नई दिल्ली : प्रधानमंत्री फसल वीमा योजना को एक साल से ज्यादा का वक़्त हो चला है। यह योजना इंश्योरेंस कंपनियों के लिए इतनी आसान नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मौसम की मार के कारण बुआई की विफलता के मामले में बीमा कंपनी को कुल बीमित राशि के 25 फीसदी का भुगतान करना पडेगा। जब सामान्य से कम मॉनसून का अनुमान रहता है तो बीमा कंपनियां सूखे की संभावना वाले इलाकों में बीमा कवर देने से कतराती हैं।
पिछले खरीफ सत्र में महारष्ट्र से करीब 4000 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा हुआ था जबकि दावे के लिए 2000 करोड़ रुपये के लिए किए गए थे। यानी पिछला साल बीमा कंपनियों के लिए अच्छा रहा। सूत्रों की माने इस साल कमजोर मॉनसून के पूर्वानुमान के चलते कई निजी बीमा कंपनियां ने महाराष्ट्र से किनारा कर लिया है।
इस योजना के तहत खरीफ मौसम के लिए पंजीकरण करने की अंतिम तारीख 31 जुलाई के आसपास होती है जब मॉनसून का रुझान साफ हो चुका है। ऐसे में अगर इस साल कमजोर मॉनसून का पूर्वानुमान रहता है तो बीमा कंपनियों को भारी दावों का सामना करना पड़ सकता है।
नोटबंदी के कारण पिछले साल नवंबर-दिसंबर में वित्तीय सेवाओं पर पड़े प्रभाव को देखते हुए सरकार ने 2016-17 की रबी फसल के लिए बीमा योजना में पंजीकरण की समयसीमा 31 दिसंबर, 2016 से बढ़ाकर 10 जनवरी, 2017 कर दी थी। अलबत्ता तब तक दक्षिण भारत में सूखे की स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी।
बीमा कंपनियों के मुताबिक विस्तार अवधि के दौरान करीब दो-तिहाई प्रीमियम जमा हुआ। अब आलम यह है कि तमिलनाडु जैसे राज्यो में दावों का अनुपात 300 फीसदी से अधिक रहने की संभावना है। इसे देखते हुए पुनर्बीमा कंपनियों ने कट ऑफ तिथि के बाद मिले दावों का भुगतान करने का विरोध किया है।