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प्रेम-विवाह

28 जनवरी 2024

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उस दिन सुबह उठते ही साक्षी के भीतर एक अलग उत्साह था ,चेहरे पर अलग तेज था जो ये साफ दर्शा रहा था कि वह रात भर सोई नहीं है इस इंतज़ार में कि सुबह कब होगी और वह कब सूरज की रोशनी अपने आंगन में देखेगी।

सूरज आज घर आनेवाला था साक्षी के माता-पिता से मिलने।साक्षी की खुशियों का ठिकाना नहीं था हो भी कैसे आखिर 3 साल का प्रेम संबंध आज अपना गंतव्य पाने जा रहा था।न जाने कितनी जद्दोजहद और विषम परिस्थितियों के बाद आज ये अवसर आया था जहाँ उसे जीवन से कोई शिकायत नहीं थी जहाँ उसके आस-पास मौजूद हर व्यक्ति उसे अपने सा लग रहा था। वह खुश थी।

सूरज पढ़ा-लिखा होनहार लड़का था जिसके पास एक अच्छी नौकरी थी और एक भर-पूरा परिवार था जहाँ वह अपनी  छोटी बहन और माता-पिता के साथ सुखी था।सूरज बड़ी सहजता से अपने घर की सारी जिम्मेदारी पूरी किया करता था।पिता रिटायर थे और माँ घर का काम-काज संभाला करती थी जिसमें छोटी बहन निधि हाथ बँटा दिया करती थी। निधि ने इंटर की परीक्षा दी थी और परिणाम के लिए बेहद उत्साहित थी।

 
सूरज के विवाह को लेकर घरवाले कुछ खास खुश नहीं थे होते भी कैसे ? समाज के दकियानूसी सोच से घिरे साधारण मध्यवर्गीय परिवार के लिए प्रेम-विवाह सम्यक रूप से कैसे मान्य हो सकता था ?फिर भी बेटे की खुशी के लिए समझौता कर लिया गया था और आज उसी सिलसिले में पूरा परिवार लड़की पक्ष के घर जानेवाला था।सूरज खुश था और बाकी सब नाखुश।


इधर साक्षी और उसके माता-पिता मेहमानों का इंतजार कर रहे थे।पिताजी उस क्षण यही सोच रहे थे कि शायद उनकी बेटी के भाग्य में यही लिखा था जो होने जा रहा है या होनेवाला है। हर पिता की तरह उनके भी सपने थे बेटी के विवाह को लेकर,उसकी आने वाली ज़िन्दगी को लेकर जहाँ उसके पास ज़िन्दगी के हर साधन सबसे उत्तम प्रकार के होते,जहाँ वह किसी ऐसे लड़के के साथ ब्याही जाती जो सूरज से हर मायने में बेहतर होता।कहने का अर्थ है कि पिता ने अपनी बेटी के भविष्य का जो स्वप्न संजोया था चीजें उससे बहुत अलग हो रही थीं । वह ख़ुश नहीं थे पर कोशिश कर रहे थे,आखिर पिता जो थे। पिताजी सोच में डूबे ही थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई और सूरज ने सपरिवार घर में प्रवेश किया।


बातें शुरू हुईं और जल्द ही समाप्ति तक आ पहुँची ।शादी की तारीख तय हुई और बाकी सारी जरूरी बातें (इंतज़ाम) भी मिलकर तय कर लिए गए।कुल मिलाकर शादी साधारण खर्च में ही सम्पन्न करने का सोचा गया ।क्योंकि दोनों परिवार पढ़े-लिखे और शिक्षित थे इसलिए दहेज जैसी कुमान्यता को सिरे से नकार दिया गया और बात पूरी कर सूरज अपने परिवार के साथ घर लौट आया।
दिन बीते लगभग चार महीने बाद शादी की तारीख आ पड़ी।साक्षी और सूरज अब एक नए बंधन में बंध गए जिसके लिए उन्होंने कई अथक प्रयास किये थे।एक तरह से यूं कहें कि उन्होंने अर्थहीन सामाजिक बंधनों पर जीत हासिल कर ली।उनका विवाह हो गया। पर क्या भारतीय समाज में किसी प्रेमी जोड़े के लिए इतना काफी है कि दुनिया के रिवाजो से लड़कर वो विवाह संबंध में बंधे और उसके बाद सबकुछ हमेशा के लिए ठीक हो जाएगा? उलझने,विरोधी भावनाएँ,दकियानूसी मान्यताएँ उनका पीछा छोड़ देंगी? नहीं,वास्तविकता इससे बहुत आगे की है। 'प्रेम -विवाह को अपनी दृढ़ता और एकनिष्ठता का परिणाम जिंदगी भर भोगना पड़ता है।'

शादी के तीन दिन बाद ही सूरज के पिताजी चल बसे। रिटायरमेंट के कुछ दिनों बाद से ही उनकी तबियत नासाज़ रहने लगी थी,दिल के मरीज थे,काफी दिनों से उनका इलाज चल रहा था।यह सब कुछ अचानक हुआ जिसकी कल्पना भी किसी ने न की थी क्योंकि दवाइयों का असर अच्छा हो रहा था और ऐसी दुर्घटना के आसार कभी नज़र नहीं आये परंतु होनी को कौन टाल सकता था।सब बहुत दुखी थे।माताजी का रो-रोकर बुरा हाल था ।सूरज और निधि के लिए पिताजी का यूं सबकुछ छोड़कर अचानक चले जाना किसी सदमे से कम नहीं था।साक्षी हालातों को समझ नहीं पा रही थी।वह घर में बिल्कुल नई थी और शुरुआत में ही ऐसी दुर्घटना से वह दहल उठी।
अंतिम संस्कार की सारी विधियाँ समाप्त हुई और धीरे-धीरे सभी भाग्य से समझौता करते हुए खुद को जीवन की पटरी पर वापस लाने की कोशिश करने लगे। माताजी के मन मे कहीं न कहीं यह बात घर करने लगी कि उनके पति की अकस्मात मृत्यु के पीछे साक्षी का घर में बहु बनकर आना है।दिन पर दिन उनका यह विचार और दृढ़ होता गया।वह हमेशा सोचतीं कि सूरज के पिताजी इस शादी के लिए पूरी तरह तैयार न थे। केवल सूरज के कहने पर उसकी खुशी के लिए उन्होंने इसकी हामी भरी थी। हो सकता है यही अनिच्छा उनके मन मे बैठ गयी हों जो उन्हें अंदर से कचोट रही हो और शादी के पहले कुण्डलियाँ भी तो नहीं मिलवाई गयी थीं। हो सकता है ये साक्षी के किसी कुण्डली-दोष का ही परिणाम हो कि उसके पैर घर में पड़े नहीं और ऐसा अपशकुन हो गया। उनकी यह सोच दिन पर दिन विकराल रूप लेती गयी जिसके दुष्परिणाम साक्षी को हर रोज भुगतने पड़ते । वह साक्षी से सीधे मुँह बात न करती ,न ही उसे नजरों के सामने देखना चाहतीं, सूरज से भी उसकी शिकायत करती रहतीं और उसे उकसातीं कि वो साक्षी को उसके मायके छोड़ आये -"वह लड़की इस घर के लायक नहीं हैं । मेरे पति को खा गयी अब पता नही क्या-क्या खाएगी। इसके अशुभ पैर इस घर में पड़े नहीं कि मेरा परिवार तहस-नहस हो गया ।"  सूरज इन बातों पर भरोसा नहीं करता था वह माँ को हमेशा समझाता पर आखिर कब तक? जो समझना ही न चाहे उसे किसी भी तरह से समझाया नहीं जा सकता चाहे जितनी कोशिशें कर ली जाएँ। और फिर सूरज ने भी थक-हार कर कोशिशें करनी छोड़ दी । वह केवल साक्षी को ही संभलकर रहने की हिदायत देता रहता। निधि तटस्थ थी।वह समझ नहीं पा रही थी कि  किसे सही कहे और किसे ग़लत। पिताजी की मृत्यु के बाद उसने जैसे अपनी सोचने-विचारने की क्षमता ही खो दी थी।वह न तो माँ की बातों को तूल देती न भाभी के साथ उनका दुख बाँटती। वह केवल अपनी पढ़ाई और किताबों में उलझी रहती।


शाम का समय था माताजी रसोई में बैठी अपने घुटने सेंक रही थीं। साक्षी कई दिनों से माताजी से बात करने का अवसर ढूँढ रही थी। कुछ सवाल थे जो वह उनसे पूछना चाहती थी, जो उसके दिलो-दिमाग को कमज़ोर कर रहे थे,जिनके जवाब जानने जरूरी थे। रसोई में माँजी को अकेला देख वह हिम्मत करके उनके पास गई। माँजी ने उसे नज़र उठाकर देखा तक नहीं कि कौन है,ऐसा लगा जैसे साक्षी उनके लिए कोई अदृश्य वस्तु हो। साक्षी उनके पास जाकर बैठी और बड़े विनम्र भाव से उसने अपनी बात शुरू करते हुए कहा "माँजी आपके इस दुर्व्यवहार का कारण क्या है? क्या मेरी ग़लती यही है कि मैंने सूरज को अपने साथी के रूप में चुना और उसी के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहा।अगर ये मेरी गलती है तो इसका दुष्परिणाम बाबूजी की मृत्यु कैसे हो सकती है? जीवन और मृत्यु पर तो किसी का बस नहीं। अगर सूरज का विवाह मेरी जगह किसी और से हुआ होता जिसे बाबूजी और आपने अपनी मर्जी से चुना होता और उसके घर मे आते ही ऐसी दुर्घटना हो जाती तब आपके इस गुस्से और नाराज़गी का आधार क्या होता? क्या तब भी आपका उसके प्रति यही व्यवहार होता?"


साक्षी ने अपने मन की सारी बाते बड़े ही मार्मिक और विनम्र  तरीके से माताजी के सामने रखीं और उसे उम्मीद थी कि उसका यह प्रयास बेकार नहीं जाएगा।परंतु क्या साक्षी सही सोच रही थी ? साक्षी ने सपने सवालों का आखिरी शब्द पूरा भी न किया था कि माँजी ने गरम पानी का पतीला उसकी तरफ़ लुढ़का दिया जिससे साक्षी के पैर बुरी तरह घायल हो गए,उनपर छाले उभर आए,कुछ छींटे हाथों पर भी पड़े।उसका पूरा शरीर दर्द से कराहने लगा वह चिल्ला उठी और बेसुध-सी वहीं जमीन पर बैठी रही। निधि उसकी चीख  सुनकर रसोई में आ पहुँची और ये सब देख हैरान रह गयी उसने साक्षी को इस हालत में देखते ही सबसे पहले अपनी नजर माँ की तरफ़ घुमाई जहाँ वह अब भी गुस्से भरी तिरछी नजरों से साक्षी को ही देख रही थीं। निधि ने साक्षी के हाथ-पैर पोछे , मरहम लगाया और डॉक्टर को खबर की।

सूरज शाम को घर वापस लौटा।ये सारी घटना सुनकर वह सहम गया ।साक्षी को इस हालत में उससे देखा न गया उसकी आँखों से आंसुओ की धारा बहने लगी वह उसी अवस्था में माँ  के पास गया और पूछा "माँ ये सब क्यों?" पर माँ के पास सूरज के सवाल का भी कोई जवाब नहीं था ठीक वैसे ही जैसे साक्षी के किसी भी सवाल का जवाब दे पाने में वह असफल रही थीं।


रात को सूरज साक्षी के लिए खाना लेकर गया और उसे अपने हाथों से खिलाने लगा। साक्षी जैसे निष्प्राण हो गयी थी वह बिना कुछ कहे-सुने दीवार की ओर एकटक देखती रही। सूरज ने जैसे ही पहला निवाला उसके आगे किया साक्षी ने कहा "सूरज मुझे मेरे घर छोड़ आओ"। इतना कहते ही सूरज की  आँखों से आंसू बहने लगे और दोनों मौन होकर उस कमरे में फैले घोर सन्नाटे के बीच अपने प्रेम संबंध की गहराई को महसूस करने लगे।

अगली सुबह सूरज साक्षी को उसके घर छोड़ आया।

माँ की नजरों में पछतावे का लेश मात्र नहीं था। निधि निस्सहाय-सी साक्षी को जाता देखती रही। सूरज हालातों के बीच पिसता हुआ अपनी पत्नी से दूर रहकर माँ और बहन के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाता रहा।



मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत अच्छा लिखा है आपने 👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏

4 फरवरी 2024

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रचनाएँ
कोरी ज़िंदगी
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सामाजिक तथ्यों से जुड़े कुछ किस्से जो व्यक्तिगत जीवन पर हावी हैं और घुटन ,अवसाद, एकाकीपन आदि नकारात्मक भावों का सबसे बड़ा कारण भी । प्रस्तुत किताब में यही दर्शाने की कोशिश की गई है । पात्र और घटनाएं भले ही काल्पनिक हैं परंतु कथा-वस्तु और निष्कर्ष बिल्कुल प्रासंगिक एवं उद्देश्यपूर्ण हैं। कृपया कहानियों को पढ़ा जाए एवं इनपर मूल्यवान टिप्पणियां दी जाएं ताकि कलम आगे भी ऐसा ही कुछ लिखने के लिए प्रेरित होती रहे।
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15 मिनट की दूरी

1 जनवरी 2024
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रात के 11 बज रहे थे।मोहल्ले की गलियाँ सुनसान हो गयी थीं।उस दिन ऑफिस से लौटने में अंजू को देर हो गयी,हो भी क्यों न कलकत्ते की सड़कों पर वाहनों से ज्यादा लोगों की मौजूदगी होती है और उस दिन भी कोई इसी भीड़

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प्रेम-विवाह

28 जनवरी 2024
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घुटते सपने

30 जनवरी 2024
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"रेनू .....ज़रा सिर की मालिश कर दे, दर्द से फटा जा रहा है" माँ ने रेनू को आवाज़ लगाई। रेनू भागती हुई कमरे से बाहर आई और तेल की शीशी उठाकर माँ के सिरहाने बैठ गयी। मालिश करते हुए वह हमेशा की तरह अपन

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