अब तक आपने पढ़ा सनी कोई गंभीर बात को लेकर उदास रैहता था। उसके चेहरे की हँसी कहीं खो गई थी। शाम का वक़्त है सनी बालकोनी में उदास खड़ा है उसका चेहरा मुरझाया हुआ है और आँखे आँसुओं से डबडबाई हुई है अचानक से आँसुओं की कुछ बूंदे छलक कर नीचे खेल रहे एक बालक के गालों पर जा टपकती है। बालक के पूछने पर सनी कैहता है की मुझें कुछ नहीं हुआ है मैं बिल्कुल ठीक हूँ तुम जाओ और अपना काम करो। और अब आगे......
तुम जाओ और अपना काम करो सनी ने खिन्न भाव से कहा। क्या भईया आप भी जरा सी बात पर नाराज़ हो गए। आप चाहते है की मैं आपको न छेड़ूँ तो ठीक है मैं आपको न छेड़ूँगा। लेकिन आपसे जरा देर तक बात कर सकता हूँ अगर आपका इजाज़त हो तो बालक ने बड़ी ही चंचलता के साथ कहा। सनी कुछ देर तक सोंचा फिर बोला ठिक है तुम ऊपर आ जाओ कैहते हुए सनी अपने कमरे की ओर बढ़ गया। कुछ ही पल में वो बालक सनी के कमरे में आ पहुँचा। ये वही बालक है जिसका सकल सूरत उस बालक से बिल्कुल मिलता जुलता है जिससे सनी पुत्र प्रेम करता है। बालक को देखकर सनी ने बैठने का इशारा किया। बिस्तर के एक तरफ सनी दीवार से सिर टिकाए हुए बैठा हुआ था। वो बालक भी सनी के ठिक
सामने की तरफ बिस्तर पर पैर लटकाकर बैठ गया। कहो क्या बात है क्या बात करनी है तुम्हें मुझसे बालक के बैठते ही सनी ने कहा। ज्यादा कुछ बात तो नहीं करना चाहता बस आपके बारे में विस्तार से जानना चाहता हूँ बालक ने सनी की तरफ देखते हुए कहा। सनी अभी बालक की तरफ नहीं देख रहा था उसका ध्यान कहीं और था। शायद सामने की दीवार पर। शायद नहीं सनी सामने की दीवार को ही देख रहा था। आगर मैं बताने से इनकार कर दूँ तो कैहते हुए सनी बालक की तरफ देखा। तो कोई बात नहीं मैं आपसे बिल्कुल जिद नहीं कर रहा की आप मुझें बताए। ये तो आपकी मर्जी है आप बताए चाहे तो न बताए। बड़ी अच्छी बातें कर लेते हो तुम सनी ने मुस्कुराते हुए कहा। ये मुस्कुराहट कोई मुस्कुराहट नहीं थी ये तो बिल्कुल फीकी मुस्कान थी। मुस्कुराते हुए चेहरे पर भी गम साफ-साफ नजर आ रहा था। नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ये तो आपका बड़प्पन है की आप मुझें अच्छा समझ रहे है या मेरी बातें आपको अच्छी लग रही है।लेकिन आपको भी मानना पड़ेगा भईया गम छुपकर मीठी मुस्कान से लोगों को भरमाने में आप भी माहिर है। सनी के चेहरे पर देखकर मुस्कुराते हुए बालक ने कहा। अच्छा ऐसी तो कोई बात नहीं है जरा आज मेरा तबियत ठीक नहीं लग रहा है मैं बिसेस बात करने के मूड में नहीं हूँ। अपनें बिस्तर पर लेटते हुए सनी ने कहा। कोई बात नहीं भईया बातें करने के लिए अभी बहुत समय पड़ा है न आप भागे जा रहे है और न मैं भागा जा रहा हूँ आप कहें तो आपका पैर दबा दूँ भईया जी बालक ने सनी से पूछा।
अरे नहीं-नहीं तुम मेरा पैर क्यों दबाने लगे रेहने दो मुझें अकेला छोड़ दो कुछ पल के लिए सनी ने कहा। आप तो ऐसे बोल रहे है भईया जैसे आप मुझें टाल रहे है चलिए कोई न आपकी मर्जी नहीं है कुछ बताने का तो मुझें चलना चाहिए। जाने के लिए मुड़ते हुए बालक ने कहा। मैं टाल तो नहीं रहा मुझें ऐसा लगता है की तुम्हारे सवालों का जबाब किसी और दिन भी मिले तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी वैसे तुम्हारा नाम जान सकता हूँ सनी ने कैहते हुए पूछा। मेरा नाम आयुष है वैसे मैं हर रोज़ थोड़ी देर के लिए आ जाया करूँगा तो आपको बुरा तो नहीं लगेगा न बालक ने उत्सुकता से कहा। नहीं-नहीं इसमें बुरा मानने बाली कोई बात नहीं है तुम्हारा जब मन करे आ जाया करना कैहते हुए सनी ने करवट बदल ली। जिस काम के लिए मन न कहें वो काम नहीं करना चाहिए आपकी आँखे बहुत खूबसूरत है पर उसमें दर्द है और ये आँखे रोती हुई बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती बालक ने यानी की आयुष ने जाते-जाते कहा। सुनो तुम मुझें अच्छे लगने लगे हो क्या हम दोस्त बन सकते है कैहते हुए सनी आयुष को देखने के लिए मुड़ा। लेकिन तब तक आयुष दरवाज़े के बाहर जा चुका था। आयुष ने सनी का आवाज़ सुन लिया था। भीतर ही भीतर मंद-मंद मुस्कुराता हुआ अपनें घर को लौट गया। बाकी के बालक पहले ही अपनें घर जा चुके थे। बाकी किसी भी बालक में सनी से बात करने की हिम्मत नहीं थी। एक आयुष ही ऐसा था जिसने सनी से बात करने का हिम्मत किया था। सनी का सूरत ही ऐसा था की कोई भी देखकर डर जाता। बड़े-बड़े बाल और घनी लंबी काली-काली दाढ़ी मूँछे। दिखने पर मवाली जैसा ही प्रतीत होता था। परन्तु ये मवालीपन सिर्फ बाहर से ही था। अंदर से तो सनी बिल्कुल मोम का पुतला था। जरा से प्यार की गर्माहट से वो पिघल जाने वाला था। सनी से मिलने और बात कर लेने के बाद आयुष अपने घर लौट चुका था। लेकिन अब भी सनी की बातें उसकी कानों में गूंज रही थी। सुनो तुम मुझें अच्छे लगने लगे हो क्या हम दोस्त बन सकते है। आयुष लगातार सनी के बारे में हीं सोच रहा था। और अपने सामने रखे गए सनी के प्रस्ताव पर विचार कर रहा था। पल भर में हीं सनी के साथ बिताए हुए पल उसकी आँखों में उत्तर आती थी। उसका मन ऐसा हो रहा था की और कुछ पल जाकर सनी के पास बैठे और उससे बातें करें। सनी का भी हाल कुछ वैसा हीं था। रैह-रैह कर उसे आयुष की बातें याद आ रही थी। जिस काम के लिए मन न कहें वो हमें नहीं करना चाहिए आपकी आँखे बहुत खूबसूरत है पर उसमें दर्द है। और आँसुओं के साथ ये आँखे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती। सनी को आयुष के साथ बिताया हुआ पल याद आता और आयुष के चेहरे की एक झलक उसकी आँखों में अपना प्रतिबिम्ब छोड़ जाता था। आयुष के बारे में सोचकर सनी कभी खुश हो जाता तो कभी उदास।
कहानी जारी रहेगी..........