जन्नतनशीन आयशा,दुआओं में याद रखना डॉ शोभा भारद्वाज 25 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले आयशा साबरमतीकी गोद में समा गयी वह पढ़ी लिखी थी जीना चाहती थी. वह केवल 23 वर्ष की थी .उसकेशौहर आरिफ ने सोचा था वह चुपचाप सदैव के लिए अपने मायके में सो जायेगी लेकिन आयशाने चुपचाप जिन्दगी को अलविदा नहीं कहा अप
🚗 दहेज लेना कोई गुनाह नही* 💰आज के वर्तमान सत्र में दहेज लेना कोई गुनाह नहीं क्योंकि कन्या पक्ष के हमेशा यह सोचते हैं कि मेरी बेटी को ससुराल में कोई काम न करना पड़े और मेरी बेटी की शादी ऐसे घर में हो जहां पर नौकर नौकरानी कार्यरत हों और मेरी बेटी बैठकर हुकूमत चलाए अब इस क्रिया में लड़की पक्ष के गरीब
प्रिय साथियों शब्दनगरी में आपका स्वागत है। ये कहानी कुछ सीख देती है हम सबको। इसलिए हमने अपने एक साथी की इस रचना को यहां रखना उचित समझा। शब्दनगरी टीम से अपेक्षा है कि वह इसे उचित स्थान दे। ताकि लोगों तक एक संदेश पहुंच सके। दरअसल, मोहल्ले में रहने वाली दो लडकियों मीना और सोनाली की शादी एक ही दिन तय