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कहा जाता है कि 'साहित्य समाज का दर्पण है', पर इसके साथ यह प्रश्न भी उठता है कि 'साहित्यकारों' को प्रोत्साहन कौन देगा? जाहिर तौर पर उत्तम 'साहित्य सृजन' के पीछे उत्तम सामाजिक दृष्टि होती है, बजाय के व्यवसायिक लाभ के, और ऐसे में स्पष्ट रूप में साहित्यकारों को अपना खून जलाना पड़ता है. ऐसे साहित्यकार आपसे कुछ लेते नहीं हैं और ऐसे में समाज का फ़र्ज़ बनता है कि साहित्य सृजन की उत्तम परंपरा को जारी रखने के लिए सृजनकर्ताओं को उत्साहित करना जारी रखे. उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को अगर इस मामले में उदार कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसे कई प्रयास इस युवा सीएम ने किये हैं, जिन्हें उद्धृत नहीं करना उनके प्रयासों के साथ नाइंसाफी होगी! चाहे वह साहित्यकारों को सम्मान करने की बात हो, साहित्य के डिजिटलाइजेशन का कार्य हो अथवा साहित्यकारों को पेंशन देने की बात हो अखिलेश यादव इस मामले में अव्वल दिखते हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस मामले में साफ़ कहते हैं कि साहित्य, संस्कृति और परंपराओं को छोड़कर किया गया विकास अधूरा है, क्योंकि संस्कृति व परंपराओं को बढ़ाए बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता. एक किताब के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए अखिलेश यादव यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे जोड़ा कि हम चाहे जितनी तरक्की कर लें, खुशहाली ले लाएं, एक्सप्रेस-वे, मेट्रो बनवा लें, लेकिन यदि साहित्य और परंपराओं को छोड़ा तो विकास अधूरा रह जाएगा.
साहित्य के प्रति किसी युवा सीएम की ऐसी सुलझी सोच आपको कम ही देखने को मिलेगी. इसी कड़ी में अखिलेश यादव ने उर्दू और हिन्दी साहित्य तथा साहित्यकारों के बारे में जानकारियों को डिजिटल स्वरूप में नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत पर जोर देते हुए पिछली साल सितम्बर में कहा था कि शानदार इतिहास को नई पुश्त तक पहुंचाना बहुत जरूरी है. मुख्यमंत्री ने तब सरकारी पत्रिका नया दौर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना मुहम्मद अली जौहर और उनके भाई मौलाना शौकत अली पर आधारित विशेषांक के विमोचन अवसर पर कहा था कि सरकार उर्दू और हिन्दी साहित्य तथा उनके रचनाकारों को दिए जाने वाले संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए और काम करेगी. इसके साथ ही सीएम ने आने वाली पीढ़ी की खातिर साहित्य को डिजिटल तकनीक का ज्यादातर इस्तेमाल करने के प्लेटफॉर्म्स जैसे, मोबाइल एप्लीकेशन और सोशल मीडिया माध्यमों पर भी उपलब्ध कराने पर जोर दिया था. भाषाओं की ऐतिहासिक समझ का बेहतर प्रदर्शन करते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि हिन्दी और उर्दू को आजादी की भाषाएं बताते हुए अखिलेश ने कहा हिन्दी और उर्दू समाज को जोड़ने वाली भाषाएं हैं. सच भी है, अगर आप इतिहास पर नजर डालें तो उर्दू और हिन्दी हमेशा जोड़ने वाली रही हैं, वे आजादी की भाषाएं रही हैं.
जाहिर है, इस तरह के प्रयासों से ही साहित्य-सृजन की गति और प्रभाव दोनों बढ़ता है. इसी तरह के बड़े प्रयासों में साल 2015 के फ़रवरी में यूपी सरकार द्वारा बड़े स्तर पर साहित्य और कला-क्षेत्र के लोगों को सम्मानित किया गया था. यह अवसर था, कला, साहित्य, खेल सहित विभिन्न क्षेत्रों में सूबे का नाम रोशन करने वाली 56 हस्तियों को यश भारती सम्मान से विभूषित करने का. तब पुरस्कृत लोगों को सम्मान स्वरूप 11-11 लाख रुपये और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए थे, जबकि अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार के लिए पांच लाख रुपये की धनराशि एवं प्रशस्ति पत्र तथा रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार के लिए एक लाख रुपये की धनराशि पुरस्कार स्वरूप दी गई थी. जाहिर तौर पर यह एक बड़ा प्रयास था, जिसकी सराहना भी चहुंओर हुई थी. बताते चलें कि यश भारती सम्मान की शुरुआत वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ही की थी, और इस सम्मान का मकसद ऐसी हस्तियों को सम्मानित करना था, जिन्होंने देश-विदेश में प्रदेश का नाम रोशन किया हो. पहले यश भारती सम्मान के अंतर्गत 5 लाख रुपये की धनराशि दी जाती थी, जिसे बढ़ाकर अब 11 लाख रुपये कर दिया गया है. अब तक यश भारती सम्मान से 85 हस्तियों को विभूषित किया जा चुका है। इसमें हरिवंश राय बच्चन, गोपाल दास नीरज, कैफी आजमी, सोम ठाकुर, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, अभिषेक बच्चन, राज बब्बर, शबाना आजमी, राजपाल यादव, जसपाल राणा, शकील अहमद और मोहम्मद कैफ जैसी मशहूर हस्तियां शामिल हैं.
हालाँकि, अभिषेक बच्चन जैसे एकाध नामों को शामिल करने पर थोड़ा बहुत होहल्ला भी हुआ, किन्तु यह तो राजनीति है और राजनीति में संतुलन साधना भी एक महत्वपूर्ण पक्ष है. इन एकाध छिटपुट विवादों को अगर छोड़ दें, निश्चित रूप से यूपी सरकार का यह पुरस्कार निर्विवाद रूप से योग्य व्यक्तियों तक ही पहुंचा है. अगर अखिलेश यादव की युवाओं में लोकप्रियता 4 साल सरकार में बीत जाने के बाद भी बरकरार है, तो यह निश्चित रूप से उनके तमाम सकारात्मक कार्यों की ही बदौलत है और 'साहित्य का अनवरत सम्मान' इनमें से एक है. साहित्य को लेकर अखिलेश यादव की सक्रीय सोच का एक और उदाहरण हाल ही तब सामने आया, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यश भारती एवं पदम् सम्मान से सम्मानित विभूतियों को प्रदान की जा रही 50 हजार रुपये की पेंशन को प्रतिमाह उपलब्ध कराने के निर्देश अधिकारियों को दिए. बताते चलें कि पूर्व में पेंशन राशि का भुगतान प्रत्येक 6 माह पर करने की व्यवस्था थी. ऐसे में इन पुरस्कारों से सम्मानित महानुभावों के अनुरोध पर मुख्यमंत्री ने यह फैसला लिया. जाहिर तौर पर तमाम वरिष्ठों में इस बात को लेकर ख़ुशी का माहौल है तो समाजवादी पार्टी के कार्यकर्त्ता भी इन कार्यों को आने वाले विधानसभा चुनावों में अपने लिए सकारात्मक मान रहे हैं. हालाँकि, चुनाव तो अभी दूर हैं किन्तु आने वाले समय में साहित्यकारों के प्रति हमदर्दी 'सकारात्मक माहौल' का निर्माण तो अवश्य ही करेगी, इस बात में दो राय नहीं है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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