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परिंडे भाग-1

6 दिसम्बर 2024

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यह कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है। किसी भी व्यक्ति वस्तु या स्थान से इसका कोई संबंध नहीं है। और न ही किसी घटना से इसकी समानता होती है। यह कहानी न तो किसी के साथ घटित हुआ है और न ही किसी के जिंदगी पर निर्भर है। यह कहानी महज़ लेखक का एक कल्पना है। इस कहानी का हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। कृपा कर इसे हकीकत से जोड़कर न देखे। इस कहानी को आप केवल मनोरंजन और ज्ञान प्राप्त करने के नज़रिए से पढ़े।

                             परिंदे

परिंदे का मतलब होता है चिड़िया या पक्षी। इस कहानी का नाम है परिंदे। परिंदे नाम है तो ऐसा नहीं है की इस कहानी में किसी चिड़िया या पक्षी के बारे में लिखा गया है। इस कहानी का नाम परिंदे लेखक ने कुछ सोच समझकर रखा है। वैसे तो इस कहानी को देने के लिए बहुत सारा नाम हो सकता था लेकिन लेखक ने इसका नाम परिंदे ही क्यों रखा ये आप पढेंगे तभी जानेंगे।

                                 सारांश

एक सख्स जो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है। वो अधिकतर वक़्त अकेला रैहता है और कुछ न कुछ सोचते रैहता है। कभी-कभी वो बालकोनी में खड़ा होकर घंटो तक आते जाते लोगों को देखते रैहता है। जिंदगी भी उसके साथ बहुत अन्याय करती है। वो कभी-कभी सोचता है काश की वो मर जाता तो उसका सारा कष्ट दूर हो जाता। फिर कुछ सोचकर वो अपना फैसला बदल लेता है। कभी-कभी बालकोनी में खड़े होकर वो घंटो गुनगुनाते रैहता है। सामने के ही छत से एक बच्चा उस सख्स को देखते रैहता है। और कभी-कभी वो सख्स भी सामने की छत पर उस बच्चे की सारी हरकतों को देखते रैहता है। इसी बीच इस सख्स को उस बच्चे से पुत्र प्रेम हो जाता है। ये जो सख्स है उसका नाम सनी है। सनी गाँव से शहर आया है। सनी उस बच्चे का अपहरण कर लेता है और उसके साथ घूमता है उसके साथ समय बीतता है। पहले तो वो बच्चा सनी से डरता है और उससे दूर रैहता है। लेकिन धीरे-धीरे उसे सनी से दोस्ती हो जाता है।

                              परिंदे

कितना अकेला हूँ मैं कोई मेरा साथ नहीं देता। मेरा अपना कैहने वाला भी आज मेरे खिलाप खड़ा है। यह सब मेरे साथ ही क्यों होता है। सारे दुःखो को सारे दर्दो को झेलने के ठेका मैंने ही तो नहीं ले रखा है बालकोनी में खड़ा सनी नीचे आते जाते लोगो को देख रहा है और सोच रहा है। मकान के दूसरे मंज़िल पर सनी का कमरा है। हाल ही पहले सनी गाँव से शहर आया है। वैसे तो सनी को शहर बिल्कुल भी पसंद नहीं है लेकिन वो यहाँ आने के लिए मजबूर था। सनी के मकान के ठीक बगल में फिल्टर का पानी का प्लांट है जहाँ एक छोटा बच्चा काम करता है। सनी ऊपर से कभी-कभी उस बच्चे की सारी हरकतों को देखते रैहता है। उस बच्चे को देखकर सनी कभी-कभी सोचता है कितनी छोटी उम्र से काम करता है ये। अभी तो इसकी उम्र पढ़ने लिखने की है और पढ़ने लिखने के वजाए ये काम कर रहा है आखिर ऐसी क्या मजबूरी है इसकी। हो सकता है ये घर से भागकर आया हो। यहाँ शहर आकर सनी का बिल्कुल भी मन नहीं लगता। वो घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहता है दिन भर वो घर में ही पड़ा रैहता है। शाम के समय कभी-कभी वो बालकोनी में हवा खाने आ जाता है। वैसे भी आजकल दिल्ली की ऐसी हालत हो गई है की कोई वहाँ रैहना नहीं चाहता। सनी को तो प्रकृति से अधिक लगाव है तो लाज़मी है की यहाँ उसका मन नहीं लगेगा। सनी के बालकोनी के ठिक सामने ही मकान मालिक का एक मंज़िल का मकान है। मकान मालिक के छत पर कुछ लोगो की चहलकदमी होते रैहती है। जिसे सनी बालकोनी में खड़ा-खड़ा देखते रैहता है। बालकोनी में खड़ा होकर सनी गाँव में बिताए हुए पल गाँव के वो सारे लम्हों को याद करते रैहता है। दिन भर घर के अंदर मोबाइल में डूबा रैहना शाम को थोड़ी बहुत देर तक बालकोनी में हवा खाने आ जाना और फिर कमरे के अंदर चला जाना। नहाना खाना सब अंदर ही ये भी कोई जिंदगी है इससे अच्छा तो इंसान जेल में बंद रहे। कितना अच्छा गाँव था जब मर्जी हुआ नहाया जब मर्ज़ी हुआ खाया। कभी बाजार घूमने चला गया तो कभी दोस्तो के घर चला गया कितना आज़ादी था वहाँ। यहाँ आकर तो लगता है की कैद हो गया हूँ मैं। न कोई दोस्त है न कोई रिश्तेदार और न ही किसी से मेरा जान पहचान है। और पैसों के बिना बाजार भी क्या घूमने जाऊँ। बालकोनी में खड़ा सनी सोच ही रहा था की उसे उसके दोस्त अमन का फ़ोन आ गया। अमन भी पैसा कमाने गाँव से शहर आ गया था। गाँव में सनी का अधिकतर वक़्त अमन के साथ ही बीता था। यूँ कहूँ तो अमन सनी का जिगरी दोस्त था। अमन भी उसी शहर में था जिस शहर में सनी था। लेकिन अमन और सनी के बीच में पचास साथ किलोमीटर का फासला था। सनी नई दिल्ली के मुकुन्दपुर गाँव में था तो वही अमन नोएडा के सूरजपुर गाँव में। शहर का गाँव बस कहलाने के लिए ही गाँव होता है वहाँ गाँव जैसा कुछ भी नहीं होता। वो होता तो शहर है बस नाम का गाँव होता है। हाँ बोलो अमन कैसे हो फ़ोन उठाते ही सनी बोला। मैं ठीक हूँ तुम कैसे हो कहो और सब क्या चल रहा है अमन ने जबाब देते हुए पूछा। और सब क्या बताऊँ यार कुछ खास नहीं है यूँ समझो जिंदगी झंड हो गया है और कुछ भी नहीं। और तुम अपना बताओ कैसा चल रहा है काम धंधा सनी ने कैहते हुए पूछा। कोई खास तो नहीं बस लगे पड़े है। मन भी नहीं लगता काफी अकेलापन मैहसुस होता है अमन ने कहा। मन लगता नहीं है दोस्त मन को लगाना पड़ता है मन को लगाकर रखो। देखो कुछ समय बिताओ बाद में नहीं होगा तो मैं भी तुम्हारे यहाँ आ जाऊँगा सनी ने कहा। हाँ ठीक ही रहेगा तुम आ जाओगे तो मन भी लगने लगेगा अमन ने कहा। बालकोनी में खड़ा-खड़ा सनी अमन से बात किए जा रहा था। नीचे से वो बच्चा जो की पानी का कारोबार करता है वो बच्चा  सनी को बात करते हुए देख रहा था। तभी बच्चे ने सनी को कुछ कहा। सनी ने बच्चे को जबाब दिया। अभी अमन कॉल पर ही था।
बच्चे ने सनी से क्या पूछा होगा। सनी अपने कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलता है। क्या सनी उस पानी बेचने वाले बच्चे का सच जान पाएगा। आखिर वो कौन बच्चा है जिससे सनी को पुत्र प्रेम हो गया है। क्यों आया है सनी गाँव से शहर। क्या करेगा सनी उस बच्चे के साथ जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।
कहानी जारी रहेगी.........................................
        

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रचनाएँ
Parindey
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अपने गर्भबति पत्नी को छोड़कर सनी गाँव से सहर आ गया था। सनी पैसे कमाने के लिए गाँव छोड़कर शहर तो आ गया था लेकिन यहाँ उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी। यहाँ सनी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। वो काफी अकेला और उदास रैहता था। इसी बीच आयुष नाम के एक लड़के से उसको दोस्ती हो जाता है। आयुष सनी के साथ काफी समय बीतता है और वो सनी को एक बाप की तरह प्यार करने लगता है। जब सनी गाँव लौट रहा होता है तब आयुष उसके साथ कुछ ऐसा करता है जिसकी सनी से कल्पना भी नहीं की थी। कैसे आयुष ने सनी के जीवन में नई रौशनी डाली, और क्या उसकी मित्रता सनी को एक नया उद्देश्य देने में सफल होगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "Parindey"
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अब तक आपने पढ़ा टहलते-टहलते सनी और अमित बातें कर रहे थे। आयुष किसी भी तरह छुपते छुपाते उनदोनो का पीछा कर रहा था और सुनने की कोसिस कर रहा था की दोनों में आखिर क्या बात हो रही है। कुछ पल के बाद अमित चला

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