जो जल बरसा देते हो, उस की एक ही बूँद मैं पाती हूँ, किन्तु मेरे हृदय में स्थान पा कर वह

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