नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2014 के बाद देश में रोजगार के मकसद से कई महत्वपूर्ण योजनाओं का शुभारम्भ किया। सरकार ने मेक इन इंडिया अभियान के तहत निविशकों को आकर्षित करने के खूब प्रयास किये गए लेकिन पिछले सात साल में ऐसा पहली बार हुआ है जब विनिर्मित वस्तुओं (manufactured goods) की बिक्री में बेहद बड़ी गिरवाट आयी। इंडिया स्पेंड के आंकड़ों की माने तो साल 2015-16 में पहली मेनिफ़ेक्चरिंग गुड्स की बिक्री में 3.7 प्रतिशत की गिरावट आयी है। वैश्विक मंदी के कारण दुनियाभर में पहले ही मेनिफ़ेक्चरिंग गुड्स की मांग पिछले कुछ समय से कम रही लेकिन नोटबंदी के बाद इसमें और गिरावट आयी है।
लार्सन एंड टुब्रो ने निकाले 14000 कर्चमचारी
एक परिणाम के रूप में हम देख सकते हैं कि सितंबर 2016 से पिछले 6 महीनों में इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन एंड टुब्रो ने अपने 14000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। इसके अतिरिक्त माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और नोकिया ने भी अपने कर्मचारियों की संख्या में जोरदार गिरावट की है। इसका सबसे बड़ा कारण मांग में आयी कमी ही रही।
नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मेक इन इंडिया लॉन्च करने के कुछ समय बाद ही नोकिया ने चेन्नई में अपनी एक फैक्ट्री बंद कर दी जिसके बाद बाद लगभग 6600 लोग बेरोजगार हो गए। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को विनिर्माण क्षेत्र की सहायता के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए। बता दें देश के सकल उत्पाद (जीडीपी) में 15 से 16 प्रतिशत इस क्षेत्र का हिस्सा है।
बीजेपी का कसाईखाने बंद करने वाला मुद्दा पड़ेगा भारी
नोटबंदी के बाद कपडा और चमड़ा उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। यूपी चुनाव में बीजेपी का कसाईखाना बंद करने वादा भी उसकी सरकार पर ही भारी पड़ने जैसा दिखाई दे रहा है। मोदी सरकार की बात करें तो ‘साल 2014 से पहले कानपुर के सबसे बड़े कसाईखाने में करीब 1,000 मवेशी लाए जाते थे।
गौ-वध के विरोध में राजनीति गरमाने और फिर नोटबंदी ने यह संख्या 100 तक पहुंचा दी। चमड़ा कारखानों पर लागू किए गए सख्त पर्यावरण नियमों ने भी इस उद्योग को नुकसान पहुंचाया है। यह इन औद्योगिक इकाइयों के बंद होने की तीसरी बड़ी वजह है।
एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी और यूरोपीय मार्केट में स्लोडाउन, ब्रेक्जिट और नोटबैन का असर लेदर एक्सपोर्ट पर नजर आ रहा है। कारोबारियों के मुताबिक लेदर एक्सपोर्ट बीते साल की तुलना में 40 फीसदी तक कम है। कारोबारियों को साल 2017 के ऑर्डर नहीं मिले हैं जिसके कारण वह कर्मचारियों की अब छंटनी कर रहे हैं।