अब तक आपने पढ़ा टहलते-टहलते सनी और अमित बातें कर रहे थे। आयुष किसी भी तरह छुपते छुपाते उनदोनो का पीछा कर रहा था और सुनने की कोसिस कर रहा था की दोनों में आखिर क्या बात हो रही है। कुछ पल के बाद अमित चला गया सनी अकेले ही सड़क पर टहल रहा था। तभी आयुष सनी के पास आया और बात करने लगा। अमित के नाम से आयुष काफी चिढ़ा हुआ लग रहा था। कुछ पल के बाद सनी और आयुष भी अपने-अपने घर लौट गए। बालकोनी में से सनी ने देखा की आयुष और अमित किसी बात को लेकर लड़ रहे है। ज्यादा फड़फड़ाओ नहीं नहीं तो पड़ काट दिया जाएगा तुम्हारा। आयुष अमित को धमका रहा था और अब आगे.......
अच्छा! मैंने क्या किया है। तुम्हें न कुछ करने गया हूँ न कुछ कैहने गया हूँ। और रही बात औकात की तो वो तुमसे ज्यादा है। और पड़ निकल आए है तो पड़ मेरे है मैं चाहूँ तो फड़फड़ाऊ या शांत रहूँ उससे तुम्हें क्या। अमित भी कुछ कम उग्र नहीं लग रहा था। आखिर दोनों क्यूँ लड़ रहे थे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बहुत तेज़ हो तुम बहुत बड़ा समझते हो तुम अपने आप को मेरी पसंद से दूर रहो वरना अच्छा नहीं होगा। आयुष कुछ ज्यादा ही गुस्से में और आक्रामक लग रहा था। तुम्हारी पसंद से मुझें क्या लेना देना। मैं कुछ करने गया हूँ क्या तुम्हें। न सोच है न विचार है चला आया मुँह उठाकर लड़ने। अमित भी कम गुस्से में नहीं लग रहा था। दोनों में बहस चल रही थी। झगरते हुए दोनों अपने उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व लग रहे थे। सनी चुपचाप ऊपर बालकोनी में खड़ा एक कोने से दोनों को झगरते हुए देख रहा था। दोनों क्यों झगड़ रहे थे सनी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। तभी आयुष की बात सुनकर सनी का दिमाग खटका। मैं जिस भी चीज़ को पसंद करता हूँ तुम हमेसा से उसे छीन लेते हो लेकिन इस बार मैं ऐसा नहीं होने दूँगा। तुम उनसे दूर रहा करो नहीं तो काट दूँगा। आयुष गुस्से से बिलबिलाया हुआ था। उनसे किनसे अरे कुछ बताओगे भी तुम कीनके बारे में बात कर रहे हो तुम्हारा बात कुछ समझ ही नहीं आ रहा और बिना मतलब तुम मुझसे लड़े जा रहे हो। साफ-साफ बताओ क्या बात हो गई है अमित ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा। अभी थोड़ी देर पहले तुम किसके साथ था किसी से बात कर रहा था तुम आयुष ने अमित से पूछा। आयुष का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं हुआ था। वो अभी भी गुस्से में ही था। ऊपर बालकोनी में खड़ा सनी को आभास हो गया था की आयुष और किसी का नही बल्कि उसका ही बात कर रहा था। आयुष की बात सुनकर सनी के कान खड़े हो गए थे। वो और भी ध्यान से दोनों की बात सुनने लगा। अच्छा वो जो ऊपर रैहते है क्यों उनसे तुमको क्या दिक्कत होने लगी भला कैहते हुए अमित ने आयुष से पूछा। अमित को समझ आ गया था की आयुष किसकी बात कर रहा है। वो सब मैं कुछ नहीं जानता तुम उनसे दूर रहो बस नहीं तो बहुत पिटोगे। आयुष ने एक बार फिर अमित को धमकाया। अच्छा ऐसे कैसे दूर रहूँ मैं उनसे उनपर तुम्हारा कोई सार्वजनिक अधिकार नहीं है जो तुम मुझें उनसे मिलने से रोकोगे। मैं उनसे मिलूँगा भी बात भी करूँगा और उनके साथ घूमने भी जाऊँगा मैं भी देखता हूँ तुम मेरा क्या बिगाड़ लेते हो। अमित ने भी गुस्से में गरजते हुए कहा। वो मेरा पसंद है और सिर्फ मैं ही उनका दोस्त बनूँगा तुम्हें मैं अपने रास्ते से हटाकर रहूँगा समझें तुम। कैहते हुए आयुष अपने घर की ओर जाने लगा। अरे जा-जा मैं भी देखता हूँ तुम मुझें अपने रास्ते से कैसे हटाते हो और उनका दोस्त कौन बनेगा ये तो कोई नहीं जानता। अमित ने भी आयुष के घर की तरफ मुँह करके गुर्राते हुए कहा। दोनों का बाद विबाद खत्म हो चुका था। दोनों अपने-अपने घर जा चुके थे। सनी भी दोनों का झगड़ा देख लेने के बाद अपनें कमरे में आकर सो गया। आज उसका फ़ोन भी नहीं आया। सनी को उसके बचपन का दोस्त मौर्या का फ़ोन आने वाला था। लेकिन पता नहीं क्यूँ मौर्या ने सनी को फ़ोन नहीं किया था। यहाँ तक की आज सनी के बीबी का भी फ़ोन नहीं आया। जिस वजह से सनी कुछ उदास सा हो गया था। कमरे में सनी चुपचाप अपनें बिस्तर पर लेटा हुआ था। दोनों बालकों को लेकर उसके दिमाग में अजीब उधेड़ बुन चल रही थी। सनी कोई निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा था की दोनों में से वो किसे चूने। अगर वो दोनों को ही चुनता है तो इसका क्या अंजाम होगा ये तो वो थोड़ी देर पहले देख ही आया था। अमित और आयुष को लेकर सनी को कुछ ज्यादा जानकारी नहीं था। और ये पैहली बार भी नहीं था की अमित और आयुष इस तरह से लड़े हो। इस अमित और आयुष के उधेड़ बुन में सनी गाँव लौटने के बारे में तो भूल ही गया था। चार पाँच दीन के अंदर ही उसे गाँव लौटना था। सनी घर लौट जाने के बारे में सोंचने लगा। वैसे वो घर तो नहीं लौटना चाहता था लेकिन बेचारा क्या करे यहाँ तो उसका जिंदगी नर्क सा हो गया था। घर पर रैहना यहाँ से कहीं बेहतर लग रहा था। यही सब उधर बुन के साथ उसे नींद आ गया और वो सो गया। ईधर आयुष अपनें बिस्तर पर लेटा-लेटा सनी से दोस्ती का नया-नया तरीका ढूंढ रहा था। वो कुछ ऐसा करना चाहता था की सनी सिर्फ उसी का दोस्त बनें सिर्फ उसी से बातें करे सिर्फ उसी के साथ में रहे। लेकिन अमित उसके रास्ते का कांटा बन रहा था। ये पैहली बार नहीं था जब अमित आयुष के रास्ते का कांटा बना हो। पहले भी कई बार ऐसा हुआ था की आयुष ने जिसको भी पसंद किया था वो सब अमित का दोस्त बन गया था। आयुष का अब तक एक भी अच्छा दोस्त नहीं था। इस बार वो किसी प्रकार का बाधा नहीं चाहता था। सनी को उसे सिर्फ अपने तरफ आकर्षित करना था अपने तरफ झुकाना था ताकि सनी सिर्फ उसका ही दोस्त बने। आयुष के दिमाग में देर तक यही सब उधेड़ बुन चलता रहा। जल्द ही उसे भी नींद आ गई थी और वो भी गैहरी नींद के आगोश में चला गया था। वही अमित इन सब बातों को नहीं सोचता था। सारी बातों से बेफिक्र वो आराम से सोया हुआ था। सनी अपनी आदत अनुसार देर से ही उठता था। आज भी तो वो घोड़े बेचकर सोया हुआ था। सुबह के नौ बज गए थे और सनी अभी तक सोया ही था। अचानक से किसी बालक की मीठी आवाज़ से उसका नींद खुला। भइया उठ जाइए बहुत देर हो गई है देखिए तो नौ बज गया है।
कौन था ये बालक अमित या फिर आयुष। या फिर दोनों नहीं थे कोई और मेहमान था। क्या आयुष सनी को अपना दोस्त बना पाएगा। सनी किसे चुनेगा। अमित को या फिर आयुष को। क्या सनी अपने बारे में आयुष को बताएगा। क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़िए अगला भाग। और जरूर करे लेखक को फॉलो।
कहानी जारी रहेगी..............