यह भी क्या बन्धन ही है?
ध्येय मान जिस को अपनाया मुक्त-कंठ से जिस को गाया
समझा जिस को जय-हुंकार, पराजय का क्रन्दन ही है?
अरमानों के दीप्त सितारे जिस में प्रतिपल अनगिन बारे
मेरे स्वप्नों का प्रशस्त-पथ आशाहीन गगन ही है?
तुझे देख जो अन्तर रोया, कम्पित विह्वलता में खोया,
अटल मिलन की ज्योति न हो कर पीड़ा का स्पन्दन ही है?
यह भी क्या बन्धन ही है?