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प्रथा

hindi articles, stories and books related to pratha


मैंने देखा : दो शिखरों के अन्तराल वाले जँगल में आग लगी है ... बस अब ऊपर की मोड़ों से आगे बढ़ने लगी सड़क पर मैंने देखा : धुआँ उठ रहा घाटी वाले खण्डित-मण्डित अन्तरिक्ष में मैंने देखा : आग लगी

यहाँ, गढ़वाल में कोटद्वार-पौड़ी वाली सड़क पर ऊपर चक्करदार मोड़ के निकट मकई के मोटे टिक्कड़ को सतृष्ण नज़रों से देखता रहेगा अभी इस चालू मार्ग पर गिट्टियाँ बिछाने वाली मज़दूरिन माँ अभी एक बजे आ

प्रतिबद्ध हूँ संबद्ध हूँ आबद्ध हूँ प्रतिबद्ध हूँ, जी हाँ, प्रतिबद्ध हूँ – बहुजन समाज की अनुपल प्रगति के निमित्त – संकुचित ‘स्व’ की आपाधापी के निषेधार्थ... अविवेकी भीड़ की ‘भेड़या-धसान’ के खिला

बाल झबरे, दृष्टि पैनी, फटी लुंगी नग्न तन किन्तु अन्तर्दीप्‍त था आकाश-सा उन्मुक्त मन उसे मरने दिया हमने, रह गया घुटकर पवन अब भले ही याद में करते रहें सौ-सौ हवन । क्षीणबल गजराज अवहेलि‍त रहा जग-भा

गोआ तट का मैं मछुआरा सागर की सद्दाम तरंगे मुझ से कानाफूसी करतीं नारिकेल के कुंज वनों का मैं भोला-भाला अधिवासी केरल का वह कृषक पुत्र हूँ ‘ओणम’ अपना निजी पर्व है नौका-चालन का प्रतियोगी मैं धरत

गाल-गाल पर दस-दस चुम्बन देह-देह को दो आलिंगन आदि सृष्टि का चंचल शिशु मैं त्रिभुवन का मैं परम पितामह व्यक्ति-व्यक्ति का निर्माता मैं ऋचा-ऋचा का उद्गाता मैं कहाँ नहीं हूँ, कौन नहीं हूँ अजी य

ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है। गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब यह विचार-वैभव सब दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब म

घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत स

टिंग-टोंग... डोरबेल बजी तो कुछ ही देर बाद किरण ने दरवाज़ा खोला। सामने अमन था। किरण- अमन! अच्छा हुआ तू आ गया। मेरी जान छुड़वा इनसे। अमन को देखते ही राहत भरी सांस लेकर बोली किरण तो उसने हैरानी से पूछ

गौर किया जाए तो आप देखेंगे कि पहले हमारे देश में घूंघट की प्रथा नही थी। ये पर्दा प्रथा भारत में मुस्लिम समुदाय को देन है। जब मध्यकाल में मुगल द्वारा आक्रमण होने लगे और तब हिंदू स्त्रीयों ने अपना मान औ

पुराने समय से विधवा जीवन एक अभिशाप से कम नही है। पति की मृत्यु के बाद एक स्त्री का जीवन। नर्क समान है। उससे न सिर्फ सौभाग्य की निशानियां छिन्न जाती है बल्कि कष्टदाई जीवन जीने को मजबूर हो जाती है। पूर्

मोलक्की ये एक ऐसी प्रथा है ,जिसमें पैसे देकर लड़कियों को खरीदा और बेचा जाता है । इस प्रथा का चलन उत्तर भारत में ज्यादा है। हरियाणा में ये प्रथा काफी प्रचलित है।किसी प्रथा के आड़ में लड़की खरीदना और बे

हमारे देश में जाने कितनी ही कुप्रथा का चलन है। जिनमें से एक है बाल विवाह बाल विवाह की कुप्रथा वो भयानक लहर है। जिसमे किसी मासूम का बचपन बह जाता है। बाल विवाह से बच्चों की मासूमियत छिन जाती है।हमारे दे

आटा साटा समाज की बहुत पुराने समय से चली आ रही एक प्रथा है। जो रिश्तों को बेहतर और मजबूत बनाने और प्रेम संबंध कायम रखने के लिए बनाई गई थी।              पर धीरे ध

एक बेटी का जन्म क्यों अभिशाप माना जाता है और बेटे का जन्म वरदान। ये कैसी सोच , ये कैसी मानसिकता? क्यों बेटी के जन्म से निराशा का मोहौल हो जाता है?क्या बेटी को इस संसार का सुख पाने का अधिकार नही ह

सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू

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भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि,आई पावन हरतालिका तीज।रखें व्रत यह कुवांरी सुहागिनें,संकल्प करें हरतालिका तीज।।लगा कर मेहंदी हाथों में,पावन निर्जला व्रत रखती।प्रतीक होता अखंड सौभाग्य,नक्षत्रों का आशीर्वाद पा

कान्हा ने  बांसुरी   बजाई।राधिका भी भागती आई।।ग्वाल बाल संग धेनु चरावे।वन उपवन भी घुलमिल जावे।।मोर मुकुट पीताम्बर धारी।देख देख जग  बलिहारी।।कहे यशोदा नंद के लाला।श्याम सलोना वो है

आयो नंद घर ललना, ब्रज में मची खुशहाली। घर घर दीप जल रहे, बजा  रहे  हैं  थाली।। बगिया में फूल खिल रहे, सीचें बगिया का माली। धरती  अंबर  झूम  रहा, धरा पे छाई हरियाली।। पत्त

राखी नहीं है कच्चा धागा,भाई बहन ने प्यार से पागा।बहन ने बड़े प्यार से देखो,भाई की कलाई पर बाँधा।।भाई करता है इन्तज़ार,कब आएगा राखी का त्योहार।बहना बांधेगी राखी कलाई पर,मैं दूँगा उसको प्रिय उपहार।।बहना अ

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